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उम्मीदें 2020: खुशहाली लाया सुधांशु का Coffee With Kisaan, पढ़ें स्‍टार्ट अप की पूरी दास्‍तान Agra News

परंपरागत खेती छोड़ किसान करने लगे चिकोरी का उत्पादन होने लगा मुनाफा। एटा के चिकोरी प्रोसेसिंग प्लांट पर दर्जनों लोगों को मिल रहा रोजगार।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Wed, 01 Jan 2020 06:28 PM (IST)Updated: Wed, 01 Jan 2020 08:18 PM (IST)
उम्मीदें 2020: खुशहाली लाया सुधांशु का Coffee With Kisaan, पढ़ें स्‍टार्ट अप की पूरी दास्‍तान Agra News
उम्मीदें 2020: खुशहाली लाया सुधांशु का Coffee With Kisaan, पढ़ें स्‍टार्ट अप की पूरी दास्‍तान Agra News

आगरा, जेएनएन। चाय की फैक्ट्री में एक आम किसान सुधांशु माहेश्वरी ने कॉफी का ऐसा स्वाद तलाशा कि क्षेत्र के किसानों की सोच ही बदल दी। प्रोत्साहन दिया तो खेतीबाड़ी की परंपरा बदल चिकोरी की फसल उगाने लगे। चिकोरी कॉफी बनाने में प्रयुक्त की जाती है। आज दो सैकड़ा से ज्यादा किसानों के खेतों में उगने वाली चिकोरी हाथोंहाथ बिक रही है। क्षेत्र में ही लगे चिकोरी प्रोसेसिंग प्लांट में दर्जनों लोगों को रोजगार मिल गया है। सुधांशु का ये कॉफी विद किसान शो क्षेत्र में खुशहाली ले आया है।

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मिरहची निवासी सुधांशु माहेश्वरी के यहां ईंट भट्ठों का पुश्तैनी कारोबार था। खेतीकिसानी भी होती थी। सुधांशु ने परंपरागत कार्यों से आगे बढऩे और अन्य लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने की सोची। करीब आठ साल पहले उन्हें हिंदुस्‍तान यूनी लीवर लिमिटेड में मिले कुछ व्यापारी और अधिकारियों का चिकोरी प्लांट का आइडिया लिया। विशेषज्ञों से तकनीकी टिप्स लिए और कस्बा में ओम शिव चिकोरी प्रोसेस प्लांट स्थापित कर दिया। क्षेत्र में इस तरह का यह पहला प्लांट था।

इस प्लांट के लिए रॉ मैटेरियल के रूप में चिकोरी की जरूरत थी। इसके लिए किसानों को चिकोरी उत्पादन के लिए प्रेरित किया। परंपरागत खेती करने वाले किसान इस झमेले में पडऩे से हिचकने लगे। सुधांशु ने किसी 50-60 किसानों को अपने साथ जोड़ा और बीज भी मुहैया कराया। जब किसानों ने चिकोरी की खेती शुरु की तो एक फसल में प्रति बीघा 30 हजार रुपये का मुनाफा मिलने पर उनकी आंखें खुल गईं। फिर तो तेजी से किसान जुड़ते गए और अब यह आंकड़ा दो सैकड़ा से ऊपर पहुंच गया है। जो सैकड़ों बीघा जमीन पर चिकोरी का उत्पादन करते हैं। मिरहची में स्थापित प्रोसेसिंग प्लांट पर आसपास के सैकड़ों लोगों को रोजगार मिल रहा है। ये लोग यहां पर चिकोरी सुखाने, मशीन ऑपरेटिंग, पैकिंग आदि का काम करते हैं।

कड़वी चिकोरी नहीं खाते बेसहारा पशु

आम खेतीबाड़ी में प्रति बीघा अधिकतम 15-20 हजार रुपये का मुनाफा होता था। फसलों को बेसहारा जानवरों द्वारा बर्बाद करने की आशंका रहती थी। जबकि चिकोरी में कड़वाहट के कारण पशु इसे खराब नहीं करते।

हाथोंहाथ लेती कॉफी कंपनियां

सुधांशु माहेश्वरी बताते हैं कि हर साल दो से ढाई हजार टन चिकोरी प्रोसेस करते हैं। इतनी चिकोरी प्रोसेस करने के लिए एक लाख टन गीली चिकोरी की जरूरत होती है। जिसे सुखाने के बाद रोस्ट कर पैकिंग की जाती है। इसे देश के विभिन्न शहरों आपूर्ति करते हैं। इसका प्रयोग कंपनियां कॉफी बनाने में करती हैं। 


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