Janmashtmi 2020: 16 कलाधारी की जरूरी है 16 विधि से पूजा, जानिए विशेष विधि का महत्व
Janmashtmi 2020 पंचामृत स्नान के बाद षोडषोपचार पूजन किया जाता है। ये पूजन विशेष रूप से मंदिरों में श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मानाते हुए आयोजित होता है।
आगरा, तनु गुप्ता। यूं तो यदि आपके ह्दय में प्रेम है तो प्रेमावातार कृष्ण स्वतः ही आपकी भक्ति को स्वीकार कर लेते हैं लेकिन ब्रज में भक्ति अनूठी है एवं अनूठा है यहां अपने आराध्य का पूजन। 16 कला धारी कृष्ण मुरारी के जन्म पर षोडषोपचार विधि से पूजन किया जाता रहा है। इस पूजन महत्व एवं विधि के बारे में धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि जन्माष्टमी पर यदुनंदन की पूजा में यदि षोडशोपचार यानि पूजा के सोलह चरणों का समावेश हो तो उसे षोडशोपचार जन्माष्टमी पूजा विधि कहा जाता है। आज रात्रि 12 बजे से पूर्व षोडपोपचार पूजन विधि विभिन्न मंदिरों में आरंभ हो जाएगी। पंचामृत स्नान के बाद षोडषोपचार पूजन किया जाता है। ये पूजन विशेष रूप से मंदिरों में श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मानाते हुए आयोजित होता है। इसके लिए भगवान को वस्त्र, अलंकार इत्यादि से सुसज्जित करके फूल,धूप, दीप समर्पित करते हैं, फिर अन्न रहित भोग एवं प्रसूति के समय का मिष्ठान्न जैसे, सेठौरा, ओछवानी नारियल, छुहारा, पंजीरी, नारियल के मिष्ठान, मेवे आदि भगवान को अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद रात्रि जागरण करते हुए सामूहिक रूप से भगवान की स्तुति होती है। इन सभी 16 चरणों के सोलह मंत्र होते हैं, सोलहवां मंत्र भगवान की आरती को कहा जाता है।
इस तरह करें पूजन
पंडित वैभव के अनुसार षोडषाेपचार पूजन के लिए बाल कृष्ण की मूर्ति को एक पात्र में रख कर दुग्ध, दही, शहद, पंचमेवा, सुंगध युक्त शुद्घ जल एवं गंगा जल से स्नान करायें, फिर उन्हें पालने में स्थापित करें। वस्त्र धारण करायें। इसके बाद भगवान की विधि विधान से आरती करें। अंत में उन्हें नैवैद्य अर्पित करें। नैवैद्य में फल एवं मिष्ठान के साथ अपनी परंपरा के अनुसार धनिया, आटे, चावल या पंच मेवा की पंजीरी भोग लगाने के लिए शामिल करें। भगवान को इत्र अवश्य लगायें।
षोडषोपचार जन्माष्टमी पूजा एवम् मंत्र
ध्यान- सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा के आगे उनका ध्यान करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें, ॐ तमअद्भुतं बालकम् अम्बुजेक्षणम्, चतुर्भुज शंख गदाद्युधायुदम्। श्री वत्स लक्ष्मम् गल शोभि कौस्तुभं, पीताम्बरम् सान्द्र पयोद सौभंग। महार्ह वैढूर्य किरीटकुंडल त्विशा परिष्वक्त सहस्रकुंडलम्। उद्धम कांचनगदा कङ्गणादिभिर् विरोचमानं वसुदेव ऐक्षत। ध्यायेत् चतुर्भुजं कृष्णं,शंख चक्र गदाधरम्। पीताम्बरधरं देवं माला कौस्तुभभूषितम्। ॐ श्री कृष्णाय नम:। ध्यानात् ध्यानम् समर्पयामि।
आवाह्न- इसके बाद हाथ जोड़कर इस मंत्र से श्रीकृष्ण का आवाह्न करें, ॐ सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात्। स-भूमिं विश्वतो वृत्वा अत्यतिष्ठद्यशाङ्गुलम्। आगच्छ श्री कृष्ण देवः स्थाने-चात्र सिथरो भव। ॐ श्री क्लीं कृष्णाय नम:। बंधु-बांधव सहित श्री बालकृष्ण आवाहयामि।
आसन- अब श्रीकृष्ण को आसन देते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें, ॐ विचित्र रत्न-खचितं दिव्या-स्तरण-सन्युक्तम्। स्वर्ण-सिन्हासन चारू गृहिश्व भगवन् कृष्ण पूजितः। ॐ श्री कृष्णाय नम:। आसनम् समर्पयामि।
पाद्य- आसन देने के बाद भगवान श्रीकृष्ण के पांव धोने के लिए उन्हें पंचपात्र से जल समर्पित करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें, एतावानस्य महिमा अतो ज्यायागंश्र्च पुरुष:। पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि। अच्युतानन्द गोविंद प्रणतार्ति विनाशन। पाहि मां पुण्डरीकाक्ष प्रसीद पुरुषोत्तम्। ॐ श्री कृष्णाय नम:। पादोयो पाद्यम् समर्पयामि।
