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Holi 2020: इस्कॉन मंदिर रहेगा बंद, चंद्रोदय में नहीं होगी होली, ये है वजह

नौ मार्च को इस्कॉन और चंद्रोदय मंदिर में मनेगी गौर जयंती। प्रेम मंदिर भी दस की शाम को ही खुलेगा।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 08 Mar 2020 05:35 PM (IST)Updated: Mon, 09 Mar 2020 07:30 PM (IST)
Holi 2020: इस्कॉन मंदिर रहेगा बंद, चंद्रोदय में नहीं होगी होली, ये है वजह
Holi 2020: इस्कॉन मंदिर रहेगा बंद, चंद्रोदय में नहीं होगी होली, ये है वजह

मथुरा, जेएनएन। पूरे ब्रज में होली का रंग सिर चढ़कर बोल रहा है तो दो मंदिर ऐसे हैं जिनमें होली के दिन भी अबीर-गुलाल नहीं उड़ेगा। होली के दिन दस मार्च को चंद्रोदय मंदिर के अंदर रंगों की होली नहीं होगी, जबकि इस्कॉन मंदिर बंद रहेगा, प्रेम मंदिर शाम को खुलेगा।

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ब्रज की कुंज गलियों से लेकर मंदिरों में इस समय रंग और अबीर की धूम है। मगर, अक्षयपात्र स्थित चंद्रोदय मंदिर और इस्कॉन मंदिर में होली पर रंगों का प्रयोग नहीं होगा। असल में यह दोनों मंदिर गौड़ीय वैष्णव परंपरा के हैं। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को चैतन्य महाप्रभु का प्रकाट्योत्‍सव और गौर पूर्णिमा के रुप में मनाया जाता है। इस दिन इन दोनों मंदिर में फूलों की होली तो होती है लेकिन रंग का इस्तेमाल नहीं होगा। लीप वर्ष होने से इस बार गौर पूर्णिमा 9 मार्च को है। यह उत्सब इस्कॉन मंदिर, चंद्रोदय मंदिर के साथ प्राचीन सप्तदेवालयों में भी मनाया जाएगा। धुलेंडी के दिन दस मार्च को इस्कॉन मंदिर में रंगों की होली नहीं होगी, यहां मंदिर बंद रहेगा। प्रेम मंदिर सुबह बंद रहेगा और शाम को साढ़े चार बजे खुलेगा। चंद्रोदय मंदिर खुलेगा लेकिन वहां रंगों की होली वर्जित है। ऐसे में रंगों से परहेज करने वाले बाहर से आने वाले श्रद्धालु चंद्रोदय मंदिर में दर्शन कर सकते हैं। अक्षयपात्र फाउंडेशन के प्रवक्ता अनंतवीर दास ने बताया चंद्रोदय मंदिर में नौ मार्च को गौर जयंती मनाई जाएगी। दस मार्च को यहां रंग नहीं खेला जाएगा। इस्कॉन मंदिर के प्रवक्ता सौरभ त्रिविक्रम दास ने बताया कि दस मार्च को मंदिर बंद रहेगा।

जानिए कौन थे चैतन्य महाप्रभु

चैतन्य महाप्रभु काल के प्रमुख संतों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी। भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनीतिक अस्थिरता के दिनों में हिन्दू-मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जात पात, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त वृन्दावन को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया। चैतन्य महाप्रभु का जन्म सन् 18 फ़रवरी सन् 1486 की फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को पश्चिम बंगाल के नवद्वीप (नादिया) नामक उस गांव में हुआ, जिसे अब 'मायापुर' कहा जाता है। बाल्यावस्था में इनका नाम विश्वंभर था, लेकिन सभी इन्हें 'निमाई' कहकर पुकारते थे। गौरवर्ण का होने के कारण लोग इन्हें 'गौरांग', 'गौर हरि', 'गौर सुंदर' आदि भी कहते थे। चैतन्य महाप्रभु के द्वारा गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय की आधारशिला रखी गई। उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामन्त्र 'नाम संकीर्तन' का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत् तक में है।


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