Lockdown 3.0: सिस्टम के छलावों की पोल खाेल रहे पांव के छाले, थके मजदूरों ने सुनाई बेबसी की दास्तां
जिंदगी बचाने की जंग में सैकड़ों किमी पैदल चल रहे प्रवासी मजदूर। धरे रह गए दावे थके मजदूरों ने सुनाई बेबसी की दास्तां।
आगरा, विनीत मिश्र। ये उस सिस्टम के लिए एक सबक है, जो प्रवासी मजदूरों की व्यवस्था बेहतर होने का दावा कर रहा है। एक बेबस मजदूर का दर्द क्या होता है, ये कोई झांसी के घनश्याम से पूछे। दिल्ली के नागलोई में मजदूरी करते हैं। लाॅकडाउन में जिंदगी थमी तो काम धंधा भी बंद हो गया। पचास दिन तक इंतजार के बाद उम्मीद टूटी तो घनश्याम पत्नी सुनीता और दो बच्चों के साथ पैदल ही चल दिए। धागे से जुड़ी चप्पलें रास्ते में जवाब दे गईं, तो नंगे पैर चले। दुपहरी में लोग घरों में कैद थे, तब ये परिवार नंगे पैर तपती सड़क पर दुश्वारियां झेल रहा था।
तीन साल की बच्ची के पैर सड़क पर जलते तो सुनीता कुछ देर के लिए गोद लेतीं, लेकिन कब तक, खुद भी थकी थीं। कुछ कदम बाद मजबूरी में बेटी को नीचे उतारना पड़ता। रास्ते में प्यास से हलक सूखे तो घनश्याम ने एक हाथ में पानी की कट्टी और गोद में एक साल की दूसरी बेटी को उठा लिया। पैदल आने पर सवाल हुआ, तो बेबस आंखों से निहारा। बोले, पैसे होते तो चप्पल खरीद लेते। रास्ते में कुछ सज्जन मिले तो पेट भर गया, पीने को पानी की कट्टी है। जो होगा प्रभु देखेंगे। शनिवार को पौ फटने के साथ हरियाणा, दिल्ली और पंजाब के हजारों प्रवासी मजदूरों का काफिला चल पड़ा। सैकड़ों किमी की पैदल दूरी तय कर कोटवन बाॅर्डर से मथुरा में दाखिल हुए, लेकिन यहां भी बेबसी ही हाथ लगी। यहां सुबह कुछ प्राइवेट बसें और ट्रक खड़े थे। मजबूरी एेसी कि तमाम मजदूरों की जेब में किराया भी नहीं, एेसे में आगे का सफर तो पैदल ही नसीब में लिखा था। हां, कुछ ट्रक चालक दिलदार थे, तो मुफ्त में बैठाया, लेकिन इनकी संख्या गिनी-चुनी थी। प्राइवेट बसें मनमर्जी से किराया लेकर फर्राटा भर रही थीं।
पैर ने थकाया, फिर भी बढ़ाए कदम
लखनऊ के मनोज, हंसराज, नीरज समेत सात साथी जालंधर में प्राइवेट कंपनी में कर्मचारी हैं। चार दिन पहले जालंधर से चले थे, कुछ दूर के लिए वाहन मिल गया, लेकिन अब जेब में पैसे नहीं। मनोज बताते हैं कि पैदल चलते-चलते एक पैर ने जवाब दे दिया, लेकिन दूसरे के सहारे उसे खींच रहे हैं। अब लखनऊ पहुंच ही जाएंगे। अमृतसर में मजदूरी कर रहे विकास, शंकर, निखित, सत्यानंद, चंचल देवी को पटना जाना है। एक सप्ताह से पैदल चल रही हैं। विकास बताते हैं कि दो माह पहले ही हम सब गए थे, अभी तो कमाई भी नहीं हुई थी कि सब बंद हो गया। जो पैसे थे, लाॅकडाउन में पेट भरने में खर्च हुए। अब तो रास्ते में दानवीरों का भोजन ही सहारा है। दिल्ली से साथियों के साथ कटिहार के लिए निकले अहमद रईस और बिट्टू की बेबसी आंखों में झलकी। बोले, अल्लाह से दुआ करता हूं, अगले जन्म में मजदूर न बनाए।
औरैया हादसे के बाद दोपहर में जागे अफसर
औरैया में ट्रकों की भिड़ंत में 25 प्रवासी मजदूरों की मौत के बाद जब प्रदेश सरकार एक्शन आई तो अफसरों ने आनन-फानन व्यवस्था की। हालांकि डीएम सर्वज्ञराम मिश्रा ने शुक्रवार शाम बैठकों में अफसरों को प्रवासी मजदूरों को ठहराने और उन्हें गंतव्य तक बसों से भेजने के निर्देश दिए थे। 10 बजे के बाद अफसरों ने मंडी समिति में प्रवासी मजदूरों को रुकाना शुरू किया और यहां से बसों के जरिए उन्हें रवाना किया। हालांकि दावा रात से ही मजदूरों को रोकने का किया जा रहा है। एसडीएम छाता डाॅ. सुरेश कुमार का कहना है कि प्रशासन की टीम लगी है, कोई ट्रक या अन्य साधन से निकल गया होगा।