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42 साल बाद मिला इंसाफ, सामूहिक हत्‍याकांड के आरोपितों को आगरा में आजीवन कारावास की सजा

फतेहपुर सीकरी के गांव बसेरी चाहर में हुई थी पति-पत्नी समेत चार की हत्या। पांच आरोपितों में से दो की हुई मृत्यु एक पूर्व में हो चुका है बरी बुढ़ापे में आकर दो लोगों को हुई सजा। पीडित परिवार ने लंबी लड़ाई के बाद आए फैसले पर जताया संतोष।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sat, 20 Mar 2021 08:19 AM (IST)Updated: Sat, 20 Mar 2021 08:19 AM (IST)
42 साल बाद मिला इंसाफ, सामूहिक हत्‍याकांड के आरोपितों को आगरा में आजीवन कारावास की सजा
आगरा में 42 साल बाद हत्‍या के आरोपितों को सजा हुई है।

आगरा, जागरण संवाददाता। फतेहपुर सीकरी के बसेरी चाहर में 42 वर्ष पहले चार लोगों की हत्या के मामले में अदालत ने फैसला सुना दिया। मुकदमे में नामजद दो आरोपितों को अदालत ने दोषी मानते हुए आजीवन कारावास के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही डेढ़ लाख रुपये का अर्थदंड भी लगाया है। मामले में एक आरोपित पूर्व में बरी हो चुका है। जबकि दो की विचारण के दौरान ही मृत्यु हो चुकी है।

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बसेरी चाहर निवासी महाराज सिंह ने 13 मई 1979 को फतेहपुर सीकरी थाने में मुकदमा दर्ज कराया था। उनके गांव में भगवान सिंह के बेटों और अनिल कुमार में जमीन को लेकर रंजिश चल रही थी। इसी में अक्टूबर 1978 को गांव में जसवंत पर फायरिंग की गई थी। इस मुकदमे में महाराज सिंह के पिता अतर सिंह गवाह थे। विरोधी पक्ष ने कई बार उनको धमकी दी थी। गवाही नहीं देने का दबाव बनाया था। इससे इन्कार करने पर पूरे परिवार को जान से मारने की धमकी दी थी। 13 मई 1979 को अतर सिंह और रिश्तेदार युवक पिंकी खेत पर चारपाई पर सो रहे थे। महाराज सिंह भी पास में जमीन पर सो रहे थे। उनके चाचा दरियाब सिंह की छत पर उनका बेटा वीरी सिंह सोया था। चाची हरप्यारी आंगन में थीं। रात में बसेरी चाहर निवासी राजेंद्र पहुंचा। उसके हाथ में दोनाली बंदूक लगी थी। साथ में आए प्रताप के पास भी बंदूक थी और नरेंद्र उर्फ मुंशी कट्टा और चाकू लेकर आए थे। भरतपुर के कूपा निवासी निरंजन सिंह और रनवीर सिंह भी हाथों में हथियार लेकर आए थे। अभियुक्त राजेंद्र, प्रताप, निरंजन ने महाराज सिंह के पिता अतर सिंह और पिंकी को पकड़ लिया। नरेंद्र ने चाकू से दोनों पर कई वार किए। इसके बाद बंदूक से गोली मारकर दोनों की हत्या कर दी गई। महाराज सिंह को भी मारने का प्रयास किया, लेकिन उसने भागकर जान बचा ली। वहीं वीरी सिंह को भी छत पर चढ़कर गोली मार दी। इसमें वह घायल हो गया। वीरी सिंह के शोर मचाने पर उनकी मां हरप्यारी और परिवार की महिला मटरी आईं। अभियुक्तों ने उन दोनों की भी गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद भाग गए। घटना में राजेंद्र सिंह, प्रताप, नरेंद्र उर्फ मुंशी, निरंजन सिंह, रनवीर सिंह के खिलाफ बलवा, जानलेवा हमला, हत्या सहित अन्य धारा में मुकदमा दर्ज किया गया। रनवीर सिंह की पत्रावली अलग हो गई। वर्ष 1985 में कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। अभियुक्त प्रताप और नरेंद्र उर्फ मुंशी की मृत्यु हो गई। राजेंद्र और निरंजन सिंह को मफरूर दिखाते हुए पुलिस ने चार्जशीट लगाई थी। इनका विचारण कोर्ट में हाजिर न होने के कारण देरी से शुरू हुआ। अब कोर्ट ने दोनों को दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। एडीजीसी प्रदीप कुमार शर्मा ने कोर्ट में दस गवाह और सुबूत पेश किए। अभियुक्तों को फांसी की सजा की दलील दी। अभियुक्तों की उम्र अब 70 और 80 वर्ष से अधिक है। बचाव पक्ष ने उम्र का हवाला देकर कम सजा की गुहार लगाई, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। 


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