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ये आगरा की कुश्‍ती है जनाब, जिसने दिए पहलवान बेहिसाब Agra News

कभी चंद गिनती के हुआ करते थे अखाड़े आज हैं दो दर्जन से अधिक। करीब एक हजार पुरुष और 15 महिला पहलवान हैं शहर में।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 29 Dec 2019 12:52 PM (IST)Updated: Sun, 29 Dec 2019 09:07 PM (IST)
ये आगरा की कुश्‍ती है जनाब, जिसने दिए पहलवान बेहिसाब Agra News
ये आगरा की कुश्‍ती है जनाब, जिसने दिए पहलवान बेहिसाब Agra News

आगरा,तनु गुप्‍ता। अमन पसंद ताजनगरी में कुश्‍ती के दाव पेच भी जमकर पसंद किये जाते हैं। कलात्‍मक पसंद के साथ यहां के बाशिंदों को पहलवानी के गुर भी कुछ कम पसंद नहीं है। शहर में इन दिनों तीन दिवसीय द्व‍ितिय ट्रेडिशनल सीनियर नेशनल चैंपियनशिप का आयोजन आगरा कॉलेज मैदान पर चल रहा है। कुश्‍ती और आगरा का संबंध इतना भर नहीं है। आजादी से पहले से यहां अखाड़ों में पहलवान अपना दम खम दिखाते रहे हैं।

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बात करीब चार दशक पहले की है। जब शहर में कुछेक ही अखाड़े हुआ करते थे। पहलवान भी कुछ गिनती के ही थे। मूलत: पारिवारिक विरासत को आगे ले जाने वाले या सेहतमंद रहने के शौकिन लेकिन किताबी ज्ञान में कुछ कम रुचि रखने वाले लोग ही इस पेशे में आते थे। बहुतेरे तो ऐसे भी थे जो कुश्‍ती को बतौर पेशा नहीं बल्कि बतौर शौक ही लेते थे और अखाड़े में कूद जाते थे। इसमें दो राय नहीं है कि आगरा की माटी के लाल ही पूर्व डिप्‍टी एसपी स्‍व तेज सिंह, निरंजन पहलवान, सोबरन सिंह, गुलाम साबिर,सूरज, उदय सिंह जैसे दर्जनों नामाेें के कारण ही शहर को दंगल के क्षेत्र में गौरवशाली विरासत मिली। यहां के दंगल इतने मशहूर थे कि रुस्‍तम ए हिंद और फिल्‍म अभिनेता दारा सिंह 1980 में आगरा आए। ये बात और है कि आयोजकों से विवाद होने के कारण कुछ कानूनी उलझनों में उन्‍हें उलझना पड़ा और एक कड़वी याद वे यहां से लेकर गए।

अखाड़ों से स्‍टेडियम तक

आगरा और कुश्‍ती का इतिहास यूं तो काफी पुराना है लेकिन 90 से 2010 तक का दौर स्‍याह यादें लिए हुए था। ये वो दौर था जब दंगल में राजनीति हावी हो गई और पहलवान कुश्‍ती के दाव पेच की जगह दिमागी खेल करने लगे। हर काली रात की तरह उम्‍मीद की सुबह आई और फिर सुनहरा उजाला हुआ। इस उजाले को लाने का श्रेय युवा पहलवान नेवी से रिटायर्ड नेत्रपाल सिंह चाहर को देते हैं।

स्‍टेडियम के काेच नेत्रपाल सिंह पांच वर्ष पूर्व नेवी से सेवानिवृत होकर जब आगरा आए तो उन्‍होंने देखा कि शहर में कुश्‍ती की प्रतिभाओं की कमी नहीं है लेकिन सही मार्गदर्शन इस प्रतिभा को यहीं खत्‍म कर रहा है। जो प्रतिभावान हैंं वो आगरा से सुविधाओं की कमी के कारण पलायन कर रहे हैं। नेत्रपाल सिंह के अनुसार 35 साल की अपनी नौकरी में वे 26 साल कुश्‍ती के कोच रहे। कई इंटरनेशनल प्रतियोगिताएं उन्‍होंने जितवाईं। आगरा आकर उन्‍होंने स्‍टेडियम को कुश्‍ती के लायक बनाने की ठानी। इसके लिए सबसे पहले उन्‍होंने टैंट के गद्दे मंगवाए। इसके बाद लगातार प्रयास कर प्रतिभाओं को तराशा। आगरा जो कभी प्रदेश में किसी भी स्‍तर पर कुश्‍ती में नहीं आता था वो आज तीसरे नंबर पर पहुंच गया है। स्‍टेडियम में मैट लगवाकर पहलवानों को हर सुविधा मुहैया कराने का श्रेय उन्‍हीं को जाता है।