अर्घ्य- श्रीकृष्ण को इस मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्घ्य दें, ॐ पालनकर्ता नमस्ते-स्तु गृहाण करूणाकरः। अर्घ्य च फ़लं संयुक्तं गन्धमाल्या-क्षतैयुतम्। ॐ श्री कृष्णाय नम:। अर्घ्यम् समर्पयामि।
आचमन- इसके बाद श्रीकृष्ण को आचमन के लिए जल देते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें, तस्माद्विराडजायत विराजो अधि पुरुष:। स जातो अत्यरिच्यत पश्र्चाद्भूमिनथो पुर:। नम: सत्याय शुद्धाय नित्याय ज्ञान रूपिणे। गृहाणाचमनं कृष्ण सर्व लोकैक नायक। ॐ श्री कृष्णाय नम:। आचमनीयं समर्पयामि।
स्नान- भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को कटोरे या किसी अन्य पात्र में रखकर स्नान कराएं। सबसे पहले पानी उसके बाद दूध, दही, मक्खन, घी और शहद आैर अंत में एक बार फिर साफ पानी से एक बार और स्नान कराएं। साथ में मंत्र का उच्चारण करें, गंगा गोदावरी रेवा पयोष्णी यमुना तथा। सरस्वत्यादि तिर्थानि स्नानार्थं प्रतिगृहृताम्। ॐ श्री कृष्णाय नम:। स्नानं समर्पयामि।
वस्त्र-
भगवान की मूर्ति को किसी साफ और सूखे कपड़े से पोंछकर नए वस्त्र पहनाएं, फिर उन्हें पालने में रखें और इस मंत्र का जाप करें, शति-वातोष्ण-सन्त्राणं लज्जाया रक्षणं परम्। देहा-लंकारणं वस्त्रमतः शान्ति प्रयच्छ में। ॐ श्री कृष्णाय नम:। वस्त्रयुग्मं समर्पयामि।
यज्ञोपवीत- इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान श्रीकृष्ण को यज्ञोपवीत समर्पित करें, नव-भिस्तन्तु-भिर्यक्तं त्रिगुणं देवता मयम्। उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः। ॐ श्री कृष्णाय नम:। यज्ञोपवीतम् समर्पयामि।
चंदन- श्रीकृष्ण को चंदन अर्पित करते हुए यह मंत्र पढ़ें, ॐ श्रीखण्ड-चन्दनं दिव्यं गंधाढ़्यं सुमनोहरम्। विलेपन श्री कृष्ण चन्दनं प्रतिगृहयन्ताम्। ॐ श्री कृष्णाय नम:। चंदनम् समर्पयामि।
गंध- इस मंत्र का जाप करते हुए श्रीकृष्ण को धूप, अगरबत्ती दिखाएं, वनस्पति रसोद भूतो गन्धाढ़्यो गन्ध उत्तमः। आघ्रेयः सर्व देवानां धूपोढ़्यं प्रतिगृहयन्ताम्। ॐ श्री कृष्णाय नम:। गंधम् समर्पयामि।
दीपक-तत्पश्चात श्रीकृष्ण की मूर्ति के समझ घी का दीपक प्रज्जवलित करें आैर ये मंत्र पढ़ें, साज्यं त्रिवर्ति सम्युकतं वह्निना योजितुम् मया। गृहाण मंगल दीपं,त्रैलोक्य तिमिरापहम्। भक्तया दीपं प्रयश्र्चामि देवाय परमात्मने। त्राहि मां नरकात् घोरात् दीपं ज्योतिर्नमोस्तुते। ब्राह्मणोस्य मुखमासीत् बाहू राजन्य: कृत:। उरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्यां शूद्रो अजायत। ॐ श्री कृष्णाय नम:। दीपं समर्पयामि।
नैवैद्य- ब श्रीकृष्ण को भोग लगायें आैर ये मंत्र पढ़ें, शर्करा-खण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च, आहारो भक्ष्य- भोज्यं च नैवैद्यं प्रति- गृहृताम। ॐ श्री कृष्णाय नम:। नैवद्यं समर्पयामि।
ताम्बूल- अब पान के पत्ते को पलट कर उस पर लौंग-इलायची, सुपारी और कुछ मीठा रखकर ताम्बूल बनाकर श्रीकृष्ण को समर्पित करें, साथ ही इस मंत्र का जाप करें, ॐ पूंगीफ़लं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम्। एला-चूर्णादि संयुक्तं ताम्बुलं प्रतिगृहृताम। ॐ श्री कृष्णाय नम:। ताम्बुलं समर्पयामि।
दक्षिणा- अब अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा या भेंट अर्पित करते हुए इस मंत्र का जाप करें, हिरण्य गर्भ गर्भस्थ हेमबीज विभावसो:। अनन्त पुण्य फलदा अथ: शान्तिं प्रयच्छ मे। ॐ श्री कृष्णाय नम:। दक्षिणां समर्पयामि।
आरती- षोडषोपचार का आखिरी चरण है आरती इसके लिए घी के दीपक से बाल कृष्ण की आरती उतारें। साथ ही अपनी प्रिय कृष्ण आरती गायें।