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Yamuna Pollution: यमुना नदी की डिसिल्टिंग तो छोड़िए, अध्ययन तक नहीं करा सकी सरकार, कैसे रहेगा जलस्‍तर बरकरार

यमुना में निरंतर सिल्ट जमा होते जाने से गहराई हो गई कम। शहरवासी निरंतर उठा रहे हैं नदी में डिसिल्टिंग के लिए आवाज। यमुना में 92 नाले गिरते हैं जिनमें से 61 सीधे यमुना में गिर रहे हैं। इससे उसमें शहर की गंदगी सीधे पहुंच रही है।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Fri, 25 Jun 2021 10:18 AM (IST)Updated: Fri, 25 Jun 2021 10:19 AM (IST)
Yamuna Pollution: यमुना नदी की डिसिल्टिंग तो छोड़िए, अध्ययन तक नहीं करा सकी सरकार, कैसे रहेगा जलस्‍तर बरकरार
यमुना की ये दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है।

आगरा, जागरण संवाददाता। ब्रज में जिस यमुना के पावन तट पर भगवान श्रीकृष्ण ने लीलाएं रचीं, शहंशाह शाहजहां ने जिसके तट पर ताजमहल का निर्माण कराया, वो दशकों से अपनी पीड़ा हरने का इंतजार कर रही है। नालों के साथ पहुंच रहे सीवेज और गंदगी ने उसे प्रदूषित तो किया ही है, दशकों से डिसिल्टिंग न हो पाने से उसकी गहराई भी कम हो गई है। यमुना को पुनर्जीवित करने को वर्षों से पर्यावरणप्रेमी और शहरवासी डिसिल्टिंग की मांग करते चले आ रहे हैं, लेकिन सरकार पिछले चार वर्षों में डिसिल्टिंग तो दूर रहा, ड्रेजिंग के लिए जरूरी अध्ययन तक नहीं करा सकी है।

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आगरा में यमुना नाले में तब्दील होकर रह गई है। यमुना में 92 नाले गिरते हैं, जिनमें से 61 सीधे यमुना में गिर रहे हैं। इससे उसमें शहर की गंदगी सीधे पहुंच रही है। कुछ माह पूर्व आगरा आए पर्यावरणविद अधिवक्ता एमसी मेहता ने भी यमुना की दशा को भयंकर माना था। प्रदूषण से जूझती यमुना में दशकों से डिसिल्टिंग नहीं हो सकी है, जिससे उसकी तलहटी में कई फुट ऊंचाई तक सिल्ट जमा हो चुकी है। उसके किनारों पर आठ से 10 फुट की ऊंचाई तक पालीथिन जमा है। इससे यमुना उथली हाे गई है। उसमें पानी रुकने के बजाय बहकर आगे बढ़ जाता है। इस वजह से उसमें मार्च-अप्रैल में पनपा कीड़ा गोल्डीकाइरोनोमस ताजमहल की सतह पर गंदगी के दाग छोड़ता है। पिछले दिनों नेशनल चैंबर आफ इंडस्ट्रीज एंड कामर्स के अध्यक्ष मनीष अग्रवाल और आगरा स्मार्ट सिटी के सलाहकार सदस्य राजेश खुराना ने यमुना में डिसिल्टिंग की मांग एक बार फिर उठाई है।

40 लाख ने अटकाया अध्ययन

जुलाई, 2017 में तत्कालीन कमिश्नर ने ताजमहल के पार्श्व में यमुना में ड्रेजिंग के लिए अध्ययन कराने के निर्देश दिए थे। सिंचाई विभाग ने स्वयं को असमर्थ बताते हुए उप्र प्रोजेक्ट्स कारपाेरेशन लिमिटेड को इसमें सक्षम बताया था। उसने आगणन कर 100 रुपये प्रति घन मीटर का खर्चा होने की जानकारी दी थी। इस काम की शुरुआत से पूर्व सिंचाई विभाग ने ड्रेजिंग के लिए नेशनल हाइड्रोलाजी इंस्टीट्यूट, रुड़की से अध्ययन कराने की आवश्यकता बताई। इंस्टीट्यूट ने एक वर्ष तक चलने वाले अध्ययन के लिए 40 लाख रुपये की फीस बताई थी। इसके बाद बात आगे नहीं बढ़ सकी।

इसलिए जरूरी है अध्ययन

सेंट्रल वाटर कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार नदी में ड्रेजिंग से पहले अध्ययन कराना आवश्यक है। इसमें प्रत्येक मौसम में नदी में जांच की जाती है।

डिसिल्टिंग व ड्रेजिंग में अंतर

डिसिल्टिंग से आशय अस्थायी तौर पर जमा हुई सिल्ट को हटाया जाना है, जबकि ड्रेजिंग में अस्थायी तौर पर जमा सिल्ट और जरूरत के अनुसार मिट्टी को भी हटाया जाता है।


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