Move to Jagran APP

Pitra Paksha 2020: बहुत महत्वपूर्ण है श्राद्धपक्ष में कल का दिन, यहां पढ़ें महत्व, पूजन विधि एवं कथा भी

Pitra Paksha 2020 13 सितंबर को है इंदिरा एकादशी। व्रत एवं पूजन के साथ तर्पण करने से मिलती है पितरों को मुक्ति।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sat, 12 Sep 2020 08:52 AM (IST)Updated: Sat, 12 Sep 2020 01:16 PM (IST)
Pitra Paksha 2020: बहुत महत्वपूर्ण है श्राद्धपक्ष में कल का दिन, यहां पढ़ें महत्व, पूजन विधि एवं कथा भी
Pitra Paksha 2020: बहुत महत्वपूर्ण है श्राद्धपक्ष में कल का दिन, यहां पढ़ें महत्व, पूजन विधि एवं कथा भी

आगरा, जागरण संवाददाता। यूं तो श्राद्ध पक्ष की हर तिथि बहुत ही महत्वपूर्ण होती है लेकिन कल यानि 13 सितंबर को जो तिथि है वो अपने आप में विशेष स्थान रखती है। कल इंदिरा एकादशी हे। श्राद्ध पक्ष की ये तिथि पितरों की कृपा प्राप्त करने का अवसर होती है। ज्योतिषाचार्य डॉ शाेनू मेहरोत्रा के अनुसार इंदिरा एकादशी के दिन व्रत रखने, भगवान विष्णु की पूजा करने और इंदिरा एकादशी की कथा सुनने का विशेष महत्व होता है। इस दिन व्रत करके मिलने वाले पुण्य से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। व्रत के पुण्य का दान पितरों को कर दिया जाए, तो उनको भी मोक्ष मिलता है। 

loksabha election banner

ये है महत्व

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी इंदिरा एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है। इस व्रत का पितृपक्ष के समय में बहुत बड़ा महत्व है। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। यदि आप इस व्रत का पुण्य पितरों को दान कर देते हैं, तो उनको भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। उनको बैकुण्ठ धाम में भगवान श्री हरि विष्णु के श्री चरणों में स्थान प्राप्त होता है। यमलोक में यमराज जिन पितर को दंड स्वरुप नरक लोक का कष्ट देते हैं, वे इंदिरा एकादशी व्रत के पुण्य से मोक्ष पाते हैं।

व्रत एवं पूजा मुहूर्त

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 12 सितंबर दिन शनिवार को दोपहर 03 बजकर 43 मिनट से हो रहा है। इसका समापन 13 सितंबर को दोपहर 02 बजकर 46 मिनट पर होगा। ऐसे में इंदिरा एकादशी का व्रत 13 सितंबर रविवार को रखा जाएगा।

व्रत कथा

सतयुग में महिष्मति नाम का एक नगर था, जिसका राजा इंद्रसेन था। वह बहुत ही प्रतापी राजा था। वह अपनी प्रजा का भरण-पोषण संतान के समान करता था। उसकी प्रजा उसके शासन में सुखी थी। किसी को भी किसी चीज की कमी न थी। राजा इंद्रसेन भगवान श्रीहरि विष्णु का परम भक्त था।एक दिन अचानक नारद मुनि का राजा इंद्रसेन की सभा में आगमन हुआ। वे इंद्रसेन के पिता का संदेश लेकर वहां पहुंचे थे। उन्होंने राजा को वह संदेश दिया। उनके पिता ने कहा था कि पूर्व जन्म में किसी गलत कर्म या विघ्न के कारण वह यमलोक में ही हैं। यमलोक से मुक्ति के लिए उनके पुत्र को इंदिरा एकादशी का व्रत करना होगा, ताकि उनको मोक्ष की प्राप्ति हो।संदेश पाकर राजा इंद्रसेन ने नारद मुनि से इंदिरा एकादशी व्रत के बारे में बताने को कहा। तब नारद जी ने कहा कि यह एकादशी आश्विन मास के कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को पड़ती है।

एकादशी तिथि से पूर्व दशमी को विधि विधान से पितरों का श्राद्ध करें और एकादशी तिथि के दिन व्रत का संकल्प करें। फिर भगवान पुंडरीकाक्ष का ध्यान करें और उनसे पितरों की रक्षा का निवेदन करें।नारद जी ने आगे बताया कि फिर शालिग्राम की मूर्ति स्थापित करके विधिपूर्वक पितरों का श्राद्ध करें। उसके उपरांत भगवान ऋषिकेश की विधि विधान से पूजा आराधना करें। रात्रि के प्रहर में भगवत वंदना एवं जागरण करें। अगले दिन द्वादशी तिथि को स्नान आदि से निवृत होकर भगवान की वंदना करें तथा ब्राह्मणों को भोजन कराएं एवं दक्षिणा दें। इसके बाद परिजनों के साथ स्वयं भी भोजन करें। देवर्षि ने राजा इंद्रसेन से कहा कि इस प्रकार व्रत करने से तुम्हारे पिता को मोक्ष की प्राप्ति होगी, उनको श्रीहरि चरणों में स्थान प्राप्त होगा। राजा इंद्रसेन ने आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को नारद जी के बताए अनुसार व्रत किया, जिसके पुण्य से उनके पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई और वे बैकुण्ठ धाम चले गए। इंदिरा एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से राजा इंद्रसेन भी मृत्यु के पश्चात मोक्ष को प्राप्त हुए और वे भी बैकुण्ठ धाम चले गए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.