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आतंक का अंत: आखिर पकड़ में आ गया अल्फा, लोगों को मिली राहत

एक पखवाड़े से रुनकता में छाया था आदमखोर बंदर का आतंक। शहर से लेकर गांव तक बंदरों और आवारा श्वानों के हमले बढ़े।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Wed, 28 Nov 2018 12:53 PM (IST)Updated: Wed, 28 Nov 2018 12:53 PM (IST)
आतंक का अंत: आखिर पकड़ में आ गया अल्फा, लोगों को मिली राहत
आतंक का अंत: आखिर पकड़ में आ गया अल्फा, लोगों को मिली राहत

आगरा (जेएनएन)। रुनकता के लोगों को आखिर राहत मिल ही गई। आतंक का अंत हुआ तो लोगों को सुकून मिला। पिछले एक पखवाड़े से छाया आदमखोर बंदर अल्फा का आतंक बुधवार को पिंजरे में कैद हो गया। 

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आगरा के रुनकता में पिछले दिनों चौदह दिन के मासूम को झपटटा मारकर छीनने के बाद बंदर ने बड़ी क्रूरता से मार डाला था। इसके बाद से आदमखोर बंदर को पकडऩे की कई कोशिशें की गई थीं लेकिन हर बार खाली हाथ ही लोग रह जा रहे थे। अल्फा यानि बंदरों के झुंड का मुखिया हमले दर हमले के बाद आदमखोर बनता जा रहा था और इधर लोग खौफ के कारण घरों में कैद रहने को मजबूर हो गए थे। उसके निशाने पर मासूम बच्चे रहते थे। जिसके चलते क्षेत्र के बच्चों को लोग घरों से निकलने नहीं दे रहे थे। बुधवार को अल्फा दो माह के मासूम की वजह से ही पकड़ में आ सका। 

दरअसल रुनकता के कचहरा थोक मोहल्ले में रहने वाली रजनी के घर दो दिन पूर्व उसकी बड़ी बहन अपने दो माह के बालक के साथ आई थी। बच्चे के घर में आने के बाद से आदमखोर बंदर घर के आस पास ही चक्कर लगा रहा था। बच्चे के ऊपर मंडराते खतरे को परिवार के लोगों ने भांप लिया था। रजनी की बहन अपने बच्चे के साथ चली गईं। इसके बाद से परिजनों ने घर के दरवाजे कुले रखे। योजना आदमखोर बंदर को पकडऩे की थी। बंदर जैसे ही घर के पास आया तो परिजन छुप कर नजर रखे रहे। मौका देखकर बंदर बच्चे पर हमला करने के इरादे से जैसे ही घर के कमरे में दाखिल हुआ तो परिजनों ने कमरे का दरवाजा लगा दिया। वन विभाग को तुरंत सूचित किया। विभाग के कर्मचारियों ने मौके पर पहुंचकर बंदर पर रजाई डालकर काबू में लिया। 

शहर से लेकर गांव में छाया है आवारा आतंक

शहर की बस्तियों से लेकर गांवों की गलियां खौफजदां हैं। बाजारों से लेकर खेतों तक आतंक मंडराता रहता है। सुबह हो या दोपहर, या फिर हो शाम, जंगल के जानवर बस्तियों में आकर आदमखोर बन गए हैं। घुड़की देने वाले बंदर खूंखार बन गए हैं। छत हो या छज्जा, आंगन हो या कमरा, बंदरों के झुंड आक्रमण बोलते हैं। सामना किया तो खैर नहीं, उल्टे पैर भागे तो भी खतरा। ऐसे में कोई छत से गिर जाता है तो कोई दीवार से टकराता है। पिछले वर्षों में एटा और कासगंज सहित आगरा मंडल में तमाम जिंदगियां आवारा आतंक में खत्म हो चुकी हैं। हमलों से घायल अनगिनत लोग घर पर जिंदा लाश बने हुए हैं। कागारौल में बंदरों के झुंड ने एक महिला को इतना जख्मी कर दिया कि उसकी मौत हो गई। ये तो आवारा आतंक के चंद उदाहरण हैं। बंदर ही नहीं, श्वान और जंगल के अन्य जानवरों से भी लोग खौफजदां हैं। आवारा श्वान सड़क हादसों का कारण बन रहे हैं तो गोवंश और नीलगायों के झुंड फसलों को बर्बाद कर रहे हैं। इस आतंक को खत्म करने के लिए तमाम योजनाएं बनीं। हर बड़े हादसे के बाद फाइल भी दौड़ी, मगर बाद में ऐसी योजनाएं फाइल में ही दब गईं। शहरी क्षेत्रों से बंदरों, श्वानों को पकडऩे की प्रक्रिया कभी भी मिशन नहीं बन पाई। नौकरशाही की यही ढिलाई लोगों के लिए भयानक खतरा बन चुकी है। आवारा जानवरों का कुनबा निरंतर बढ़ता जा रहा है। घने इलाकों में लोगों को पिंजरे में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। इससे पहले कि ये आतंक  बेकाबू हो जाए, जरूरत है इस पर अंकुश लगाने की। नौकरशाही को ठोस योजनाएं जल्द से जल्द अमल में लाना होगा। 

