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कभी थे मजबूर, हौसलों के पंखों से सपने सच करने को भरी उड़ान

कभी पढ़ाई से दूर मलिन बस्‍ती के बच्‍चे अब सीख रहे जिंदगी का हुनर। नहीं देखा था स्‍कूल का मुंह।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sat, 11 May 2019 05:04 PM (IST)Updated: Sat, 11 May 2019 05:04 PM (IST)
कभी थे मजबूर, हौसलों के पंखों से सपने सच करने को भरी उड़ान
कभी थे मजबूर, हौसलों के पंखों से सपने सच करने को भरी उड़ान

आगरा, विनीत मिश्रा। पढ़ाई का जोश था, लेकिन हालात से मजबूर थे। हौसले और जुनून से इन्होंने पढ़ाई शुरू की। किताबी ज्ञान मिला तो जज्बा और जवां हुआ। अक्षरों से दोस्ती के बाद आंखों ने हजार सपने देखे। उन सपनों को पूरा करने की जिद ने जिंदगी में उजियारा कर दिया। 

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हम बात कर रहे हैं मलिन बस्ती के उन बच्चों की जिन्हें परिवार के हालात ने पढ़ाई से दूर रखा। किसी के पिता मजदूरी करते हैं तो किसी के ढकेल लगाते हैं। हालत ऐसी नहीं कि वह स्कूल में दाखिला ले सकें। दूसरे बच्चों को स्कूल जाते देख मन में इच्छाएं हिलोरें लेतीं, लेकिन परिवार की मजबूरी उन्हें शांत कर देती। एक स्वयंसेवी संस्था का इन्हें सहारा मिला तो सपनों को पंख भी लग गए। नगला बूढ़ी में रहने वाला विशाल अब 12वीं में पढ़ता है। पिता मजदूरी करते थे, इसलिए स्कूल में दाखिला नहीं हुआ। चाइल्ड केयर वेलफेयर एसोसिएशन ने विशाल को पढ़ाना शुरू किया और एक स्कूल में दाखिला दिलाया। आंखों ने जो सपने देखे थे, उन्हें पूरा करने के जुनून में विशाल ने खुद को साबित किया। चित्रकला में हाथ हुनरमंद हैं, तो डीपीएस के एक शिक्षक विशाल को तराश रहे हैं। इसी बस्ती में रहने वाली वंदना अब दसवीं में पढ़ रही है। परिवार ने किसी तरह चौथी कक्षा तक पढ़ाया, लेकिन फिर हालात जवाब दे गए। संस्था के सहयोग से आगे की पढ़ाई जारी रखी। रोहित भी यहीं का रहने वाला है। नौवीं में पढ़ रहा रोहित दूसरी कक्षा से संस्था के सहयोग से पढ़ रहा है। खुद को साबित किया और कक्षाओं में अच्छे नंबर भी लाया। ये तीन बच्चे तो महज उदाहरण हैं। इनके जैसे सैकड़ों बच्चों ने हालात को मात देकर किताबों से दोस्ती की और जिंदगी के सपने सच कर रहे हैं।

किराये के स्कूलों में पढ़ाए बच्चे

चाइल्ड केयर वेलफेयर एसोसिएशन की अध्यक्ष मीना सिंघल और सचिव पूनम लाहोटी बताती हैं कि उन्होंने देखा कि गरीब बच्चे पढ़ नहीं पाते। ऐसे में उन्हें पढ़ाने के लिए 2004 में संस्था खोली। इसके लिए प्राइवेट स्कूलों को किराए पर लिया। सुबह स्कूल चलते थे और शाम को वह हमें बच्चों को पढ़ाने के लिए किराए पर मिलते थे। पहले मलिन बस्तियों में बच्चे ढूंढे। ऐसे बच्चे जो स्कूल नहीं जाते थे और जो स्कूल जाते थे, लेकिन पढ़ाई में कमजोर थे। स्कूल न जाने वाले बच्चों को पढ़ाकर उनका स्कूल में दाखिला तक कराया जाता है। वह बताती हैं कि नगला पदी में दो, नगला बूढ़ी और नारायणपुर में एक-एक स्कूल चलते हैं। वर्तमान में 470 बच्चे पढ़ रहे हैं।

आपसी सहयोग से जुटता खर्च

पूनम लाहोटी बताती हैं कि उनकी संस्था में 35 सदस्य हैं। सभी के आपसी सहयोग से इन स्कूलों का खर्च उठाते हैं। बच्चों को किताबें और यूनिफॉर्म दी जाती है। बच्चे का दाखिला स्कूल में कराते हैं, कुछ खर्च संस्था देती है तो कुछ परिजन। बच्चों को उनके परिजन स्कूल भेजें, इसलिए दाखिले के समय तीन सौ रुपये की सालाना फीस ली जाती है।  

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