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कालभैरव जयंती: जीवन में भय से मुक्ति पानी है तो आज करें शिव के रौद्र रूप की पूजा Agra News

धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार कालभैरव भगवान शिव का रौद्र रूप हैंं। काल भैरव की पूजा से रोगों और दुखों से निजात मिल जाता है। रात्रि में है पूजा का विधान।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 12:15 PM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 07:16 PM (IST)
कालभैरव जयंती: जीवन में भय से मुक्ति पानी है तो आज करें शिव के रौद्र रूप की पूजा Agra News
कालभैरव जयंती: जीवन में भय से मुक्ति पानी है तो आज करें शिव के रौद्र रूप की पूजा Agra News

आगरा, तनु गुप्‍ता। जीवन के हर भय से मुक्ति को देने वाले हैं काल भैरव। भगवान शिव का रूप को जीवन के हर कष्‍ट को करता है दूर। मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव अष्टमी के रूप में मनाई जाती है। काल भैरव को बीमारी, भय, संकट और दुख को हरने वाले स्वामी माने जाते हैं। इनकी पूजा से हर तरह की मानसिक और शारीरिक परेशानियां दूर हो जाती हैं।

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धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार कालभैरव दो शब्दों से मिलकर बना है। काल और भैरव। काल का अर्थ मृत्यु, डर और अंत। भैरव का मतलब है भय को हरने वाला यानी जिसने भय पर जीत हासिल की हो। काल भैरव की पूजा करने से मृत्यु का भय दूर होता है और कष्टों से मुक्ति मिलती है। कालभैरव भगवान शिव का रौद्र रूप हैंं। काल भैरव की पूजा से रोगों और दुखों से निजात मिल जाता है।

पूजा मुहूर्त

पंडित वैभव जोशी के अनुसार 19 नवंबर को मार्गशीर्ष माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि दोपहर 03 बजकर 35 मिनट से शुरू होगी और इसकी समाप्ति 20 नवंबर को दोपहर 01 बजकर 41 मिनट पर होगी। काल भैरव की पूजा रात्रि को शुभ मुहूर्त में की जाती है।

क्‍या है जन्‍म कथा

पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि शिव के भैरव रूप में प्रकट होने की अद्भुत घटना है कि एक बार सुमेरु पर्वत पर देवताओं ने ब्रह्मा जी से प्रश्न किया कि परमपिता इस चराचर जगत में अविनाशी तत्व कौन है जिनका आदि-अंत किसी को भी पता न हो ऐसे देव के बारे में बताने का हमें कष्ट करें। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि इस जगत में अविनाशी तत्व तो केवल मैं ही हूंं क्योंकि यह सृष्टि मेरे द्वारा ही सृजित हुई है। मेरे बिना संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जब देवताओं ने यही प्रश्न विष्णुजी से किया तो उन्होंने कहा कि मैं इस चराचर जगत का भरण-पोषण करता हूंं,अतः अविनाशी तत्व तो मैं ही हूंं। इसे सत्यता की कसौटी पर परखने के लिए चारों वेदों को बुलाया गया। चारों वेदों ने एक ही स्वर में कहा कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है,जिनका कोई आदि- अंत नहीं है,जो अजन्मा है,जो जीवन- मरण सुख- दुःख से परे है, देवता-दानव जिनका समान रूप से पूजन करते हैं, वे अविनाशी तो भगवान रूद्र ही हैं। वेदों के द्वारा शिव के बारे में इस तरह की वाणी सुनकर ब्रह्मा जी के पांचवे मुख ने शिव के विषय में कुछ अपमानजनक शब्द कहे जिन्हें सुनकर चारों वेद अति दुखी हुए।

इसी समय एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए। ब्रह्मा जी ने कहा कि हे रूद्र! तुम मेरे ही शरीर से पैदा हुए हो अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम 'रूद्र' रखा है अतः तुम मेरी सेवा में आ जाओ, ब्रह्मा के इस आचरण पर शिव को भयानक क्रोध आया और उन्होंने भैरव नामक पुरुष को उत्पन्न किया और कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो। उस दिव्यशक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमानजनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा के पांचवे सिर को ही काट दिया जिसके परिणामस्वरूप इन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा। शिव के कहने पर भैरव ने काशी प्रस्थान किया जहां उन्हें ब्रह्महत्या से मुक्ति मिली। रूद्र ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया। आज भी ये काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। इनके दर्शन किए बिना विश्वनाथ के दर्शन अधूरे रहते हैं ।