मथुरा में चली गईं जान, बने हैं जिंदा लाश

मथुरा शहर की गलियों से लेकर सड़कों और खेतों में आवारा आतंक का खौफ है। खूंखार बंदरों के आक्रमण से मथुरा शहर और वृंदावन नगर में तमाम लोगों की जिंदगी खत्म हो चुकी हैं। अनगिनत लोग चारपाई पर जिंदा लाश बन गए हैं। मथुरा शहर के घने इलाकों में बंदरों से क्षेत्रीय लोग बुरी तरह से आतंकित रहते हैं। छत और छज्जे ही नहीं, आंगन में भी ये बंदर हमलावर हो जाते हैं। बंदरों से बचने के लिए लोग यहां पिंजरानुमा मकानों में रह रहे हैं। यही स्थिति वृंदावन नगर की है। बांकेबिहारी मंदिर सहित पूरे नगर में बंदर राहगीरों के चश्मे उतार ले जाते हैं। हाथ से सामान छीन लेतेे हैं। कुंज गलियों में इनका राज चलता है। छतों पर इनका साम्राज्य है। इक्का-दुक्का लोग देखते ही ये धावा बोल देते हैं। यहां भी तमाम लोग बंदरों के हमले में अपनी जान खो चुके हैं। 

 

रात में खेतों पर बोलते हैं धावा

मुकंदपुर के किसान रामवीर सिंह बताते हैं कि दस से पंद्रह गाय और सांड के झुंड एक साथ खेत में घुस जाते हैं। नीलगाय और वनरोज भी फसलों का खाने के साथ रौंद रहे हैं। आवारा आतंक से निजात नहीं मिल पा रही है। जिले भर में 2 लाख 26 हजार 186 गायें थीं। लेकिन इतनी गायें सड़कों से लेकर खेतों में घूम रही है। भूखी-प्यासी गाय रात दिन खेतों की रखवाली किसान की नजर हटते ही फसलों को खा रही है। इनसे फसलों को बचाने के लिए किसानों खेतों के चारों तरफ कंटीले तार खींच रखे हैं। लेकिन इनको भी तोड़कर गाय और सांड फसलों को खाकर किसानों को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचा रही है। किसान रात-रात भर जागकर रखवाली करते हैं। 

शासन ने गठित की हाई पावर कमेटी

आम आदमी और किसानों को आवारा जानवर खासकर गोवंश से छुटकारा दिलाने के लिए शासन ने एक हाई पावर कमेटी का गठन किया है। इसके अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान और विश्वविद्यालय एवं गो अनुसंधान के संस्थान के कुलपति डॉ. केएमएल पाठक को बनाया गया है। कृषि, पशुपालन, गो सेवा आयोग के पदाधिकारियों के समेत किसान, सामाजिक कार्यकर्ता, पशुपालक समेत 16 सदस्य हैं। 

