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Navratra 2021: जगद्जननी का रूप है आदिशक्ति का ये पांचवां स्‍वरूप, भूलकर भी न कर देना आज इन लोगों का अपमान

मां के पांचवें स्‍वरूप की साधना तभी पूर्ण मानी जाती है जब साधक अपनी मां और मां की उम्र की स्‍त्री की सेवा पूरे मनोयोग से करता है। मां स्‍कंदमाता की आराधना के दिन भूलकर भी अपनी माता और उनकी उम्र की किसी भी स्‍त्री का अपमान नहीं करना चाहिए।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 11 Oct 2021 08:17 AM (IST)Updated: Mon, 11 Oct 2021 08:17 AM (IST)
Navratra 2021: जगद्जननी का रूप है आदिशक्ति का ये पांचवां स्‍वरूप, भूलकर भी न कर देना आज इन लोगों का अपमान
नवरात्रि के पांचवें दिन स्‍कंदमाता की आराधना की जा रही है।

आगरा, जागरण संवाददाता। शारदीय नवरात्र में सोमवार को देवी आराधना का पांचवां दिन है। शांत, करुणामयी, ममतामयी रूप है माता आदिशक्ति का पांचवा स्‍वरूप। देवी भगवती का पांचवां स्वरुप जगद्जननी स्‍कंदमाता का है। मातृगुणों से ओतप्रोत स्कन्दमाता भक्तों को अभय, आयु, आशीष प्रदान करने वाली हैं। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार स्कन्दमाता भी पार्वती का ही स्वरुप हैं। स्कंदकुमार की माता होने के कारण उनका नाम स्कन्दमाता पड़ा। मां के पांचवें स्‍वरूप की साधना तभी पूर्ण मानी जाती है, जब साधक अपनी मां और मां की उम्र की स्‍त्री की सेवा पूरे मनोयोग के साथ करता है। मां स्‍कंदमाता की आराधना के दिन भूलकर भी अपनी माता और उनकी उम्र की किसी भी स्‍त्री का अपमान नहीं करना चाहिए।

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स्‍कंदमाता के स्वरूप की कथा

देवी पुराण के अनुसार तारकासुर नाम का एक असुर था। उसने कठोर तप करके ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसका अन्त यदि हो तो महादेव से उत्पन्न पुत्र से ही हो। तारकासुर ने सोचा कि महादेव तो कभी विवाह करेंगे नहीं और न ही उनके पुत्र होगा। इसलिए वह अजर अमर हो जायेगा। तारकासुर ने आतंक मचाना शुरू कर दिया। त्रिलोक पर अधिकार कर लिया। समस्त देवगणों ने महादेव से विवाह करने का अनुरोध किया। महादेव ने पार्वती से विवाह किया। तब स्कंदकुमार का जन्म हुआ और उन्होंने तारकासुर का अन्त कर दिया।

अव्यक्त भाव हैं माता के आभूषण

पंडित वैभव बताते हैं कि देवी भगवती का स्वरुप करुणा, दया, क्षमा, शीलता से युक्त है। अपनी संतान के प्रति मां के अव्यक्त भाव ही इनके आभूषण हैं। चुतुर्भुजी मां की गोद में स्कन्दकुमार हैं। दोनों हाथों में कमल पुष्प हैं। एक हाथ में बालक और एक हाथ से वे आशीर्वाद प्रदान करती हैं। शुभ और ज्योत्सनामयी मां को पद्मासना भी कहा गया है। इनकी पूजा से स्कन्द भगवान की पूजा स्वयं हो जाती है।

मां की सेवा से प्रसन्‍न हो जाती हैं जगतमाता

स्कन्दमाता की सर्वश्रेष्ठ पूजा तो यह है कि अपनी मां के चरण वंदन करें और उनकी सेवा करें। अपनी मां की सेवा करने से ग्रहों की शान्ति अपने आप ही हो जाती है। लोगों को चाहिए कि सर्वप्रथम वे अपनी मां को वस्त्र अर्पण करें। स्कन्दमाता की आराधना के लिए देवी को वस्त्र, कमल पुष्प अर्पित करें, मिष्ठान्न का भोग लगाएं। मिश्री का भोग देवी को अत्यन्त प्रिय है। तंत्रोक्त देवीसूक्त का पाठ करें। श्रीदुर्गा सप्तशती के प्रथम, चतुर्थ, पंचम और ग्यारहवें अध्याय का पाठ करें।

मन्त्र

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

ध्यान

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।  


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