इस विधान से करें पूजन

पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि रात्रि में भगवान काल भैरव की पूजा काले कपड़े पहनकर करनी चाहिए। आसन भी काले कपड़े का होना चाहिए। पूजा में अक्षत, चंदन, काले तिल, काली उड़द, काले कपड़े, धतुरे के फूल का प्रयोग करना चाहिए। इन्हें नीले फूलों की माला भी अर्पित कर सकते हैं। माना जाता है कि इस दिन काल भैरव को शराब का भोग लगाने से वह प्रसन्न हो जाते हैं। व्रत रखने वालों को काल भैरव जयंती पर काले कुत्ते को अपने हाथों से बना हुआ भोजन कराना चाहिए। क्योंकि काला कुत्ता भैरव का वाहन माना जाता है।

कालभैरव के प्रसिद्ध मंदिर

काल भैरव मंदिर, काशी

वैसे तो भारत में बाबा कालभैरव के अनेक मंदिर है जिसमें से काशी के काल भैरव मंदिर विशेष मान्यता है। यह काशी के विश्वनाथ मंदिर से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद जो भक्त इनके दर्शन नहीं करता है उसकी पूजा सफल नहीं मानी जाती है।

कालभैरव मंदिर, उज्जैन

काशी के बाद भारत में दूसरा प्रसिद्ध कालभैरव का मंदिर उज्जैन नगर के क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। यहां ऐसी परांपरा है कि लोग भगवान काल भैरव को प्रसाद को रुप में केवल शराब ही चढ़ाते हैं।

बटुक भैरव मंदिर,नई दिल्ली

बटुक भैरव मंदिर दिल्ली के विनय मार्ग पर स्थित है। बाबा बटुक भैरव की मूर्ति यहां पर विशेष प्रकार से एक कुएं के ऊपर विराजित है। यह प्रतिमा पांडव भीमसेन काशी से लाए थे।

बटुक भैरव मंदिर पांडव किला

दिल्ली में बाबा भैरव बटुक का मंदिर प्रसिद्ध है। इस मंदिर की स्थापना पांडव भीमसेन के द्वारा की गई थी। वास्तव में पांडव भीमसेन द्वारा लाए गए भैरव दिल्ली से बाहर ही विराज गए तो पांडव बड़े चिंतित हुए। उनकी चिंता देखकर बटुक भैरव ने उन्हें अपनी दो जटाएं दे दीं और उसे नीचे रख कर दूसरी भैरव मूर्ति उस पर स्थापित करने का निर्देश दिया।

घोड़ाखाड़ बटुक भैरव मंदिर, नैनीताल

नैनीताल के समीप घोड़ाखाल का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यह गोलू देवता के नाम से प्रसिद्धि है। मंदिर में विराजित इस श्वेत गोल प्रतिमा की पूजा के लिए प्रतिदिन श्रद्धालु भक्त पहुंचते हैं।

कालभैरव की प्रमुख बातें

- कालभैरव भगवान शिव के अवतार हैं और ये कुत्ते की सवारी करते है।

- भगवान कालभैरव को रात्रि का देवता माना गया है।

- कालभैरव काशी का कोतवाल माना जाता है।

- काल भैरव की पूजा से लंबी उम्र की मनोकामना पूरी होती है।

- काल भैरव की आराधनाका समय मध्य रात्रि में 12 से 3 बजे का माना जाता है।

- काल भैरव की उपासना में चमेली का फूल चढ़ाया जाता है।

- भैरव मंत्र,चालीसा, जाप और हवन से मृत्यु का भय दूर हो जाता है।

- शनिवार और मंगलवार के दिन भैरव पाठ करने से भूत प्रेत और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिल जाती है।

- जो लोग शनि, राहु-केतु और मंगल ग्रह से पीड़ित हैं उनको काल भैरव की उपासना जरूर करनी चाहिए।

- भैरव जी का रंग श्याम वर्ण तथा उनकी चार भुजाएं हैं। भैरवाष्टमी के दिन कुत्ते को भोजन करना चाहिए। 


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