World Heritage Week: सहेजते तो बदहाली पर न सिसकता देश का ये लिविंग हेरिटेज Agra News
महाजन कमेटी ने अक्टूबर 2006 में ताज को माना था लिविंग हेरिटेज। संस्कृति से दूर हो गया ताजमहल केंद्र व राज्य ने नहीं दिया जरा भी ध्यान।
आगरा, जागरण संवाददाता। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा मनाए जा रहे विश्व धरोहर सप्ताह का समापन सोमवार को होगा। 19 नवंबर से शुरू हुए सप्ताह में अलग-अलग स्मारकों में हुए कार्यक्रमों में धरोहर के संरक्षण का संदेश गूंजा। मगर दुनिया के सात अजूबों में शुमार ताजमहल की लिविंग हेरिटेज को आज तक नहीं सहेजा जा सका है। ताज अगर शरीर था, तो ताजगंज की संस्कृति उसका प्राण थी। नियम, कानून और बंदिशों में शरीर और प्राण अलग हो गए।
पर्यावरणविद अधिवक्ता एमसी मेहता की याचिका पर ताज को प्रदूषण से बचाने को 30 दिसंबर, 1996 को सुप्रीम कोर्ट ने ताज ट्रेपेजियम जोन बनाया था। इसके बाद समय-समय पर कोर्ट कमिश्नर यहां आते रहे और अपनी रिपोर्ट देते रहे। अक्टूबर, 2006 में कृष्णा महाजन समिति ने अपनी रिपोर्ट में ताज को लिविंग हेरिटेज माना था। कभी ताज का भाग रहे कटरा उमर खां, कटरा रेशम, कटरा जोगीदास और कटरा फुलेल को उसका भाग मानते हुए जोड़कर देखने को कहा था। इन कटरों से दक्षिणी गेट सीधे जुड़ता है। समिति ने सुझाव दिया था कि एएसआइ ताजमहल के चारों कटरों के संरक्षण को प्लान बनाए। चारों कटरों के गेटों का संरक्षण भी किया जाना था। इस दिशा में कुछ नहीं किया जा सका है। इससे ताज कांप्लेक्स केवल ताजमहल तक सीमित रह गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, पुलिस, टीटीजेड के चलते क्षेत्रीय लोग पाबंदियों में फंसे हुए हैं।
अधूरा और विकृत स्वरूप ही पेश हो रहा
ताज का अधूरा और विकृत स्वरूप दुनिया के सामने पेश किया जा रहा है। कृष्णा महाजन समिति की सिफारिशों पर अमल नहीं होने से स्मारक भारतीय दर्शन व संस्कृति से दूर हो गया है। अब राष्ट्रवादी सरकार है। हमें अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा।
- संदीप अरोड़ा, अध्यक्ष आगरा टूरिज्म डवलपमेंट फाउंडेशन
वर्षों बाद भी नहीं मिला वैकल्पिक मार्ग
ताज के आसपास बंदिशों से काम-धंधे चौपट हो रहे हैं। ताज की पाबंदियां नगला पैमा समेत उसके आसपास स्थित गांवों के लोगों के लिए आज भी मुसीबत बनी हुई हैं। वर्षों बाद भी इन गांवों के लिए वैकल्पिक मार्ग प्रशासन नहीं बना सका है।
- वसीम उद्दीन, क्षेत्रीय निवासी