उच्‍च शिक्षा से दंगल तक

सुशील कुमार, जोगेंद्रर सिंह, गीता- बबिता फोगाट जैसे कुश्‍ती की मिसालों के बाद पहलवानी के पेशे को शिक्षा के क्षेत्र में कमतर मानने की सोच आज बदल गई है। आज माता पिता बच्‍चों को कुश्‍ती का विधिवत प्रशिक्षण दिलवाना चाहते हैं।

एक चैनल के डायरेक्‍टर राजकुमार चाहर सेंट कॉनरेड इंटर कॉलेज में पढ़ने वाले अपने 15 वर्षीय बेटे यशोवर्धन चाहर को सोनीपत की एक एकडमी से कुश्‍ती का प्रशिक्षण दिलवा रहे हैं। 70 किलो वर्ग में उसे वे भविष्‍य में ट्रेनिंग के लिए विदेश भेजना चाहते हैं। यशोवर्धन की मां स्‍वयं एक कॉन्‍वेंट स्‍कूल चलाती हैं। राजकुमार का कहना है कि उनके परिवार से कई लोग सेना में अधिकारी हैं। कुश्‍ती का खेल भी देश सेवा ही है। उनकी ख्‍वाहिश है कि बेटा आगे चलकर देश के लिए खेले और दुनिया में नाम रोशन करे।

कलक्‍ट्रेट में पेशकार रामगोपाल का बड़ा बेटा आइएएस की तैयारी कर रहा है और वे छोटे बेटे धमेंद्र को कुश्‍ती के दाव पेच सिखवा रहे हैं। धमेंद्र नवोदय विद्यालय से इंटर में 92 फीसद अंकों के साथ उतीर्ण हुआ था। धमेंद्र प्रदेशस्‍तर पर ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी चैंपियनि‍शिप खेल चुका है।

शहर का उभरता किशोर पहलवान हुसैन खान अपने परिवार की विरासत को आगे बढ़ा रहा है। सेना के पूर्व जवान और वर्तमान में पत्रकार एमडी खान का बेटा हुसैन एक कॉन्‍वेंट स्‍कूल में सातवीं का छात्र है। 57 किलो वर्ग में वो कई बार प्रदेश स्‍तर पर खेल चुका है। उसके पिता एमडी खान का कहना है कि हुसैन अपने परिवार की पांचवी पीढ़ी का पहलवान है। उनकी इच्‍छा है कि हुसैन दंगल की तालीम के साथ एकडमिक तालीम भी ले और विश्‍व पटल पर देश का नाम रोशन करे।

वर्तमान में कुश्‍ती की प्रतिभाएं

शहर में हर आयु वर्ग के कुल एक हजार पहलवान हैंं। इसके अलावा एक दर्जन पहलवान दिल्‍ली, हरियाणा, पंजाब और महाराष्‍ट्र में प्रशिक्षण ले रहे हैं। 15 लड़कियां भी पहलवान हैं। जिनमें चर्चित नाम सोलंकी बहनों का है। सात बहनाेें में से दो बहनें नीलम और पूनम सोलंकी नेशनल तक जा चुकी हैं। उनके अलावा आगरा को एशियन चैंपियनशिप जिताने वाली भारती बघेल हैं। रूमी भगौट भी इंटरनेशनल तक खेल चुकी हैं। लड़कियों के अलावा शहर को युवा पुरुष पहलवानों पर भी नाज है। 65 किलो वर्ग में अनीस खान को भारत केसरी की उपाधि मिल चुकी है। 125 किलो वर्ग में मनजीत चाहर को इंडियम स्‍कूल गेम में गोल्‍ड और चित्रांशु भगौर को 38 किलो में ब्रॉंज मिल चुका है। धरमवीर धनगर स्‍टेट गेम में सिल्‍वर और धमेंद्र सिंह जुनियर स्‍टेट प्रतियोगिता में ब्रॉन्‍ज जीतकर ला चुके हैं।

मिट्टी करती है दवा का काम

मल्ल का चबूतरा अखाड़े के उस्ताद मताउद्दीन खान पहलवान बताते हैं कि अखाड़े की मिट्टी हर जख्‍म को भरने का काम करती है। हल्‍दी की तरह ये एंटीसेप्टिक दवा होती है। पहलवानी के लिए की जाने वाली कसरत, पहलवान को शारीरिक रूप से फिट रखती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। अखाड़े की मिट्टी को तैयार करने के लिए हल्दी, चूना और सरसों का तेल डालकर अखाड़ा बनाया जाता है। जिसमें पहलवानों को चोट लगने के बाद मिट्टी दवा का काम करती है।

