Chaitra Hanuman Jyanti: जीवन में मंगल लाएगी आज हनुमान की यह विशेष पूजा
चैत्र मास की पूर्णिमा को हुआ था रामभक्त हनुमान का जन्म। शुक्रवार को मनाई जाएगी हनुमान जयंती।
आगरा, तनु गुप्ता। हिन्दू धर्म में हनुमान जयंती या जन्मोत्सव का विशेष महत्व है। इसे बड़ी ही श्रद्धा एवं आस्था के साथ मनाया जाता है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार हनुमानजी का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा को मंगलवार के दिन हुआ था। भक्तों का मंगल करने के लिए श्री राम भक्त हनुमान इस धरती पर अवतरित हुए। इस कलियुग में विपत्ति को हरने के लिए हनुमानजी की शरण ही सहारा है। हनुमानजी को महावीर, बजरंगबली, मारुती, पवनपुत्र के नाम से भी जाना जाता है।
हिन्दू मान्यता के अनुसार कई वर्षों पहले बहुत सारी दैवीय आत्मा ने मनुष्य के रूप में इस धरती पर जन्म लिया और इन दैवीय शक्ति की सहायता के लिए कई पशु पक्षी ने भी धरती पर अवतार लिया। त्रेतायुग में वानर सेना को प्रस्तुत करने के लिए हनुमानजी धरती पर अवतरित हुए। पंडित वैभव बताते हैं कि हनुमानजी तथा उनकी वानर सेना सिन्दूरी रंग के थे, जिनका रामायण से पहले धरती पर जन्म हुआ। रामायण में हनुमानजी ने वानर रूप में रावण के विरुद्ध युद्ध में श्री राम का साथ दिया तथा समुद्र पार करके लंका पहुंचने में श्री राम की मदद की। हनुमान जयंती पर सुबह से ही मंदिरों में भगवान् की प्रतिमा का पूजन -अर्चन शुरू हो जाता है। मंदिरों में भक्त भगवान् की प्रतिमा पर जल, दूध, आदि अर्पण कर भगवान् को सिन्दूर तथा तेल चढ़ाते हैं। हनुमानजी की प्रतिमा पर लगा सिन्दूर अत्यन्त ही पवित्र होता है, भक्तगण इस सिन्दूर का तिलक अपने मस्तक पर लगाते हैं।इसके पीछे यह मान्यता है कि इस तिलक के द्वारा वे भी हनुमानजी की कृपा से हनुमानजी की तरह शक्तिशाली, ऊर्जावान तथा संयमित बनेंगे।
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी
हनुमान जन्म का उद्देश्य
पंडित वैभव जोशी के अनुसार हनुमानजी के जन्म का मुख्य उद्देश्य दैवीय आत्मा, जो धरती पर मनुष्य के रूप में अवतरित हुए हैं, उन्हें प्रत्येक विपदाओं से बचने के लिए माना जाता है। हिन्दू धर्म में हनुमानजी को शक्ति, स्फूर्ति एवं ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। धर्म में प्रचलित अनेक कथाओं के आधार पर हनुमानजी का जन्म अलग अलग युगों में अलग अलग रूपों में बताया गया है। जहां त्रेतायुग में उन्होंने श्री राम के सेवक एवं भक्त बनकर श्री राम का साथ दिया, वहीं द्वापर युग में पांडव एवं कौरव के बीच युद्ध के दौरान श्री कृष्णा जो कि अर्जुन ( राम का ही एक अवतार) के सारथी थे, के साथ मिल कर रथ के ऊपर बालरूप धारण कर अर्जुन की रक्षा की। हनुमानजी को शिवजी का रूप भी माना गया है। प्रत्येक हनुमान मंदिर में शिव प्रतिमा या शिवलिंग स्थापित रहती हैं। इसलिए इन्हे रौद्र रूप में भी जाना जाता है।
कैसे करें मारुतिनंदन की आराधना
