Diwali Celebration: पटाखों के धमाकों में कहीं थम न जाए खुशियों का शोर, रखें इन बातों का ध्यान, साथ में जानिए इतिहास भी Agra News
मानक से अधिक आवाज बना सकती है बहरा तो हो सकता है गर्भपात भी। मुगलकाल पुराना है पटाखों का इतिहास।
आगरा, तनु गुप्ता। दीपमालिका का पर्व दीपोत्सव की प्रमुख आकर्षण इस दिन चलने वाले पटाखे होते हैं। अनार, रॉकेट, सुतली बम, फुलझडि़यां आदि जब जलाए जाते हैं तो एक मासूम सी मुस्कान हरेक के चेहरे पर स्वत: ही आ जाती हैै। यदि बालमन से पूछा जाए तो दीवाली का मतबल सिर्फ पटाखे ही तो हैं। बुद्धिजीवी और सेहत के फिक्रमंद लोग पटाखों के दुष्प्रभावों के चलते इनका विरोध करते हैं पर हर दीवाली पटाखों का शोर कम होने की जगह दोगुना हो जाता है। इस शोर को कम करना हरेक के हाथ में तो नहीं है लेकिन कुछ सावधानियां बरत कर इनसे होने वाले नुकसान से तो बचा ही जा सकता है।
पटाखों की धमक बना सकती है बहरा
सीनियर ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ आरएस गिल के अनुसार पटाखों की आवाज 125 डेसीबल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। छोटे बच्चों और बुजुर्गों के कान में अचानक 120 डेसीबल से ज्यादा की आवाज कई बार उनमें बहरेपन का कारण बन सकती है। इसके अलावा इसका खतरा उन लोगों को भी ज्यादा होता है, जिनको कान संबंधी बीमारियां होती हैं। सामान्य तौर पर दीवाली पर पटाखों के शोर को डेसीबल में नहीं नापा जा सकता। लेकिन इस बात का इसी से लगाया जा सकता है कि सामान्य बातचीत में आदमी की आवाज औसतन 60 डेसीबल होती है और हेडफोन पर गाने सुनने पर आवाज 100-110 डेसिबल होती है, जबकि, सामान्य पटाखों से कम से कम 140-200 डेसिबल आवाज निकलती है, जो कान के लिए नुकसानदायक हो सकती है। इसके अलावा धमाकों की आवाज से टिनिटस की बीमारी भी हो सकती है। इसमें व्यक्ति को बिना कुछ बोले ही आवाज सुनाई देती है। कई बार पटाखों की आवाज बार-बार कान में पड़ने से टिनिटस की समस्या हो सकती है और बिना किसी आवाज के हुए भी पटाखों, मोबाइल रिंगटोन, डोर बेल, अपने नाम की आवाजें सुनाई दे सकती हैं।
गर्भवती महिलाएं बनाएं रखें दूरी
आईवीएफ एक्सपर्ट डॉ निहारिका मल्होत्रा के अनुसार गर्भावस्था की शुरुआत में ज्यादा तेज शोर और जहरीली कार्बन मोनोऑक्साइड के कारण महिला को गर्भपात हो सकता है। इसके अलावा गर्भावस्था के अंतिम दिनों में पटाखों का तेज शोर गर्भ में ही शिशु को बहरा बना सकता है या पटाखों से उठने वाले धुंएं के कारण शिशु को जन्मजात अस्थमा और फेफड़ों के दूसरे रोग हो सकते हैं।
दिल और दिमाग पर भी पड़ता है असर
सीनियर फिजिशियन डॉ अतुल कुलश्रेष्ठ बताते हैं कि पटाखे से निकलने वाली तेज आवाज का असर दिल और दिमाग पर भी बुरा पड़ता है। बड़े पटाखों से निकलने वाली धमाकेदार आवाज से दिल के मरीजों को हार्ट अटैक भी आ सकता है। हानिकारक जहरीली गैसें दिमाग के रोगों जैसे- अल्जाइमर, डिमेंशिया आदि का खतरा बढ़ा देती हैं। कई बार जब पटाखे कान के पास बज जाते हैं, तो थोड़ी देर के लिए आपकी चेतना भी खो सकती है।
सावधानी बरत कर बचें दुर्घटना से
- पटाखे जलाते समय पैरों में चप्पल या जूते जरूर पहनें।
- पटाखे हमेशा खुले स्थान पर जलाएं।
- आसपास देख लें कि आग पकड़ने वाली चीज तो नहीं है।
- पटाखे जलाते समय आसपास में पानी रखें और घर में जल जाने पर लगायी जाने वाली दवाएं भी रखें।
- अपने चेहरे को पटाखे जलाते समय दूर रखें।
- जल जाने पर पानी के छीटें मारें।
- हमेशा लाइसेंसधारी और विश्वसनीय दुकानों से ही पटाखे खरीदें।
जल जाने पर अपनाएं ये उपाए