मिली है गवर्नमेंट जॉब

कुश्‍ती में शहर का नाम रोशन करने वाले तेज सिंह पहलवान डिप्‍टी एसपी के पद से रिटायर्ड हुए थे। उनके अलावा सैकड़ों युवा सीधे सेना में चयनित हुए हैं। आर्मी और रेलवे में स्टेट और नेशनल खेलने के बाद ही मौका मिल जाता है। अकेले मताउद्दीन खान पहलवान के परिवार की बात करें तो उनके परिवार से 18 लोग सेना और पुलिस में स्‍पोर्ट कोटे से ही भर्ती हुए थे।

ये हैं आगरा के दांव

निकल दांव, सारंगी दांव, ढाक, डिब्बी दांव, मुल्तानी, बहरली दांव, भीतरली, बांगुड़ी, डेकुली, पट्टे आदि के अलावा धोबी पाट और कला जंग सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं।

बॉडी रहती है मेनटेन

जिम में बॉडी बनाने वाले युवक जैसे ही उसे छोड़ते हैं, शरीर फिर से कमजोर पडऩे लगता है या बेडौल हो जाता है। जबकि देसी कसरत जहां छोड़ो, शरीर उतना ही हमेशा के लिए मेनटेन रहता है। श्‍वांस संबंधित परेशानी नहीं होती। इतना ही नहीं बुरी लत मसलन शराब, तंबाकू यदि कोई खाता भी है तो दंगल की मिट्टी में कसरत करते करते हर गलत आदत अपने आप छूट जाती है। अखाड़ों में गर्मी हो या सर्दी बादाम का सेवन खूब करवाया जाता है। देसी खाना साग आदि यहां भोजन में प्रतिदिन शामिल होते हैं। जबकि इससे इतर जिम में संचालक खुद युवकों को सप्लीमेंट खाने की सलाह देते है जोकि शरीर के लिए खतरनाक होते हैं। हाईप्रोफाइल एक्‍सरसाइज की मशीनों से अलग यहां रस्‍सा, चिनअप, लोहे के पाइप, जेसीबी का पहिया, फावड़ा, मैज, लकड़ी के मुदगल, डंबल आदि यहां कसरत के लिए प्रयोग किये जाते हैं।

ये हैं अखाड़े

शहर का सबसे पुराना अखाड़ा मोती कटरा स्थित धन्‍नामल की बगीची है। करीब 90 वर्ष पुराने इस अखाड़े ने दर्जनों पहलवान दिए। शाहगंज स्थित मल्‍लका चबूतरा की बगीची। 70 वर्ष पुराने इस अखाड़े में स्थित हनुमान मंदिर पर अखंड ज्‍योति शुरुआती दिनों से आज तक प्रज्‍जवलित है। इसके अलावा कलक्‍ट्रेट स्थित निरंजन अखाड़ा, बगदा गांव ताजगंज में रामनाथ अखाड़ा, शमशान घाट ताजगंज अखाड़ा, राठौड़ अखाड़ा ताजगंज, कालिंदी बिहार, लखनपुर, शास्‍त्रीपुरम अखाड़ा, जग्‍गो पहलवान का लौह करेरा रुनकता में अखाड़ा, मौनी बाबा का किरावली में अखाड़ा, अकोला में चार अखाड़े, जारुआ कटरा में रविंद्र पहलवान का अखाड़ा, बाली पहलवान का शमशाबाद में अखाड़ा, बाह में प्रहलाद अखाड़ा, श्‍यामवीर पहलवान का फतेहाबाद में अखाड़ा, कुंआ खेड़ा, समोवर गांव में अखाड़े, सुंदर पहलवान का ताजगंज में अखाड़ा, कलुआ पहलवान का गांव सेमरा खंदौली में अखाड़ा, राजेंद्र पहलवान का आंवलखेड़ा में अखाड़ा, पप्‍पू और अमीन पहलवान का नेकपुर में अखाड़ा, शमशेर पहलवान का गोविंदपुर गांव में अखाड़ा, पैंती खेड़ा खंदौली में आखाड़ा, भोला पहलवान का नराइच में अखाड़ा, सहारा गांव अखाड़ा। इसके अलावा एकलव्‍य स्‍टेडियम और रेलवे स्‍टेडियम में भी अखाड़े हैं जहां मैट पर प्रैक्टिस पलहवान करते हैं। किरावली का मौनी बाबा का अखाड़ा, बगदा गांव का रामनाथ अखाड़ा और शाहगंज का मल्‍ल का चबूतरा बगीची आज समय के साथ आधुनिक हो गई है। यहां नई तकनीक के साथ पहलवानाेें प्रशिक्षण दिलाया जाता है।

आगरा में बन रही है कुश्‍ती की एकेडमी

कुश्‍ती में प्रतिभाओं को और निखारने के लिए फतेहपुर सीकरी के पास फतौली नहर पर कुश्‍ती की एकेडमी बन रही है। जहां प्रतिभाओं को विधिवत तरीके से तराशा जाएगा। उधर अकोला में भी कुश्‍ती के लिए नया स्‍टेडियम बनने जा रहा है। 


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