World Environment Day 2020: पर्यावरण संरक्षण कठिन जरूर पर नामुमकिन नहीं, आगरा की स्थिति भी जान लें
World Environment Day 2020 सिकुड़ रहा है वन क्षेत्र तो आगरा की यमुना में बढ़ रहा है जहरीला प्रदूषण। लॉकडाउन के दौरान सुधरी है आवोहवा।
आगरा, जागरण संवाददाता। कोरोना वायरस की चैन ब्रेक करने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के दौरान भले ही आर्थिक गतिविधियांं ठप थीं, लोग घरों में कैद थे लेकिन प्रकृति खुलकर सांस ले रही थी। कंकरीट के जंगलों का शोर थमा तो पर्यावरण चहकने लगा। लाॅकडाउन के दौरान पर्यावरण सुधार की उम्मीदें पल रही थी। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण मे सुधार के साथ-साथ वन्य जीव जंतुओं के अनुकूल पर्यावरण में सुधार के संकेत मिल रहे थे। लेकिन अनलॉक होते ही प्रदूषण बेकाबू होने लगा है। पर्यावरणविद और बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसायटी के अध्यक्ष डॉ केपी सिंह के अनुसार पर्यावरण के अंतर्गत पेड़ों का महत्वपूर्ण योगदान वायु प्रदूषण के नियंत्रण में होता है। भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2019 के अनुसार भारतीय वनों व वृक्षावरण क्षेत्र में कुल 5186 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि केवल 0.65 प्रतिशत है। लेकिन कार्बन स्टाक में 21.3 मिलियन टन की वृद्धि भी हुई है। जो कि गंभीर चुनौती है। प्रदेश में भी पर्यावरण सुधार अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। पिछले दो वर्षों में वृक्षावरण क्षेत्र में 100 वर्ग किमी व सघन वन क्षेत्र में 0.57 वर्ग किमी की कमी आई है। लेकिन वनक्षेत्र में 126.65 वर्ग किमी, घना वन 11.04 वर्ग किमी व खुले वनक्षेत्र में 116.8 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है। जो कि आबादी के हिसाब से बहुत मामूली वृद्धि दर है।
ताजनगरी की स्थिति चिंताजनक
डॉ केपी सिंह बताते हैं कि यमुना में प्रदूषण व भूगर्भ जल की विकराल समस्या है। आगरा के कुल 92 नालों में से 61 का गंदा पानी सीधे यमुना नदी में गिरता है। इन नालों से 216 एमएलडी सीवेज बिना ट्रीटमेंट यमुना में गिर रहा है। लगभग 61 फीसद सीवेज सीधे यमुना में गिरकर नदी में प्रदूषण बढ़ा रहा है। यूपीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2020 में यमुना नदी में डिजाल्व आक्सीजन (डीओ) की औसत मात्रा 5.23 मि.ग्रा. प्रति लीटर, बायो आक्सीजन डिमांड (बीओडी ) 13.73 मि.ग्रा. प्रति लीटर एवं टोटल काॅलिफार्म ( मानव व जीव अपशिष्ट ) की औसत मात्रा 75000 एमएनपी प्रति लीटर है। जो कि तय मानक के स्तर से बहुत अधिक है।
13 ब्लॉक हैं डार्क जोन
जिले के भूगर्भीय जल की बात करें तो आगरा के 15 ब्लाक में से बाह व जैतपुर ब्लाक को छोड 13 ब्लाकों को डार्क जोन में रखा गया हैं। जो कि पानी का गंभीर संकट दर्शाता है। खारे पानी एवं फ्लोराइड युक्त पानी की गंभीर समस्या से आगरा जूझ रहा है। आगरा में लगभग चार हजार आरओ प्लांट एवं चार लाख से ऊपर समरर्सिबल से पानी का दोहन हो रहा है जिसके कारण भूजल तीसरे स्ट्रेटा (90 से 150 मीटर ) तक पहुंंच गया है। कुछ ही वर्षों के बाद आगरा को इसके रेगिस्तान जैसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
वन क्षेत्र व प्रदूषण की स्थिति निराशाजनक
भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2019 के अनुसार आगरा के जंगल का 10 वर्ग किमी क्षेत्रफल कम हुआ है। पिछली 2017 की रिपोर्ट की तुलना में आगरा में साल 2017 की तुलना में 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 9.38 वर्ग किलोमीटर वन आवरण कम हो गया। मध्यम घनत्व वाले जंगलों में 0.32 वर्ग किलोमीटर और खुले जंगल में 9.06 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है। यह खुले जंगल के झाड़ियों में बदल जाने से हुआ है। झाड़ियों का क्षेत्रफल 2017 में 64 वर्ग किलोमीटर था। वह 2019 की रिपोर्ट में बढ़कर 75.14 वर्ग किलोमीटर हो गया है। दिसम्बर 2019 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कांप्रेहेंसिव एनवायरमेंटल पाल्यूशन इंडेक्स (सेपी) की रिपोर्ट में आगरा के औद्योगिक क्षेत्रों में हवा और पानी में जहरीले तत्वों की वृद्धि हुई है।
लॉकडाउन से पहले और बाद की स्थिति
लाॅकडाउन के शुरू में 25 मार्च को आगरा में एक्यूआई की मात्रा केवल 60 थी। लाॅकडाउन के दौरान भी एक्यूआई का स्तर औसत दर्ज किया गया। जबकि लाॅकडाउन से पहले 12 जनवरी 2020 को एक्यूआई 325 गंभीर स्तर तक पहुंंच गया था।
पर्यावरणीय जैव विविधता के संरक्षण के लिए खडा होगा गंभीर संकट
डॉ केपी सिंह ने बताया कि आगरा में लगभग 500 से अधिक पक्षियों, तितलियों, मछलियों, कीटों, उभयचरों व अन्य वन्य जीवों की प्रजातियां मौजूद हैं। आगरा की अनूठी जैव विविधता संकट के मुहाने पर खडी है। जंगल के क्षेत्रफल में कमी आने, जल स्तर के नीचे पहुंंच जाने, यमुना नदी में जल प्रदूषण की मात्रा बढ जाने व सात में से पांंच नदियों के सूख जाने, नदियों से बालू का खनन व पहाडों से पत्थर खनन से इन जीव जन्तुओं के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो रहा है। आगरा प्रवासी पक्षियों की बहुत बडी शरणस्थली है। जैव विविधता नष्ट होने से प्रवासी पक्षियों की आमद भी प्रभावित होगी। सरकारी आकड़ों के अनुसार विगत दस वर्षों में आगरा मे एक लाख पेड़ो की कटाई हुई है। बिना देखभाल के शहर एवं यमुना नदी के किनारे 2019 में लगाये गये 22 हजार पौधें नष्ट हो चुके हैं। 2018 में आये दो तूफानों से एवं मई 2020 के तूफान में हजारों की संख्या में पेड़ नष्ट हुए हैं।