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National Integration Week 2020: हिंदू- मुस्लिम की आदत, इधर पूजा-उधर इबादत

National Integration Week 2020 आगरा के जगनेर रोड स्थित दरगाह कमाल खां व रेलवे कालोनी में बंगला मुखी के मंदिर में सभी धर्मों के लोग करते हैं पूूजा। शहर की अन्य दरगाह भी देती हैं सद्भावना का संदेश।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Tue, 24 Nov 2020 04:41 PM (IST)Updated: Tue, 24 Nov 2020 04:41 PM (IST)
National Integration Week 2020: हिंदू- मुस्लिम की आदत, इधर पूजा-उधर इबादत
शहर की अन्य दरगाह भी देती हैं सद्भावना का संदेश।

आगरा, सुबान खान। ताजनगरी के धार्मिक स्थलों में प्रेम और भाईचारे की बुनियाद इतनी गहरी है कि एक तरफ मंदिर में पूजा तो दूसरी ओर दरगाह में सजदा किया जाता है। मंदिर में जल चढ़ाने वाला हर शख्स दरगाह में मन्नत के फूल चढ़ाना नहीं भूलता। सुलहकुल की नगरी में ऐसे कई स्थान हैं जहां सर्वधर्म समाज पहुंचता है। हिंदू रमजान में रोजा रखते हैं और मुस्लिम होली, दीपावली के इंतजामों में सहयोग करते हैं। कौमी एकता सप्ताह में एकता और अखंडता का संदेश देने वाले धार्मिक स्थलों के बारे में बताती रिपोर्ट।

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एक ही परिसर में मंदिर और दरगाह

धनौली रोड पर दरगाह कमाल खां परिसर में तीन मंदिर है। यहां एक कोने में मंदिर है। दूसरे कोने में कमाल खां बाबा की मजार है। वर्षों तक दरगाह में खादिम (सेवादार) रहे फरमान मुल्लाजी अपने दादा नूर अली द्वारा बताई गई बात बताते हैं कि दरगाह अकबर के शासनकाल में तामीर हुई थी। इसके बाद ही दरगाह के बाएं तरफ काली माता के मंदिर की स्थापना हुई। दरगाह में आने वाले भक्तों ने काफी निर्माण कार्य कराया। उसके बाद दूसरे मंदिर का भी निर्माण हुआ और बीस बरस पहले तीसरा कमाल देवी मंदिर बनकर तैयार हो गया।

सर्वधर्म के लोग करते है सजदा

दरगाह मरकज साबरी में रोजाना बड़ी संख्या में जायरीन पहुंचते हैं। यहां पर अफगानिस्तान के बल्ख से आए हजरत फतिहउद्दीन बल्खी ताराशाह चिश्ती साबरी को 421 वर्ष हो गए। इस दरगाह में सर्वधर्म के लोग शीश झुकाते हैं। दर्जनों में मुस्लिम रोजा रखते हैं। सज्जादानशीं बताते हैं कि हिंदुस्तान में आकर ख्वाजा गरीब नवाज ने एकता का शंखनाद किया था।

मंदिर में चार सौ से ज्यादा मूर्तियां

आगरा कैंट स्थित रेलवे कालोनी में श्रीबंगला मुखी मंदिर है। यहां ुपर काबा शरीफ का नक्शा, गुरुद्वारे सहित सभी देवी देवताओं की लगभग 400 मूर्तियां हैं। मंदिर के पुजारी प्रदीप सेठी बताते हैं कि 80 वर्ष पहले केवल एक काली माता का मंदिर था। अब चारों दिशाओं में माता की मूर्ति स्थापित हैं। रमजान में यहां मुस्लिम समाज के लोग रोजा इफ्तार करते हैं।

यहां लगती है लाइन

माफी दरगाह नबी करीम (कदम रसूल) पर सबसे बड़ा उर्स बारावफात में होता है। यहां पर सभी धर्म के जायरीन पहुंचते हैं। इस्लाम के पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के पद चिन्हों का गुस्ल कराने के लिए लाइन लगती है। यह भी बादशाह अकबर के वक्त की बताई जाती है। 


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