अनंत चतुर्दशी को होगा गणेश उत्सव पूर्ण, लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्यों ये दिन हैं महत्वपूर्ण Agra News
दस दिनों तक वेदव्यास के मुख से महाभारत की कथा का श्रवण कर उसे लिखते रहे थे गणेश जी। अपने टूट हुए दांत को बनाया था कलम। दस दिनों की मेहनत ने बढ़़ा़ था शरीर का ताप।
आगरा, तनु गुप्ता। एकदंताय की आराधना के दस दिन अब अपनी पूर्णता की ओर हैं। बस मध्य में एक दिन और फिर 12 सितंबर को अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति प्रतिमा का जल में विसर्जन। दस दिनों तक गणपति की जिस प्रतिमा को आदर सत्कार के साथ घर में स्थापित किया। हर पहर आराधना की उसी प्रतिमा को जल में विसर्जित कर दिया जाएगा। इसी परिपाटी पर गणेश उत्सव सदियों से मनाया जाता रहा है लेकिन दिन और इस विधान का विशेष महत्व है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार गणेश चतुर्थी से शुरू होने वाला गणेश उत्सव अनंत चतुर्दशी के दिन समाप्त हो जाता है। इस परंपरा के पीछे धार्मिक ग्रंथों में कथाओं का वर्णन मिलता है।
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी
गणेश प्रतिमा विसर्जन की कथा
पंडित वैभव बताते हैं कि धार्मिक ग्रन्थों के मुताबिक श्रीवेद व्यास ने गणेश चतुर्थी से महाभारत कथा श्रीगणेश को लगातार दस दिन तक सुनाई थी। जिसे श्रीगणेश जी ने अक्षरश: लिखा था। दस दिन बाद जब वेद व्यास जी ने आंखें खोलीं तो पाया कि दस दिन की अथक मेहनत के बाद गणेश जी का तापमान बहुत बढ़ गया है।
ऐसे में वेद व्यास जी ने तुरंत गणेश जी को निकट के सरोवर में ले जाकर ठंडे पानी से स्नान कराया था। इसलिए गणेश स्थापना कर चतुर्दशी को उनको शीतल किया जाता है।
माटी के लेप का रहस्य
इसी कथा में यह भी वर्णित है कि श्री गणपति जी के शरीर का तापमान ना बढ़े, इसलिए वेद व्यास जी ने उनके शरीर पर सुगंधित सौंधी माटी का लेप किया। यह लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई। माटी झरने भी लगी, तब उन्हें शीतल सरोवर में ले जाकर पानी में उतारा। इस बीच वेदव्यास जी ने दस दिनों तक श्री गणेश को मनपसंद आहार अर्पित किए। तभी से प्रतीकात्मक रूप से श्री गणेश प्रतिमा का स्थापन और विसर्जन किया जाता है और दस दिनों तक उन्हें सुस्वादु आहार चढ़ाने की भी प्रथा है।
अन्य मान्यता के अनुसार
इसके अलावा यह भी माना जाता है कि गणपति उत्सव के दौरान लोग अपनी जिस इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं, वे भगवान गणपति के कानों में कह देते हैं। गणेश स्थापना के बाद से दस दिनों तक भगवान गणपति लोगों की इच्छाएं सुन- सुनकर इतना गर्म हो जाते हैं कि चतुर्दशी को बहते जल में विसर्जित कर उन्हें शीतल किया जाता है।