बंदरों के डर से छतों पर पहरा, गलियों में जागते रहो का शोर
बंद कमरों में लिहाफ के अंदर भी ब'चों को चिपकाए सो रहीं मां, रुनकता में ब'चों को कमरों के अंदर बंद करके रखने को मजबूर
आगरा (अली अव्वास): रात 11 बजे के बाद गहरी नींद में सो जाने वाला रुनकता शनिवार रात एक बजे के बाद भी जाग रहा है। घरों की छत पर हाथों में डंडे लिए लोग पलंग पर बैठे हैं। गलियों में हाथों में लाठी लेकर जागते रहो की आवाज सुनाई दे रही है। इस बीच वाल्मीकि बस्ती के होरी मोहल्ला से रात ढाई बजे चीखने की आवाज सुनकर हाथों में लाठी-डंडे लिए लोग उधर दौड़ पड़े। शोर सुनकर बंद कमरे में लिहाफ में नौ महीने की बेटी को सीने से चिपकाए मां पंकज देवी पास रखे चाकू को मजबूती से पकड़ लेती है। शोर रामू के घर में बंदर के घुसने के बाद हुआ था। भीड़ के आते ही, वह भाग गया। मगर पंकज ने इसके बाद भी पूरी रात आंखों में काटी। रविवार सुबह छह बजे अबोध बेटी को हिदायत के साथ पति की गोद में देकर घर के कामों में जुट गई।
रुनकता कस्बे में छतों और गलियों में लाठी-डंडों से लैस लोगों की पहरेदारी किसी बाबरिया गैंग की दहशत का नतीजा नहीं है। लोगों की नींद बदमाशों ने नहीं बल्कि बंदरों के आतंक ने उड़ा रखी है। जो उन्हें चुनौती दे रहे हैं कि 'बंदर हूं मैं, रोको वर्ना घर के अंदर हूं मैं।' एक सप्ताह से लोग टोलियां बनाकर पहरेदारी कर रहे हैं। उधर, गांव की महिलाएं जिनके बच्चे तीन वर्ष की आयु तक के हैं। बंद कमरों में भी अपने बच्चों को असुरक्षित समझ रहीं हैं। उन्हें डर है कि आंख लगते ही बंदर कमरे के अंदर से कहीं बच्चों को न उठा ले जाए।
लोगों को डर यूं ही नहीं है, यहां बंदर लगातार हमला कर रहा है। बंदर का निशाना भी सिर्फ दुधमुंहे बच्चे ही बन रहे हैं। होरी मोहल्ला की पंकज देवी पत्नी रवि ने बताया शुक्रवार की रात वह आंगन के बीच बनी झोपड़ी में सो रही थीं। नौ महीने की बेटी पायल को अपने बराबर रजाई में लिटाया हुआ था। अचानक लगा कोई उनकी रजाई खींच रहा है। बेटी के रोने की आवाज से आंख खुली तो होश उड़ गए। बंदर बेटी का सिर पकड़कर उठा ले जाने की कोशिश कर रहा था। उसके दांतों में रजाई उलझने से बेटी को रजाई समेत ले जा रहा था। उन्होंने शोर मचाया तो परिवार के लोग डंडे लेकर दौड़ पड़े और छत पर चढ़कर भाग गया। लोगों ने पंकज की बेटी को देखा तो बंदर ने उसका चेहरा बुरी तरह काट दिया था।
शुक्रवार आधी रात को बंदर ने कोली मोहल्ले के बंटी की डेढ़ वर्षीय पुत्री रचना को भी शिकार बनाया। देर रात बबली को नींद आने लगी तो उन्होंने पुत्री रचना को उसकी दादी दुर्गा देवी को दे दिया। वह उसे पलंग पर रजाई के अंदर लेकर लेटी थीं। उनका चेहरा खुला होने के बावजूद बंदर ने हमला नहीं बोला। वह रजाई उठाकर बराबर में लेटी रचना को लेकर भागने लगा। उन्होंने मासूम को पकड़ने के साथ रजाई को पैरों में दबाकर उसे बचाया। बंदर घुड़की देने लगा, उन्होंने मासूम को नहीं छोड़ा तो उसके चेहरे को काटकर लहूलुहान कर दिया।