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Chaitra Navratri 2021: जानिए कैसा है माता का तीसरा स्वरूप और क्या है पूजन का विधान

Chaitra Navratri 2021नवरात्रि के तीसरे दिन होती है मां चंद्रघंटा की पूजा। धर्म शास्‍त्रों में बताया गया है कि मां चंद्रघंटा की उपासना से भक्‍तों में वीरता और निर्भीकता के साथ ही सौम्‍यता और विनम्रता का विकास होता है।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Wed, 14 Apr 2021 03:00 PM (IST)Updated: Wed, 14 Apr 2021 03:00 PM (IST)
Chaitra Navratri 2021: जानिए कैसा है माता का तीसरा स्वरूप और क्या है पूजन का विधान
नवरात्रि के तीसरे दिन होती है मां चंद्रघंटा की पूजा।

आगरा, जागरण संवाददाता। मां चंद्रघंटा का स्वरूप सौम्यता एवं शांति से भरा-पूरा है, मां चंद्रघंटा और इनकी सवारी शेर दोनों का शरीर सदैव ही सोने की तरह चमकता है। ज्योतिषाचार्य डॉ शाेनू मेहरोत्रा के अनुसार चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन दुर्गा मां के चंद्रघंटा रूप की पूजा की जाती है। नौ दिनों तक चलने वाली नवरात्रि के दौरान मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है। मां चंद्रघंटा राक्षसों का वध करने के लिए जानी जाती हैं। मान्यता है कि वह अपने भक्तों के दुखों को दूर करती हैं इसलिए उनके हाथों में धनुष, त्रिशूल, तलवार और गदा होता है। देवी चंद्रघंटा के सिर पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र नजर आता है। इसी वजह से श्रद्धालु उन्हें चंद्रघंटा कहकर बुलाते हैं।

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चंद्रघंटा माता का मंत्र

पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैयुता।

प्रसादं तनुते मद्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

नवरात्र में तीसरे दिन की पूजा का खासा महत्‍व शास्‍त्रों में बताया गया है। इस दिन मां के विग्रह का पूजन और अराधना की जाती है। माता की कृपा से भक्‍तों को अलौकिक वस्‍तुओं के दर्शन मिलते हैं। धर्म शास्‍त्रों में बताया गया है कि मां चंद्रघंटा की उपासना से भक्‍तों में वीरता और निर्भीकता के साथ ही सौम्‍यता और विनम्रता का विकास होता है।

पूजा विधि

पूजा प्रारंभ करने से पहले मां चंद्रघंटा को केसर और केवड़ा जल से स्नान कराएं। इसके बाद उन्हें सुनहरे रंग के वस्त्र पहनाएं। इसके बाद मां को कमल और पीले गुलाब की माला चढ़ाएं। इसके उपरांत मिष्ठान, पंचामृत और मिश्री का भोग लगाएं।

मां चंद्रघंटा को प्रसन्न करने का मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:।

माता चंद्रघंटा की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा तो मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार लिया। उस समय असुरों का स्वामी महिषासुर था जिसका देवताओं से भंयकर युद्ध चल रहा था। महिषासुर देव राज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था। उसकी प्रबल इच्छा स्वर्गलोक पर राज करने की थी। उसकी इस इच्छा को जानकार सभी देवता परेशान हो गए और इस समस्या से निकलने का उपाय जानने के लिए भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने उपस्थित हुए। 

देवताओं की बात को गंभीरता से सुनने के बाद तीनों को ही क्रोध आया। क्रोध के कारण तीनों के मुख से जो ऊर्जा उत्पन्न हुई। उससे एक देवी अवतरित हुईं। जिन्हें भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों मेें अपने अस्त्र सौंप दिए। देवराज इंद्र ने देवी को एक घंटा दिया। सूर्य ने अपना तेज और तलवार दी, सवारी के लिए सिंह प्रदान किया।

इसके बाद मां चंद्रघंटा महिषासुर के पास पहुंची. मां का ये रूप देखकर महिषासुर को ये आभास हो गया कि उसका काल आ गया है। महिषासुर ने मां पर हमला बोल दिया। इसके बाद देवताओं और असुरों में भंयकर युद्ध छिड़ गया। मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार किया। इस प्रकार मां ने देवताओं की रक्षा की।


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