आगरा, जागरण संवाददाता। हत्यारोपित ने अपनी मां के साथ मिलकर अदालत को गुमराह करने का प्रयास किया। अपने कम उम्र होने का फर्जी प्रमाण पत्र किशोर न्याय बोर्ड में लगा दिया। मां ने हत्यारोपित पुत्र को नाबालिग साबित करने का प्रयास किया। अदालत के आदेश पर आरोपित प्रशांत और उसकी मां चंद्रवती के खिलाफ धोखाधड़ी और कूटरचित दस्तावेज तैयार करने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया है। घटना आठ अक्टूबर 2012 की है। सदर क्षेत्र निवासी भाजपा के पूर्व पार्षद प्रमोद उपाध्याय के बेटे रोहित की अपहरण के बाद हत्या कर दी गई थी। पुलिस की छानबीन में हत्याकांड में प्रशांत राजपूत का नाम सामने आया था। पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया तो आरोपित ने खुद को नाबालिग बताया। प्रशांत की मां चंद्रवती की ओर से रोहता इंटर कालेज की अंकतालिका प्रस्तुत की गई। इसके आधार पर वह नाबालिग दिखाया गया था। इसकी जानकारी होने पर प्रमोद उपाध्याय ने अपने स्तर से जानकारी की तो पता चला कि आरोपित प्रशांत राजपूत ने वर्ष 2010 में एनसी वैदिक इंटर कालेज से दसवीं पास की थी। वहां लिखी जन्मतिथि के आधार पर वह बालिग था। जबकि आरोपित की मां चंद्रवती ने शपथ पत्र देकर उसे घटना के समय नाबालिग बताया था। प्रमोद उपाध्याय के प्रवक्ता हेमेंद्र शर्मा ने अदालत में रोहता इंटर कालेज वाली अंकतालिका प्रस्तुत की। इस पर अदालत ने आरोपित और उसकी मां के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए। पुलिस पर हमले के 18 आरोपित साक्ष्य के अभाव में बरी
आगरा, जागरण संवाददाता। अदालत में पुलिस खुद पर हुए हमले को साबित नहीं कर सकी। इस पर अदालत ने साक्ष्य के अभाव में नामजद 18 आरोपितों को बरी करने के आदेश दिए।
घटना 29 अक्टूबर 2013 को मलपुरा के गांव बमरौली अहीर की है। पुलिस को दो गुटों के बीच संघर्ष की सूचना मिली थी। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर दोनों गुटों को समझाने का प्रयास किया। इस पर दोनों गुटों के लोगों ने पुलिस पर ही हमला बोल दिया। पुलिस पर गोलियां भी चलाईं। अचानक हमले पर पुलिसकर्मियों को वहां से भागकर अपनी जान बचानी पड़ी। मामले में मुख्य आरक्षी गोपाल प्रसाद ने आरोपितों के खिलाफ बलवे समेत अन्य गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था। इसमें बमरौली अहीर निवासी हरेंद्र कुमार, रामवीर, सोनू सिंह, रोहित, बाबी, जगदीश, नेत्रपाल, रूप सिंह, योगेश, कोमल, हरी सिंह, राजकपूर, टोनी, दुर्गेश, इंद्रजीत, सोनू, दुर्गेश और हरेंद्र को नामजद किया था। अदालत में पुलिस आरोपित के खिलाफ अपने ऊपर हुए हमले के सुबूत पेश नहीं कर सकी। पुलिस ने अपनी ओर से चार गवाह पेश किए। सभी के बयान अलग-अलग थे। इस पर अपर जिला जज शकील उर रहमान ने नामजद 18 आरोपितों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया।
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