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मंत्रों का जाप दूर करता जीवन का हर ताप लेकिन क्या जानते हैं जाप के भी होते हैं प्रकार

जप साधना के विभिन्न प्रकार होते हैं। जाप के हर तरीके की अपनी अलग विशेषता होती है। कह सकते हैं कि जिस प्रकार मन जप में लगे वही उत्तम है। परमेश्वर से संबंध स्थापित करने के लिये नाम जप किया जाता है।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 08:29 AM (IST)Updated: Fri, 22 Jan 2021 08:29 AM (IST)
मंत्रों का जाप दूर करता जीवन का हर ताप लेकिन क्या जानते हैं जाप के भी होते हैं प्रकार
जानिए क्या है मंत्र जाप का महत्व और तरीका। प्रतीकात्मक फोटो

आगरा, जागरण संवाददाता। सनातन धर्म में मंत्रों के जाप को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। दिनचर्या में भी पूजन के वक्त आमजन मंत्रों का जाप अमूमन करते ही हैं। बहुत से लोग अपना जाप तेज आवाज में करके पूर्ण करते हैं तो कुछ लोग मन ही मन में अपने मंत्राें का उच्चारण करते हैं। कह सकते हैं कि हरेक का अपना− अपना तरीका होता है। लेकिन ये तरीका अपने आप में जाप का प्रकार कहलाता है। इस बाबत धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी कहते हैं कि जप साधना के विभिन्न प्रकार होते हैं। जाप के हर तरीके की अपनी अलग विशेषता होती है। कह सकते हैं कि जिस प्रकार मन जप में लगे, वही उत्तम है। 

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जप के प्रकार

− जो साधक उच्च स्वर से मंत्र बोलता है, जिसे दूसरे व्यक्ति सुन सकते हों उसे वाचिक जप कहते हैं। कुछ लोग वाचिक जप को श्रेष्ठ नहीं मानते परंतु अनुभवी जनों की सम्मति है कि,आरंभ में वाचिक जप द्वारा मन शीघ्र एकाग्र होता है। 

− जब साधक उच्चारण न करके केवल होठों से ही स्वयं सुनते हुए जप करता है दूसरे को सुनाई नहीं देता उसे उपांशु जप करते हैं। इस जप से प्रत्येक अंग में उष्णता बढ़ती है। स्थूल से सूक्ष्म में प्रवेश मिलता है। भविष्य के सपने आने लगते हैं।

− कोई साधक भ्रमर की भांति गुंजन करते हुए जप करते हैं इसे भ्रमर जप कहते हैं। इस जप में भी मन की वृत्तियों का लय होता है, पूरक, रेचक प्राणायाम स्वत: होता रहता है। अन्य लाभ भी कई हैं, करने वाले स्वत: देखते हैं।

− कुछ साधक मन में ही जप करते रहते हैं इसमें मंत्रार्थ चिंतन आवश्यक है इसे मानस जप कहते हैं।

इस जप को सतोगुणी साधक ही कर पाते हैं रजोगुण को तमोगुण में बदलने में मानस जप अधिक सहायक है। यह नादनुसंधान में विशेष सहायक है।

जप का महत्व 

अनेकों संतो के मत से जप योग सभी के लिए सुगग साधन है। जप के द्वारा मन तभी एकाग्र होता है जब विश्वास में दृढ़ता होती है। एक बालक में जितना सरल विश्वास होता है उतना किसी विद्वान में नहीं पाया जाता इसीलिए भावना प्रधान तथा विचार प्रधान एवं कर्म प्रधान साधकों के लिए अपने अनुकूल साधन का निर्णय कर लेना अत्यंत आवश्यक होता है। जिस साधक का प्रेम बाल्यकाल से ही कहीं बिखरा नहीं हो वह दृढ़ संकल्प द्वारा प्रभु के प्रति जिस रूप की भावना करेगा, प्रेम योग से जहां कहीं चित्त एकाग्र करेगा वही उसके समक्ष साकार हो जाएगा इसीलिए भाव योगी अपनी-अपनी भावनानुसार प्रत्यक्ष दर्शन कर लेते हैं। जहां दूसरे साधक को कुछ नहीं दिखता, वही भावयोगी को साकार उपास्यदेव दिखता है। उसी परमेश्वर से संबंध स्थापित करने के लिये नाम जप किया जाता है और परमेश्वर की शक्तियों से संबंध स्थापित करने के लिए मंत्र जप किया जाता है। हम जैसे कर्म करते हैं, जैसी भावना रखते हैं अथवा जैसे हमारे विचार होते हैं उसी के अनुसार शुभ -अशुभ परिणाम भोगना पड़ता है इसलिए अनुभवी संत हमें कर्म द्वारा, वाणी द्वारा, मन द्वारा, शब्दों एवं मंत्रों के सहारे दिव्य शक्तियों से संबंध जोड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। 


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