हिन्दू मान्यता के अनुसार हनुमानजी सिन्दूरी अथवा केसर वर्ण के थे , इसीलिए हनुमानजी की मुर्ति को सिन्दूर लगाया जाता है। पंडित वैभव बताते हैं कि पूजन विधि के दौरान सीधे हाथ की अनामिका ऊंगली से हनुमानजी की प्रतिमा को सिन्दूर लगाना चाहिए। हनुमानजी को केवड़ा, चमेली और अम्बर की महक प्रिय है, इसलिए जब भी हनुमानजी को अगरबत्ती या धूपबत्ती लगानी हो, तो इन महक वाली ही लगाना चाहिए। हनुमानजी जल्दी प्रसन्न होंगे। अगरबत्ती को अंगूठे तथा तर्जनी के बीच पकड़ कर , मूर्ति के सामने तीन बार घडी की दिशा में घुमाकर, हनुमानजी की पूजा करनी चाहिए। पंडित वैभव कहते हैं कि हनुमानजी के सामने किसी भी मंत्र का जाप कम से कम पांच बार या पांच के गुणांक में करना चाहिए। ऐसे तो भक्त हर दिन अपने भगवान को पूज सकते हैं ,परन्तु हिन्दू धर्म में विशेषकर महाराष्ट्र प्रान्त में मंगलवार को हनुमानजी का दिन बताया गया है।इसलिए इस दिन हनुमानजी की पूजा करने का विशेष महत्त्व है। भारत के अलग अलग प्रान्त में मंगलवार के साथ साथ शनिवार को भी हनुमानजी का दिन माना जाता है। इसीलिए इन दोनों दिनों का बहुत महत्व है।भक्तगण इन दिनों में हनुमान चालीसा, सुंदरकांड आदि का पाठ करते हैं। इस दिन हनुमानजी की प्रतिमा पर तेल तथा सिन्दूर भी चढ़ाया जाता है।
ऐसे मिला था हनुमान को अमरता का वरदान
पंडित वैभव जोशी हनुमान जी की अमरता की कथा बताते हैं कि रामायण के अंदर एक प्रसंग है जब रावण माता सीता का हरण करके ले गया तब सब इस बात से चिंतित थे कि समुंदर को लांघकर लंका कौन जाएगा। उस समय सिर्फ हनुमान जी ही इस कार्य के लिए सक्षम थे । जब हनुमान जी अपनी सारी शक्ति लगाकर सीता माता की खोज में अशोक वाटिका पहुंचते हैं और उनसे मिलते हैं तब माता जानकी उन्हें अमरता का वरदान देती हैं। इसके बारें में तुलसीदास रचित हनुमान चालीसा में एक चौपाई भी मौजूद है। यह चौपाई है ' अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता असबर दीन जानकी माता' अर्थात हनुमान जी को आठों सिद्धियां और अमरता का वरदान प्राप्त है।
जब आहत हुए हनुमान
धार्मिक आधार के अनुसार पंडित वैभव बताते हैं कि यह त्रेता युग की बात है। जब भगवान श्री राम ने अपनी मृत्यु की घोषणा कर दी थी। यह सुनकर हनुमान जी को बहुत दुख हुआ। इसके बाद वह माता सीता के पास जाते हैं और कहते हैं 'हे माता आपने मुझे अमर होना का वरदान तो दे दिया'। लेकिन ये बताएं अगर जब मेरे प्रभु ही धरती पर नहीं रहे रहेंगे तो मेरा यहां क्या काम । आप मेरा अमरता का वरदान वापस ले लिजिए।' माता सीता हनुमान जी को बहुत समझाती हैं। लेकिन वह नहीं मानते। तब माता सीता भगवान राम का स्मरण करती हैं। जब भगवान वहां आते हैं तो वह हनुमान जी को प्रेम से गले लगाते हैं और कहते हैं कि मुझे पता था तुम यह कहोगे। तब श्री राम कहते है 'जो भी इस धरती पर आया है उसे एक दिन जरुर जाना पड़ेगा'। मेरे जाने के बाद मेरे भक्तों के तुम्हें ही सभी संकट दूर करने है। आने वाले समय में धरती पाप के बोझ तले दब जाएगी'। प्रभु की यह बात सुनकर हनुमान जी को अमरता के इस वरदान महत्व पता चलता है।
सबकी फरियाद सुनके पूरी ये है करता,
मेरा मारुतिनंदन है देव महान..
मेरा रोम-रोम आभारी है इसका,
इसकी महिमा का मैं कैसे करूं बखान..