- जल जाने पर बर्फ के प्रयोग से बचें। इससे रक्त का थक्का बन सकता है। जिससे रक्त संचार प्रभावित होता है।
- जलने के तुरंत बाद मलहम लगाने से बचना चाहिए।
- यदि त्वचा पर फफोले पड़ गए हैं तो उसे फोड़े नहीं, ऐसा करने से जले हुए हिस्से में संक्रमण होने का खतरा और बढ़ जाता है।
- रूई या कॉटन का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए क्योंकि रूई जली हुई जगह पर चिपक सकती है। जिससे जलन कम होने के बजाय और बढ़ जाती है।
- जले हुए व्यक्ति को एक साथ पानी पिलाने की गलती कभी न करें। क्योंकि जलने के बाद पीड़ित की आंत काम करना बंद कर देती है और पानी सांस नली में फंस सकता है। इसलिए ऐसी हालत में पीड़ित को ओरआरएस का घोल थोड़ी-थोड़ी मात्रा में देना फायदेमंद रहेगा।
- कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जलने पर कपड़े त्वचा में ही चिपक जाते हैं। जिसे कभी भी हटाने की गलती न करें इससे त्वचा में और घाव होने का खतरा रहता है।
जलने पर करें ये उपचार
- पटाखों या किसी ज्वलनशील पदार्थ से जलने पर सबसे पहले उस पर ठंडा पानी डालें। या ठंडे पानी के बर्तन में जलेे हुए भाग को डुबोकर रखें।
- जले हुए हिस्से पर नारियल का तेल लगाना फायदेमंद रहेगा। नारियल का तेल अत्यधिक जलन को कम कर राहत देता है।
- जली हुई स्किन पर हल्दी का पानी भी लगा सकते है। इससे जलन काफी कम हो जाती है।
- गाजर या कच्चे आलू को बारीक पीसकर जले हुए स्थान पर लगा दें। यह भी आपको जलन से राहत देगा।
- जलने पर तुलसी के पत्तों का रस बहुत फायदेमंद होता है।
जानिए क्या है पटाखों का इतिहास
आगरा काॅलेज में इतिहास विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अपर्णा पोददार के अनुसार पटाखों का इतिहास आज का नहीं बल्कि कई सदियों पुराना है। दारा शिकोह की शादी की पेंटिंग में लोग पटाखे चलाते हुए देखे जा सकते हैं लेकिन पटाखों का दौर भारत में मुगलकाल से भी पहले का है। फिरोज़शाह के ज़माने में भी आतिशबाज़ी हुआ करती थी। गन पाउडर से पहले भारत पटाखे आ चुके थे। इनका प्रयोग शिकार या हाथियों की लड़ाई के दौरान होता था। उन्हें डराने के लिए पटाखे चलाए जाते थे। ईसा पूर्व काल में रचे गए कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी एक ऐसे चूर्ण का विवरण है जो तेजी से जलता था, तेज़ लपटें पैदा करता था और अगर इसे एक नलिका में ठूंस दिया जाए तो पटाख़ा बन जाता था। बंगाल के इलाके में बारिश के मौसम में बाद कई इलाकोंं में सूखती हुई ज़मीन पर ही लवण की एक परत बन जाती थी। इस लवण को बारीक पीस लेने पर तेजी से जलने वाला चूर्ण बन जाता था। अगर इसमें गंधक और कोयले के बुरादे की उचित मात्रा मिला दी जाए तो इसकी ज्वलनशीलता भी बढ़ जाती थी। जहां ज़मीन पर यह लवण नहीं मिलता था, वहां इसे उचित प्रकार की लकड़ी की राख की धोवन से बनाया जाता था। आयुर्वेद में भी इस लवण का प्रयोग कई बीमारियों में होता था। लगभग सारे देश में ही यह चूर्ण और इससे बनने वाला बारूद मिल जाता था। यह बारूद इतना ज्वलनशील भी नहीं था कि इसका प्रयोग दुश्मन को मारने के लिए किया जा सके। हानिकारक बारूद बनाने का संभवत: पहली बार साल 1270 में सीरिया के रसायनशास्त्री हसन अल रम्माह ने अपनी किताब में किया। जिसमें उन्होंने बारूद को गरम पानी से शुद्ध करके ज़्यादा विस्फोटक बनाने की बात लिखी है। इतिहासकारों की अन्य पुस्तकों के अनुसार जब 1526 में काबुल के सुल्तान बाबर ने दिल्ली के सुल्तान पर हमला किया तो उसकी बारूदी तोपों की आवाज सुनकर भारतीय सैनिकों के छक्के छूट गए थे। अगर मंदिरों और शहरों में पटाख़़े फोड़ने की परंपरा रही होती तो शायद वीर सिपाही तेज़ आवाज़ से इतना न डरते।