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यूं ही नहीं मिला ब्रज के इस संत को पद्मश्री का सम्मान, जानिये रमेश बाबा की पूरी कहानी

यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने को आंदोलन चलाया। कृष्ण लीलाओं से जुड़ी पहाडिय़ों पर खनन रुकवाया।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sat, 26 Jan 2019 02:33 PM (IST)Updated: Sat, 26 Jan 2019 02:33 PM (IST)
यूं ही नहीं मिला ब्रज के इस संत को पद्मश्री का सम्मान, जानिये रमेश बाबा की पूरी कहानी
यूं ही नहीं मिला ब्रज के इस संत को पद्मश्री का सम्मान, जानिये रमेश बाबा की पूरी कहानी

आगरा, जेएनएन। पर्यावरण पुरोधा व ब्रज के विरक्त संत रमेश बाबा को पदमश्री मिलने पर ब्रज में खुशी का माहौल है।

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संत रमेश बाबा ने ब्रज के पौराणिक स्वरूप को बचाने के लिए उल्लेखनीय कार्य किया है। उन्हें आमतौर पर ब्रज रसिकों की ओर से ब्रज के विरक्त सन्त की उपाधि दी गई है। इन्हें पर्यावरण पुरोधा संत भी कहा जाता है। इसके पीछे कारण यह है कि इन्होंने ब्रज के वन-उपवन व कृष्ण लीला से जुड़ीं प्राचीन पहाडिय़ों के लिए भी कई दशक तक जन आंदोलन किए थे।

वैसे तो ब्रज के संतों की कथा शुरू होगी तो बहुत लंबी चलेगी, लेकिन राधा-कृष्ण की भक्ति करते हुए शायद ही कोई ऐसा मिले जिसने ब्रज के पर्यावरण की रक्षा के लिए आंदोलनकारी की भूमिका निभाई हो। इकलौते संत रमेश बाबा हैं, जिन्होंने ब्रज के पौराणिक स्वरूप को वापस लाने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है।

प्रयाग में 1938 में हुआ जन्म

तीर्थराज प्रयाग में बाबा का जन्म हुआ। विख्यात ज्योतिषाचार्य बलदेव प्रसाद शुक्ल इनके पिता थे। इनकी माता का नाम हेमेश्वरी देवी थी। इस दंपती ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से रामेश्वरम में पुत्र कामेष्टि यज्ञ किया था। शिव कृपा से सन 1938 में पौष मास कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मध्याह्न 12 बजे बाबा का जन्म हुआ। इनके ज्योतिषाचार्य पिता ने इनका ललाट देखते ही घोषणा कर दी थी कि यह बालक गृहस्थ ग्रहण न कर ब्रह्मचारी ही रहेगा। बाबा ने प्रयाग में ही विद्या ग्रहण की। उनके अंदर की आध्यात्मिक ज्योति उन्हें गृह त्याग कर ब्रज आने के लिए हमेशा प्रेरित करती रही। बाबा ने दो बार जन्मभूमि छोड़कर ब्रजभूमि आने की कोशिश की पर मां के स्नेह का बंधन उन्हें रोके रहा। तीसरी बार किसी तरह वे सब बंधनों को तोड़कर ब्रजभूमि आने में सफल हो ही गए।

संत प्रियाशरणजी महाराज के शिष्य बने

ब्रज आकर उन्होंने ख्यातिनाम संत प्रियाशरणजी महाराज का शिष्यत्व स्वीकार किया। बरसाना के ब्रह्मांचल पर्वत पर स्थित मानगढ़ उन दिनों डाकुओं का छुपने का ठिकाना होता था। बाबा ने अपने भजन ध्यान के लिए मानगढ़ को ही चुना। उस स्थान पर धार्मिक गतिविधियों के बढऩे पर डाकुओं को वह स्थान छोडऩा पड़ा। किसी जर्जर लुप्तप्राय धर्मस्थल को कब्जा मुक्त कराने में बाबा को मिली वह पहली सफलता थी। उस समय तक शायद बाबा को खुद नहीं मालूम होगा कि उनकी वजह से ब्रज के अनगिनत दुर्लभ लुप्तप्राय धर्म स्थलियां प्रकाश में आएंगी। बाबा मान मंदिर में भजन करते और लाड़लीजी मंदिर में आकर आरतियों में हिस्सा लेते। वाद्य यंत्र बजाते हरि कीर्तन करते।

गहवरवन को बचाने आए आगे

बरसाना का प्रसिद्ध गहवरवन अवैध कब्जों का शिकार था। बाबा इस वन को नष्ट होने से बचाने के लिए आगे आए और बड़े ही संघर्षों के बाद इस स्थल को संरक्षित करवा पाए। उसके बाद ब्रज में स्थित पुराने धर्म स्थलों के जीर्णोद्धार का जो क्रम शुरू हुआ वह अनवरत जारी है।

इन धर्म स्थलों का कराया जीर्णोद्धार

रत्न कुंड ढभाला, विह्वल कुंड संकेत, कृष्ण कुंड नंदगांव, बिछुवा कुंड बिछोर, गया कुंड कामां, लाल कुंड दुदावली, गोपाल कुंड डीग, रुद्र कुंड जतीपुरा, गोमती गंगा कोसी कलां, ललिता कुंड कमई, नयन सरोवर सेऊ, बिछुआ कुंड जतीपुरा, मेंहदला कुंड हताना, धमारी कुंड और लोहरवारी कुंड आदि सरोवरों का जीर्णोद्धार बाबा के प्रयासों से हुआ है।

खनन रुकवाकर कृष्णकालीन स्थलियों को बचाया

उन दिनों ब्रज के धार्मिक महत्व के पर्वतों का खनन कार्य भी होता था। इससे कृष्ण कालीन स्थलियां लुप्त हो रही थीं। बाबा इन्हें बचाने के लिए भी आगे आए। अंत मे 5253 हेक्टेयर भू भाग को आरक्षित घोषित कर दिया गया।

गोशाला की नींव रखी

ब्रज में गायों की दुर्दशा को देखकर बाबा के प्रयासों से माताजी गोशाला की नींव 2007 में रखी गई। इस गोशाला में आज 40 हजार से अधिक गायों की सेवा होती है।

यमुना शुद्धिकरण के आंदोलन से जुड़े

यमुना मुक्तिकरण के लिए मान मंदिर सेवा संस्थान के नेतृत्व में बाबा के निर्देश पर यमुना मुक्ति आंदोलन चल रहा है। इसके लिए दो बार दिल्ली तक पद यात्राएं भी की जा चुकी हैं। बाबा की प्रेरणा से आज देश के 32 हजार गांवों में हरिनाम संकीर्तन चल रहा है।

राधा नाम का किया प्रचार

करीब 40 साल पहले रमेश बाबा राधारानी मंदिर पर मृन्दनग बजाते थे। वहीं राधा नाम का प्रचार प्रसार में भी रमेश बाबा का बहुत योगदान रहा।

- जगदीश गोस्वामी

सेवायत लाड़ली जी मंदिर बरसाना।


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