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Kartik Purnima 2020: कार्तिक पूर्णिमा पर अगर कर लिये ये 8 उपाय तो लक्ष्मी जी की बरसेगी विशेष कृपा

Kartik Purnima 2020 30 नवंबर को है कार्तिक पूर्णिमा। शंकर भगवान ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था। इसी खुशी में देवताओं ने इस दिन स्वर्ग लोक में दीपक जलाकर उत्‍सव मनाया था। इसके बाद से हर साल इस दिन को देव दिवाली के रुप में मनाया जाता है।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Thu, 26 Nov 2020 03:09 PM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2020 03:09 PM (IST)
Kartik Purnima 2020: कार्तिक पूर्णिमा पर अगर कर लिये ये 8 उपाय तो लक्ष्मी जी की बरसेगी विशेष कृपा
हर साल इस दिन को देव दिवाली के रुप में मनाया जाता है।

आगरा, जागरण संवाददाता। दीपावली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के ही दिन देव दिवाली का त्योहार मानाया जाता है। ज्‍योतिषाचार्य डॉ शोनू मेहरोत्रा के अनुसार इस दिन शंकर भगवान ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था। इसी खुशी में देवताओं ने इस दिन स्वर्ग लोक में दीपक जलाकर उत्‍सव मनाया था। इसके बाद से हर साल इस दिन को देव दिवाली के रुप में मनाया जाता है। इस दिन पूजा का विशेष महत्व होता है। इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा 30 नवंबर को है। 

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इस त्योहार को लेकर यह भी मान्यता है कि इस दिन देवता पृथ्वी पर आते हैं। इस माह में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य आदि ने महापुनीत पर्वों को प्रमाणित किया है। जिस वजह से कार्तिक पूर्णिमा के पूरे महीने को काफी पवित्र माना जाता है।

इस दिन जरूर करें ये उपाए

- पवित्र नदी में स्नान करें, स्नान करने के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं।

- स्नान के बाद दीपदान, पूजा, आरती और दान करें।

- इस दिन तुलसी की पूजा करें।

- सत्यनारायण भगवान की कथा का श्रवण करें।

- शिवलिंग पर जल चढ़ाकर ॐ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें।

- हनुमान जी के सामने घी का दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें।

- गंगा या यमुना के तट पर स्नान कर दीप जलाकर देवताओं से मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद मांगें।

- इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से देवी लक्ष्मी सदा के लिए प्रसन्न हो जाती हैं। इसलिए इस दिन श्री हरि का पूजन करना बिल्कुल न भूलें।  

ये है कथा

पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था। उसके तीन पुत्र थे - तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए। तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्मजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।

तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।

तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।

इस दिव्य रथ की हर एक चीज़ देवताओं से बनीं। चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने। इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चाल घोड़े बनें। हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बनें। भगवान शिव खुद बाण बनें और बाण की नोक बने अग्निदेव। इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव।

भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया। इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा।


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