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Letter to CM Yogi: अब वादें नहीं, तीर्थ नगरी करें घाेषित, आप भी जानें क्या है महत्व साेरों का

Letter to CM Yogi पोस्टकार्ड अभियान के साथ शुरू हुआ सोरो तीर्थ आंदोलन। 21000 पोस्टकार्ड भेजने के लिए जुटे हैं आंदोलनकारी।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 16 Aug 2020 02:00 PM (IST)Updated: Sun, 16 Aug 2020 02:00 PM (IST)
Letter to CM Yogi: अब वादें नहीं, तीर्थ नगरी करें घाेषित, आप भी जानें क्या है महत्व साेरों का
Letter to CM Yogi: अब वादें नहीं, तीर्थ नगरी करें घाेषित, आप भी जानें क्या है महत्व साेरों का

आगरा, जेएनएन। स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ से ही सोरों के वाशिंदों ने तीर्थ स्थल का दर्जा दिलाने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। आंदोलन के पहले चरण में मुख्यमंत्री को पोस्टकार्ड भेजे जा रहे हैं।

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प्राचीन पवित्र स्थल सोरों को तीर्थ स्थल घोषित करने की मांग लंबे वक्त से चल रही है। कुछ वर्ष पहले मुख्यमंत्री ने भी एटा आगमन से पहले ट्वीट कर तीर्थ नगरी का आश्वासन दिया था, लेकिन उसेक पूरा न होने पर अब सोरों वासी फिर से आंदोलन की डगर पर हैं। अखंड आर्यावर्त निर्माण संघ अध्यक्ष भूपेश शर्मा के निर्देशन में कसेरट बाजार के दर्जनों युवाओं ने मुख्यमंत्री को पोस्टकार्ड लिखे। भूपेश का कहना है कि सरकार सोरों तीर्थ के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। सरकार को जल्द से जल्द इसे तीर्थ स्थल घोषित करना चाहिए। अभियान में रिंकू पचोरी, अशोक पांडे, अभयराज मिश्रा, सीताराम तिवारी, सौरभ दीक्षित, गोपाल, सचिन उपाध्याय, कपिल, पं.अतुल महेरे, सुखराम पंडित, अमरनाथ तिवारी, पुष्कर मिश्रा, रामदास विश्वकर्मा, शरद पांडे, अतुल महेरे, सीटू तिवारी एवं रवि आदि ने सहयोग किया। 

सोरों में तर्पण तो मिलेगी पितरों को मुक्ति

सोरों के बारे में यह मान्यता सर्व विद्यमान है। भगवान वराह ने स्वयं इस क्षेत्र की पवित्रता का बखान करते हुए कहा है कि मेरे प्रभाव से इस पुण्य भूमि शूकर क्षेत्र में जो व्यक्ति अपने पूर्वजों की अस्थियों को विसर्जित करेगा, वह गंगाजल में विलीन हो जाएंगी। सोरों की पवित्र भूमि पर श्राद्ध करने से हर आत्मा को शांति मिलती है। तुलसी की इस नगरी में श्राद्ध पक्ष और हरिपदी गंगाजी पर कर्म करने से पूर्वजों को मोक्ष भी मिलता है।

क्‍यों है सोरों विशेष स्थान

भगवान वराह की जन्म और मोक्ष स्थली सोरों, यानि सूकर क्षेत्र श्राद्ध के निमित्त इस संसार का सर्वाधिक उत्कृष्ट स्थल है। यहां भगवान वाराह ने स्वयं अपने लीलारूप का त्याग किया है। शास्त्रों में सोरों को मोक्ष की भूमि कहा गया है। इस तीर्थ का महत्व अद्धितिय है। यह स्थान जगत की उत्पत्ति का केन्द्र है, पुराण ग्रन्थ्रो मे जो कथाये वर्णित हैं। हिरण्याक्ष दैत्य बडा ही बलवान था, देवताओ पर चढाई करके देवताओ को जीत लिया। व लोको का अधिपति बनकर बैठा। देवता जहा तहा छिप गये भगवान की आराधना करने लगे, तब भगवान वाराह का रूप धारण इसी सूकरक्षेत्र मे जोकि ब्रम्हाजी की नासिका से 12 अंगुलमात्र प्रगट हुऐ। भक्त वत्सल भगवान वारह ने पाताल मे जाकर , दैत्य से युद्ध कर उसका वध किया। पृथ्वी का भार हरण किया। सम्पुर्ण जन मानस सुखी हुआ। देवता स्वर्ग पहुचे। भगवान अपने अवतार के उदेष्य पूरा करने के बाद, निज देह का परित्याग इसी सोरो सूकर पुण्य क्षेत्र मे किया।


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