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Navratra 2020: नवरात्र में माता का तीसरा स्वरूप करता है हर संकट में रक्षा, ये है आज का पूजन मंत्र

Navratra 2020 श्रीदुर्गा सप्तशती में नाद अर्थात् स्वरविज्ञान को देवी तत्व माना गया है। दशभुजी स्वर्गस्वरूपा माँ चन्द्रघण्टा शान्ति की प्रतीक हैं। किन्तु युद्ध के लिए उद्यत रहती हैं। असुरों का संहार करने के लिए देवी भगवती ने अपने शस्त्रों के साथ नाद का भी प्रयोग किया था।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 19 Oct 2020 07:55 AM (IST)Updated: Mon, 19 Oct 2020 07:55 AM (IST)
Navratra 2020: नवरात्र में माता का तीसरा स्वरूप करता है हर संकट में रक्षा, ये है आज का पूजन मंत्र
देवी भगवती का तीसरा विग्रह चन्द्रघण्टा का है।

आगरा, जागरण संवाददाता। देवी भगवती का तीसरा विग्रह चन्द्रघण्टा का है। यह स्वरुप भगवान शंकर की शक्ति का है। शिखर पर चंद्र और नाद उनकी शक्ति है। देवी को नाद प्रिय है। सृष्टि की संरचना के बाद स्वर, व्यंजना, रूप, रस, गन्ध और संगीत का प्रादुर्भाव हुआ। यही शक्ति वाग्देवी कहलायी। देवासुर संग्राम में देवी भगवती ने महिसासुर से यद्ध नाद से ही लड़ा।

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धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार श्रीदुर्गा सप्तशती में नाद अर्थात् स्वरविज्ञान को देवी तत्व माना गया है। दशभुजी स्वर्गस्वरूपा माँ चन्द्रघण्टा शान्ति की प्रतीक हैं। किन्तु युद्ध के लिए उद्यत रहती हैं। असुरों का संहार करने के लिए देवी भगवती ने अपने शस्त्रों के साथ नाद का भी प्रयोग किया था। अपने इस चरित्र के माध्यम से भगवती कहती हैं कि मित्र या शत्रु कभी स्थाई नहीं रहते। हमारे मन, वचन और कर्म ही मित्र और शत्रु बनाते हैं। यही तीनों चीजें हमारे दुःख और तनाव के कारण भी होती हैं। अतः चन्द्रघण्टा देवी मन, वचन और कर्म को साधने की शिक्षा देती हैं।

इनकी उपासना मूल मन्त्र तो यही है कि हम मन, वचन और कर्म को सही दिशा में ले जाएँ। करुणा, क्षमा, शीतलता, शान्ति की शिक्षा देते हुए देवी चन्द्रघण्टा भक्तों को वैभव, वीरता एवं निर्भीकता प्रदान करती हैं। संगीत इनको प्रिय है। देवी पुराण में एसा माना गया है कि इनकी कृपा से ही जगत को स्वर और नाद प्राप्त हुआ।

चन्द्रघण्टा देवी सरस्वती का स्वरुप हैं। छात्रों, संगीत, स्वरों और साहित्य में रूचि रखने वाले को केवल एक बीज मन्त्र से आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। ब्राह्म मुहूर्त में या प्रातः 9 बजे से पहले मानसिक जप करने से फल की प्राप्ति होती है। देवी का पूजन हल्दी से करें। पीले पुष्प चढ़ायें। श्रीदुर्गा सप्तशती का एक से तीन तक अध्याय पढ़ें।

मन्त्र और ध्यान निम्न है-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता

प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।  


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