Wild Life: घड़ियाल और मगरमच्छों को रास आ रहा यहां का पानी, सात सालों में दोगुनी हो गई आबादी
चंबल नदी में वर्ष 1979 में शुरू हुआ था घड़ियाल प्रोजेक्ट। घड़ियाल और मगरमच्छ के लिए मुफीद है चंबल का वातावरण। कोविड-19 संक्रमण काल के चलते इस वर्ष नहीं कराई गई गणना। विदेशी पर्यटकों भी आने लगे घड़ियालों की तस्वीरों को कैमरे में कैद करने।
आगरा, अमित दीक्षित। चंबल, जिसके नाम में ही खौफ है। वह इलाका जो दशकों तक दस्यु गैंग की धमक से गूंजता रहा। यही चंबल आज दूसरी वजह से चर्चा में है। देश की सबसे साफ नदियों में शुमार चंबल का वातावरण मगरमच्छ और घड़ियाल को खूब रास आ गया है। नदी में दोनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। बीते सात वर्ष में इनकी संख्या दोगुनी हो गई है।
घड़ियाल और मगरमच्छ की संख्या आमतौर पर तेजी से नहीं बढ़ती है। इसके पीछे दो मुख्य वजह है। एक दोनों ही अपने अंडे नदी किनारे रेती में देते हैं। इसमें आवागमन से कई अंडे नष्ट हो जाते हैं। दूसरे, छोटे बच्चों को अन्य जीव अपना शिकार बना लेते हैं। ऐसे में 40 से 50 फीसदी बच्चे वयस्क होने तक जीवित रह पाते हैं। मगर, चंबल के वातावरण और वन विभाग की सतर्कता से चंबल में इनकी संख्या खूब बढ़ रही है। चंबल में सैंक्चुअरी घोषित कर घड़ियाल प्रोजेक्ट 1979 में शुरू किया गया था। वर्ष 2013 तक उत्तरप्रदेश की वन रेंज में घड़ियाल की संख्या केवल 905 थी। वर्ष 2019 में इनकी संख्या बढ़कर 1842 हो गई है। चंबल नदी में सिर्फ घड़ियाल ही नहीं मगरमच्छ भी बढ़ रहे हैं। वर्ष 2018 में 611 मगरमच्छ थे। वर्ष 2019 में यह बढ़कर 704 हो गई।
कोविड-19 के चलते नहीं हुई गणना
चंबल सैंक्चुअरी के रेंजर आरके सिंह का कहना है कि सामान्य तौर पर मार्च से अप्रैल में घड़ियालों और मगरमच्छों की गणना की जाती है लेकिन इस साल कोविड-19 के चलते अभी तक गणना नहीं हुई है। जल्द ही गणना होगी।
साल-दर-साल यूं बढ़ रहे हैं घडिय़ाल
वर्ष, घड़ियाल की संख्या
2013- 905
2014- 948
2015- 1088
2016- 1162
2017- 1255
2018- 1687
2019- 1842
चंबल सैंक्चुअरी में घड़ियालों की संख्या बढ़ रही है। बेहतर तरीके से संरक्षण के चलते यह संभव हो सका है।
प्रभु एन सिंह, डीएम आगरा
इस तरह हुई थी सैंक्चुअरी की शुरुआत
चंबल नदी तीन राज्यों उप्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान से होकर बहती है। वर्ष 1979 में राष्ट्रीय चंबल सैंक्चुरी बनाकर घड़ियाल संरक्षण प्रोजेक्ट शुरू किया गया। श्री टॉकीज आगरा के पास चंबल घाटी ऑपरेशन का कार्यालय खोला गया। घड़ियाल संरक्षण प्रोजेक्ट के तहत अंडों को सहेजने के लिए कुकरैल, लखनऊ और मुरैना, मध्य प्रदेश स्थित प्रजनन केंद्र खोले गए। बच्चों को नदी में छोड़ दिया जाता था।