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कान्हा की नगरी में खास रहा आज का दिन, मनाई गई श्रीकृष्ण जन्मस्थान के प्रणेता की जयंती

माहमना पंडित मदन मोहन मालवीय की मनाई गई 157 वीं जयंती। भागवत भवन लगी प्रतिमा का हुआ अभिषेक।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sat, 29 Dec 2018 02:21 PM (IST)Updated: Sat, 29 Dec 2018 02:21 PM (IST)
कान्हा की नगरी में खास रहा आज का दिन, मनाई गई श्रीकृष्ण जन्मस्थान के प्रणेता की जयंती
कान्हा की नगरी में खास रहा आज का दिन, मनाई गई श्रीकृष्ण जन्मस्थान के प्रणेता की जयंती

आगरा, जेएनएन। श्री कृष्ण जन्मस्थान स्थित भागवत भवन में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की 157 वी जयंती मनाई गई। सुबह प्रतिमा के अभिषेक के बाद दोपहर को आरती की गई। इस दौरान गोपेश्वर चतुर्वेदी, राजीव श्रीवास्तव, विजय बहादुर सिंह आदि मौजूद रहे।

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बता दें कि भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि का ना केवल राष्द्रीय स्तर पर महत्व है बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अलग पहचान है। मथुरा भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान से ही जाना जाता है। पंडित मदनमोहन मालवीय की प्रेरणा से यह एक भव्य आकर्षण मन्दिर के रूप में स्थापित है। 1940 के आसपास पंडित मदनमोहन का भक्ति विभोर हृदय उपेक्षित श्रीकृष्ण जन्मस्थान के खंडहरों को देखकर द्रवित हो उठा। उन्होंने इसके पुनरोद्धार का संकल्प लिया।  उसी समय सन 1943 के लगभग ही जुगलकिशोर बिड़ला मथुरा पधारे और श्रीकृष्ण जन्म स्थान की ऐतिहासिक वन्दनीय भूमि के दर्शनार्थ गये। वहां पहुंचकर उन्होंने जो दृश्य देखा उससे उनका हृदय दुखी हो उठा। पंडित मदनमोहन मालवीय ने जुगलकिशोर बिड़ला को श्रीकृष्ण जन्मस्थान की दुर्दशा के सम्बन्ध में पत्र लिखा और उधर बिड़ला ने उनको अपने हृदय की व्यथा लिख भेजी। उसी के फलस्वरूप श्री कृष्ण जन्मस्थान के पुनरोद्धार के मनोरथ का उदय हुआ।

मालवीय के जीवनकाल में नहीं हो पाया पुनरोद्धार

जुगल किशोर बिड़ला ने सात फरवरी 1944 को कटरा केशव देव को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया लेकिन पंडित मालवीय ने पुनरोद्धार की योजना बनाई थी वह उनके जीवनकाल में पूरी न हो सकी। उनकी अन्तिम इच्छा के अनुसार बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि के नाम से एक ट्रस्ट स्थापित किया। जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना 1951 में हुई थी परन्तु उस समय मुसलमानों की ओर से 1945 में किया हुआ एक मुकदमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में निर्णयाधीन था इसलिए ट्रस्ट द्वारा जन्मस्थान पर कोई कार्य सात जनवरी 1953 से पहले नही किया जा सका। जब मुकदमा खारिज हो गया उसके बाद कार्यवाई आगे हो सकी। 


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