एटा में जानलेवा बन रही बंदरों की घुड़की 

बस्तियों की गलियों से लेकर गांवों तक बंदरों का आतंक छाया हुआ है। बंदरों की शरारत और घुड़की जानलेवा बन गई है। बंदरों के कुनबे में तमाम तो खूंखार भी हैं। वर्ष 2015 में मारहरा ब्लॉक क्षेत्र के गांव जिन्हैरा में एक दुधमुंही बच्ची को मार डाला। सात माह की मंतिशा छत पर सो रही थी। तभी एक बंदर ने उसके ऊपर छलांग लगा दी। बच्ची की मौत हो गई थी। पिछले वर्ष 29 अगस्त को मारहरा कस्बा के मुहल्ला मकबूलगंज में मोरमुकुट अपने घर की छत पर थे। तभी बंदरों के झुंड ने हमला बोल दिया। बंदरों से बचने के लिए वो भागे, मगर छत से नीचे आ गिरे। उनकी मौत हो गई। अवागढ़, अलीगंज, निधौली कलां, सकीट में भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। 

 तीन वर्ष में बढ़ा कुनबा

पिछले करीब तीन वर्षों में बंदरों का कुनबा लगभग दोगुनी हो गया है।  इसकी बड़ी वजह उनके नियंत्रण को लेकर कोई प्रयास न किया जाना है। पड़ोसी जिलों से बंदरों को पकड़कर यहां छोड़ा जा रहा है। लेकिन यहां से कभी धरपकड़ नहीं हुई। 

हर रोज पहुंचते हैं डेढ़ सौ पीडि़त, वैक्सीन ही नहीं

बंदरों के आतंक का आलम ये है कि जिला अस्पताल से लेकर देहात के स्वास्थ्य केंद्रों पर रोजाना औसतन 150-200 लोग टीका लगवाने पहुंचते हैं। मगर, सरकारी अस्पतालों पर महीनों से एआरवी ही नहीं है। उन्हें लौटा दिया जाता है। ऐसे लोग बाजार से महंगी वैक्सीन खरीदकर लगवाते हैं।

कासगंज में सड़क से छतों तक आवारा आतंक 

सड़क से छतों तक आवारा आतंक मंडराता रहता है। सड़कों पर आवारा श्वान हमलावर बन जाते हैं। कई बार तो बाइक सवारों के साथ हादसा हो जाता है। बंदरों की घुड़की भी जानलेवा बन रही है। करीब एक वर्ष पहले गल्ला व्यापारी घर की छत पर थे। अचानक बंदरों ने हमला बोल दिया। घबराकर भागे व्यापारी छत से नीचे गिर गए थे। उनकी मौत हो गई थी। 

यहां है आतंक 

मोहल्ला नाथूराम, गली छपट्टी, मोहल्ला मोहन, प्रभु पार्क, दुर्गा कॉलोनी, रेलवे स्टेशन के आसपास।

फीरोजाबाद में खूंखार बन जाते हैं बंदरों के झुंड

वैसे तो आवारा आतंक का कोई पैमाना तो नहीं है। मगर एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाने जिला अस्पताल सहित देहात के स्वास्थ्य केंद्र आने वाले लोगों की संख्या इस आतंक की निरंतर भयावह होती स्थिति के प्रमाण हैं। जिला अस्पताल के आंकड़े बताते हैं कि इस वर्ष हर दिन औसतन साठ लोग आवारा श्वानों और बंदरों के हमले का शिकार हुए हैं। शहर की बस्तियों में आतंक मचाने वाले बंदर पिछले दिनों शिकोहाबाद में एक युवक की जान भी ले चुके हैं। इस सरकारी आंकड़ों के अलावा अनेक लोग प्राइवेट अस्पतालों में भी एंटी रैबीज टीका लगवाने जाते हैं। शहर में तिलक नगर, लोहियानगर, हनुमानगढ़, दुर्गानगर, रामलीला मैदान, गांधी नगर, आर्य नगर और बस स्टैंड समेत शहर के अनेक इलाकों में बंदरों के झुंड नजर आते हैं। 

जिला अस्पताल के सर्जन डॉ. हंसराज सिंह बताते हैं कि एआरवी लगवाने आने वाले लोगों में लगभग 90 फीसद लोग श्वान काटने से पीडि़त होते हैं। जबकि दस फीसद बंदरों का शिकार होते हैं। 

सरकारी आंकड़ें....

वर्ष 2017 - 21525

    2018 - अब तक 19870 लोग एआरवी लगवा चुके हैं। 

 

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