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Covid Effect: राशन खत्म होने के कगार पर, आगरा में परिवार के पास जमा पूंजी के नाम पर जीरो

सदर के कृष्णा विहार में कोराेना से 15 दिन में एक परिवार ने तीन लोगों को खोया। आर्थिक संकट में घिरा परिवार सात बच्चों की शिक्षा और घर चलाने की चिंता। यह फिक्र रात में उन्हें सोने नहीं देती। अब सरकार और सामाजिक संगठनों से मदद मिलने की आस है।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 28 Jun 2021 12:03 PM (IST)Updated: Mon, 28 Jun 2021 12:03 PM (IST)
Covid Effect: राशन खत्म होने के कगार पर, आगरा में परिवार के पास जमा पूंजी के नाम पर जीरो
कोविड से परिवार के तीन सदस्‍यों को खोने के बाद मदद की आस में आगरा की चंद्रप्रभा।

आगरा, जागरण संवाददाता। सदर के कृष्णा विहार कालाेनी में रहने वाले एक परिवार में कोराेना संक्रमण से 15 दिन में तीन अपनों को गंवा दिया। कोरोना संक्रमण से ताबड़तोड़ हुई मौतों ने परिवार को गहरे आर्थिक संकट में ढकेल दिया है। परिवार के पास जमा पूंजी के नाम पर जीरो है। घर का राशन खत्म होने की कगार पर है।विधवा की नींद चूल्हा जलाने के साथ बच्चों की शिक्षा की चिंता ने उड़ा दी है।

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सदर की कृष्णा विहार कालाेनी के रहने वाले मुकेश प्रापर्टी डीलर थे। कमीशन पर काम करते थे। पत्नी चंद्रप्रभा ने बताया कि पति में 14 अप्रैल को कोरोना के लक्षण दिखे। तेज बुखार के साथ उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने पर उन्हें जयपुर के अस्पताल लेकर गए। वहां डाक्टरों ने जवाब दे दिया, लौटते समय रास्ते में उनकी मौत हो गई। परिवार इस सदमे से उबरने का प्रयास कर रहा था। इसी बीच मुकेश के तयेरे भाई योगेश कुमार की पत्नी ऊषा देवी भी कोरोना संक्रमित हो गईं। ऊषा देवी ने 26 अप्रैल को दम तोड़ दिया। इसके चार दिन बाद ही मुकेश की मां किरन देवी भी काेरोना संक्रमित हो गईं। तेज बुखार और सांस लेने में शिकायत के दूसरे दिन 30 अप्रैल को उनकी भी मौत हो गई।

विधवा चंद्रप्रभा के पांच बच्चे हैं। इनमें दो बालिग और तीन नाबालिग हैं। जबकि ऊषा देवी के दो बच्चे हैं। सभी पढ़ रहे हैं। हालांकि दोनों के परिवार बराबर में रहते हैं। मगर, उनकी मुश्किलें एक हैं। चंद्रप्रभा ने बताया कि कोरोना के चलते करीब एक साल से पति काम बंद चल रहा था। इस दौरान जमा पूंजी खत्म हो गई। बच्चे पढ़ रहे हैं, उनकी फीस कैसे भरी जाएगी। कापी-किताब कहां से आएंगी। घर का राशन भी खत्म होने के कगार पर है। इस सबका इंतजाम वह कहां से करें, यह फिक्र रात में उन्हें सोने नहीं देती। अब सरकार और सामाजिक संगठनों से मदद मिलने की आस है।


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