Jagran Live: 'सजा' से कम नहीं जनरल डिब्बे में सफर, अटक- लटक कर चलते हैं यात्री
कोई अटककर तो कोई लटककर सफर करने को था मजबूर। 90 लोगों के डिब्बे में दोगुने से ज्यादा यात्री गर्मी और उमस में हाल बेहाल।
आगरा, गौरव भारद्वाज। तीन दिन पहले बांदा स्टेशन से नई दिल्ली के लिए अपने पिता के साथ संपर्क क्रांति एक्सप्रेस के जनरल डिब्बे में बैठी सीता की मौत हो गई। भीषण गर्मी में जनरल डिब्बों की यात्रा किसी सजा से कम नहीं है। ऐसे में जनरल डिब्बे में सफर करने वाले यात्रियों की रेलवे से क्या उम्मीद हैं और क्या शिकायतें, इसे जानने के लिए मंगलवार को जागरण संवाददाता ने राजा की मंडी स्टेशन से मुरैना स्टेशन तक जनरल डिब्बे में सफर किया।
राजा की मंडी स्टेशन पर सुबह आठ बजकर 30 मिनट पर पंजाब मेल आकर रुकी। सबसे पीछे जनरल डिब्बे में चढऩे के लिए गेट पर यात्रियों की भीड़ थी। ट्रेन में चढऩे को लेकर गुत्थमगुत्था हो रही थी। जैसे-तैसे डिब्बे में चढ़े और ट्रेन चल दी। गेट पर पहले से ही कुछ लोग कब्जा जमाए थे। इनको पार कर अंदर पहुंचे तो स्थिति बड़ी अजीब थी। 90 लोगों के डिब्बे में करीब दोगुने यात्री मौजूद थे। सुबह हुई थी, ऐसे में कोई सीट पर लेटा था, कोई बैठा था और कोई खड़ा। जिसे कहीं भी जगह नहीं मिली, वो टायलेट के पास पड़ा था। अभी सीट तलाशने की सोच ही रहे थे कि आगरा कैंट स्टेशन आ गया। डिब्बे में हलचल शुरु हो गई। फिर वही उतरने और चढऩे की जिद्दोजहद। पांच मिनट बाद ट्रेन चली और फिर शुरू हुई खचाखच भरे डिब्बे में सीट तलाशने की कोशिश।
आगरा से चढ़े अनिल को झांसी जाना था। उन्होंने ऊपर की बर्थ पर पहले से बैठे चार लोगों को खिसकाते हुए थोड़ी सी जगह मांगी। ऊपर बैठे यात्री ने जगह देने से मना किया तो अनिल ने कहा कि पूरी सीट पर बैठकर जाना है तो रिजर्वेशन कराना चाहिए। थोड़ी तकरार के बाद जबरन सीट पर बैठ गए। इसके बाद एक और व्यक्ति आए उन्होंने सामने की बर्थ पर सो रहे दो लोगों को उठाया, कहा भई सीधे हो जाओ दोपहर हो गई। उनके उठने से पहले वह बर्थ पर चढ़ चुका था। हम भी जूझते हुए डिब्बे के बीच में पहुंचे। सीट नहीं मिली तो खड़े हो गए। काफी लोग पहले से खड़े थे। बराबर में खड़े भूपेंद्र से पूछा कि कहां जाना है तो उसने बताया कि भोपाल। कितने घंटे का सफर है, तो कहा कि सही चली तो शाम को छह बज जाएंगे। पूछा ऐसे ही खड़े-खड़े जाओगे, तो कहा कि ग्वालियर तक सीट मिल जाएगी। नौ बज चुके थे। धूप तेज होने के साथ उमस बढ़ रही थी। ऐसे में भीड़भाड़ वाले डिब्बे में खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा था। पंखों की हवा लोगों के पैरों के जाल को भेद कर नीचे नहीं आ पा रही थी। यहां तक तो ठीक था, लेकिन ऊपर की बर्थ पर बैठे युवक ने बीड़ी जला ली। बीड़ी के धुएं से आसपास के लोगों ने मुंह जरूर सिकोड़ा, लेकिन कोई उससे मना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। उमस के चलते घुटन होने पर हम डिब्बे के बीच से गेट पर पहुंचे तो रास्ता पूरा जाम था। टायलेट के पास खड़े महेंद्र ने बताया कि उन्हें इटारसी उतरना है। अंदर गर्मी लग रही थी इसलिए गेट पर आकर खड़े हो गए। उनका परिवार अंदर है। दिल्ली पर बड़ी मुश्किल से सीट मिली थी। दस मिनट गेट पर खड़े हुए कि अंदर से दो लोग बाहर निकले। गेट की तरफ बढ़ते हुए बोले, भाई जगह देना, मुरैना पर उतरना है। नौ बजकर 45 मिनट पर ट्रेन मुरैना स्टेशन पर रुकी। जनरल डिब्बे के मुश्किल सफर के बाद हम भी यहां उतर गए।
जो लोग रात में सो न पाए, अब उनकी बारी थी
डिब्बे में ऊपर की बर्थ पर बारी-बारी से सोने का क्रम था। एक ही परिवार के जो लोग रात को सो लिए थे, वह नीचे उतर आए थे। उनकी जगह दो और लोग अब सोने के लिए ऊपर चढ़ गए थे। कुछ लोग फर्श पर ही सोए हुए थे।
टायलेट तक पहुंचाना था मुश्किल
भीड़ का आलम यह था कि टायलेट तक जाने का रास्ता नहीं था। भीड़ से जूझने के बाद ही इधर-उधर पैर रखकर टायलेट तक पहुंच पा रहे थे। टॉयलेट का हाल भी खराब था। गेट पर ही दुर्गंध फूट रही थी।
बढऩे चाहिए जनरल डिब्बे
जनरल बोगी में सफर करने वाले जयवीर का कहना था कि रेलवे को आम आदमी के बारे में भी सोचना चाहिए। जनरल डिब्बों की संख्या बढ़ानी चाहिए। वहीं राम खिलाड़ी का कहना था कि एक-एक डिब्बे में 200 लोग तक सफर करते हैं। गाडिय़ों में जनरल कोच की संख्या दोगुनी होनी चाहिए।
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