RTI: अपनी करतूतों की सूचना देने में कतराती खाकी, जानिये पुलिस महकमे की अनसुनी सचाई
पुलिसकर्मियों पर दर्ज आपराधिक मामलों की नहीं दी जानकारी। नियम का हवाला देकर झाड़ा पल्ला।
आगरा, अली अब्बास। पुलिस के बारे में कहावत है कि वह चाहे तो किसी भी व्यक्ति के बारे में पाताल से भी सूचना हासिल करके ले आए। मगर, जब बात अपनी आती है तो वह बैक फुट पर आ जाती है। अपने ही विभाग के पुलिसकर्मियों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को नियमों का हवाला देकर पल्ला झाडऩे का प्रयास किया।
एक दशक के दौरान लूट की ऐसी कई घटनाएं हुईं, जिनमें पुलिसकर्मियों के शामिल होना पाया गया। उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जेल भेजा गया। पुलिस विभाग से सूचना के अधिकार के तहत वर्ष 2010 से जून 2018 के दौरान पुलिसकर्मियों पर दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी मांगी गई थी। इनमें कितने निरीक्षक, उप निरीक्षक और सिपाही हैं, इनका वर्षवार ब्योरा मांगा था।
विभाग का दावा है कि उसने संबंधित पुलिसकर्मियों से मोबाइल पर बातचीत की। उन्होंने सूचना अधिनियम 2005 के धारा-8 के सूचना प्रकटीकरण से छूट के बिंदु संख्या (छ) का हवाला देते हुए इसकी जानकारी देने से मना कर दिया।
क्या थे मामले
केस एक: लंगड़े की चौकी बाइपास पर कारोबारी चंदन गुप्ता से वर्दी में बदमाशों ने 14 लाख रुपये लूट लिए। पर्दाफाश हुआ तो उसमें पड़ोस के एक जिले के विधायक के गनर और उसके साथी पुलिसकर्मी का खेल निकला। दोनों ने खुद को क्राइम ब्रांच का बताते हुए लूट की घटना को अंजाम दिया था।
केस दो: छत्ता में अनाज की थोक मंडी मोती गंज में कुछ वर्ष पहले बदमाशों ने व्यापारी को लूट लिया था। मामले का पर्दाफाश होने पर इसमें पुलिसकर्मियों के शामिल होने का मामला सामने आया।
इन मामलों में भी दर्ज हुए थे मुकदमे
- एक जनवरी 2012 से 31 दिसंबर 2017 के दौरान कुल 20 शातिर पुलिस अभिरक्षा से फरार हुए। अभिरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ।
- पांच वर्ष के दौरान अभियुक्तों के फरार होने पर कुल 31 पुलिसकर्मी निलंबित हुए। इनमें 28 सिपाही, एक मुख्य आरक्षी, एक दारोगा एवं एक इंस्पेक्टर थे।