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Ayodhya Ram Mandir Movement: संजय प्लेस की सभा ने युवाओं को दिखाई थी अयोध्या की राह

Ayodhya Ram Mandir Movement वर्ष 1992 में ढांचा ढहाए जाने से 10 दिन पहले हुई थी अंतिम जनसभा। इसके बाद छह दिसंबर को विवादित ढांचे का विध्‍वंस हुआ।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Tue, 04 Aug 2020 05:47 PM (IST)Updated: Tue, 04 Aug 2020 05:51 PM (IST)
Ayodhya Ram Mandir  Movement: संजय प्लेस की सभा ने युवाओं को दिखाई थी अयोध्या की राह
Ayodhya Ram Mandir Movement: संजय प्लेस की सभा ने युवाओं को दिखाई थी अयोध्या की राह

आगरा, राजीव शर्मा। बात लगभग 28 साल पुरानी है। हाथों में भगवा ध्वज। वातावरण में गूंजते जय श्रीराम के जयकारे। उत्साह और जुनून में आगे बढ़तीं युवाओं की टोलियां। जोश ऐसा कि राह में रोड़ा बनने वाली चट्टान को भी रौंद दें। उनके इस जोश को हवा मिली थी, 26 नवंबर 1992 की संजय प्लेस की उस जनसभा में, जो विवादित ढांचा गिराने से दस पहले ही हुई थी। इस जनसभा में वक्ताओं के ओजस्वी भाषणों ने युवाओं में उत्साह और जुनून का ऐसा संचार किया था कि उनके कदम 6 दिसंबर को अयोध्या पहुंचकर ही रुके थे।

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श्रीराम जन्म भूमि को लेकर ताजनगरी में आंदोलन वर्ष 1984 से ही शुरू हो गया था। तब से वर्ष 1992 तक जन-जागरण के तमाम कार्यक्रम आयोजित हुए। मगर, संजय प्लेस में श्रीराम जन्मभूमि अांदोलन को लेकर हुई अंतिम जनसभा ने युवाओं के जोश को सबसे अधिक हवा दी। विश्व हिन्दू परिषद के तत्कालीन प्रदेश सहमंत्री व वर्तमान में भाजपा ब्रजक्षेत्र मीडिया प्रभारी सुरेन्द्र गुप्ता एडवोकेट तब इस आंदोलन में अहम भूमिका निभा रहे थे। अयोध्या आंदोलन की बात जिक्र आते ही, उनके चेहरे पर गौरव के भाव आ जाते हैं। बताते हैं कि 6 दिसंबर को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने से दस दिन पहले संजय प्लेस में आखिरी जनसभा हुई थी। तब संजय प्लेस में इतने निर्माण नहीं हुए थे। एमडी जैन इंटर कालेज के सामने खाली मैदान था। यहीं पर जनसभा हुई थी। इस सभा को संबोधित करने के लिए विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल को आना था लेकिन एेन वक्त पर उनका कार्यक्रम स्थगित हो गया था। उनके स्थान पर मुख्य वक्ता के रूप में विहिप के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष बैकुंठ लाल शर्मा आए थे। उन्होंने बताया कि मंच पर वामदेव महाराज, उषा सिंघल, रमेशकांत लवानिया, राजकुमार सामा, अमर सिंह वर्मा, हृदयनाथ सिंह आदि थे। इस सभा में अनुमान से अधिक भीड़ उमड़ पड़ी थी। इसके बाद यह तय हो गया था कि छह दिसम्बर की कार सेवा निर्णायक होगी और यही हुआ। इस जनसभा में पैर रखने तक की जगह नहीं बची थी।

तब आगरा था प्रमुख केंद्र

राम मंदिर आंदोलन वर्ष 1989 से शिखर पर पहुंच चुका था मगर, इसका चरम वर्ष 1992 में आया। इस अांदोलन को पर्दे के पीछे से संचालित करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा, विहिप के कई वरिष्ठ पदाधिकारी तब आगरा में ही विभिन्न दायित्व संभाल रहे थे। वर्तमान में श्रीराम जन्मभूमि न्यास के महामंत्री चम्पराय उन दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विश्व हिन्दू परिषद के संगठन मंत्री थे। उनका केंद्र आगरा ही था। तब विश्व हिन्दू परिषद के संगठनात्मक ढांचे में उत्तर प्रदेश का पश्चिमी भाग तथा उत्तराखंड शामिल था। इसको देखते हुए आगरा देश में आंदोलन की गतिविधियों का मुख्य केंद्र था। उस समय आरएसएस के प्रांत प्रचारक दिनेश चंद्र थे, जोकि आगे चलकर विहिप के अंतरराष्ट्रीय संगठन मंत्री बने। भाजपा के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रहे रामलाल संघ के सह प्रांत प्रचारक थे। आगरा में संघ के विभाग प्रचारक के रूप में डा. कृष्ण गोपाल थे, जो वर्तमान में आरएसएस के सह सरकार्यवाह हैं। भाजपा के क्षेत्रीय संगठन मंत्री हृदयनाथ सिंह थे।

भारत कुमार को नहीं ढूंढ पाए

सुरेंद्र गुप्ता एडवोकेट के अनुसार, संघ के कार्यक्रमों के प्रचार-प्रचार को जन-जन तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने वाला विश्व संवाद केंद्र की शुरुआत राम जन्म भूमि आंदोलन से ही हुई थी। तब यह विहिप के निर्देश में संचालित हो होता था। इसका केंद्र विजय नगर कालोनी में था। बताते हैं कि तब खुफिया विभागों की जर इसी केंद्र पर रहती थीं। विश्व संवाद केंद्र से जिसका भी नाम जुड़ता, पुलिस उसे पकड़ लेती। इसलिए खुफिया विभागों को गुमराह करने के लिए भारत कुमार नाम का फर्जी किरदार गढ़ा गया। उन्हीं के नाम से अखबारों में विज्ञप्ति प्रकाशित होती थीं।


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