CoronaVirus History: सन 1932 में कुत्तों पर हुआ था पहली बार कोरोना वायरस का हमला, 18 साल में बदले थे इसने सात स्ट्रेन
पेट्स में पाया जाता है ये कोरोना वायरस लेकिन पेट्स पर ही करता था अटैक। 18 सालों तक विज्ञानियों की निरंतर रिसर्च के बाद वैक्सीन तैयार हो पाई मगर इस दौरान कोरोना वायरस ने सात बार स्ट्रेन बदले थे। 1950 में शुरू हुआ था पशुओं पर दुनिया में वैक्सीनेशन।
आगरा, राजेश मिश्रा। कोविड 19 ने पूरी दुनिया में हा-हाकार मचा रखा है। वायरस के बदलते स्ट्रेन से महामारी का आलम कायम है। कई देश अभी भी इसकी चपेट में हैं। आम हो या खास, हर कोई दहशतजदा है। भारत में कोरोना का वैक्सीनेशन जल्द शुरू होने वाला है। इस वैक्सीन के लिए देश-दुनिया के विज्ञानी दिनरात एक किए हुए थे। वायरस का नया स्ट्रेन कभी-कभी विज्ञानियों को चिंतित कर देता है। पेट्स यानी कुत्तों में कोरोना वायरस की पहचान कई दशक पहले हो गई थी। 18 सालों तक विज्ञानियों की निरंतर रिसर्च के बाद वैक्सीन तैयार हो पाई, मगर इस दौरान कोरोना वायरस ने सात बार स्ट्रेन बदले थे।
कोरोना संक्रमण एक जेेनेटिक डिसीज है। ये स्तनधारी पशुओं से इंसान में फैलती है, मगर पेट्स में पाए जाने वाले कोरोना वायरस में ऐसा कभी नहीं पाया गया। पेट्स से पेट्स में ही ये बीमारी फैलती है। पशु चिकित्सा में इसे कोरोना वायरल डायरिया कहा जाता है। बुखार, उल्टी-दस्त इस बीमारी के लक्षण होते हैं। पशुधन प्रसार अधिकारी डा. सतीश शर्मा इस वायरस के इतिहास के बारे में बताते हैं कि पेट्स में कोरोना वायरस की पहचान सबसे पहले 1932 में हुई थी। इसके बाद से ही विज्ञानी वैक्सीन की तैयारी में जुट गए थे। मगर, वायरस के बार-बार बदलते स्ट्रेन ने विज्ञानियों को भ्रमित बनाए रखा। आखिर 1950 में इसकी वैक्सीन बाजार में आ गई थी। इस दौरान वायरस ने सात बार स्ट्रेन बदले थे।
अक्टूबर-नवंबर से जनवरी-फरवरी तक रहता है खतरा
कोरोना वायरस लिविंग वायरस है। चिकित्सक बताते हैं कि ये वायरस आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर से जनवरी-फरवरी के दरम्यान ज्यादा प्रभावी रहता है। इस दौरान पेट्स की सुरक्षा का ध्यान ज्यादा रखना होता है। कुत्तों में पारवो संक्रमण भी इसी दौरान बढ़ता है। बुखार और रक्तस्राव के कारण पेट्स की मौत भी हो जाती है। डा. शर्मा बताते हैं कि पेट्स में कोरोना संक्रमण को आम वायरल समझा जाता रहा है। क्योंकि इसके लक्षण भी डायरिया जैसे ही हैं। इससे संक्रमित पेट्स में मौत का खतरा कम रहता है। इसलिए इस वायरस की विशेष जांच की कभी जरूरत नहीं समझी गई।
पेट्स में होता है कोरोना टीकाकरण
कुत्ते पालने का शौक लोगों में हमेशा से ही रहा है। पहले ये शौक स्टेटस सिंबल माना जाता था, मगर अब लोगों में पशु प्रेम बढ़ा है। पेट्स की देखभाल अपने परिवार के सदस्य की तरह ही करते हैं। पेट्स से किसी तरह का संक्रमण न फैले, इसके लिए नियमित रूप से वैक्सीनेशन कराते हैं। डा. शर्मा बताते हैं कि पेट्स में तीन तरह का वैक्सीनेशन किया जाता है। पहली वैक्सीन सेवन इन वन, दूसरी कोरोना वायरल और तीसरी एंटी रैबीज। ये वैक्सीनेशन नियमित रूप से कराया जाता है। ये वैक्सीन कई कंपनियां बनाती हैं।
स्ट्रीट डॉग्स का भी वैक्सीनेशन कराते हैं डॉग्स लवर
गली के कुत्तों को लोग अभी भी हेय दृष्टि से देखते हैं, उन्हें भगाते हैं। गली के कुत्ते अक्सर काट लेते हैं। इससे रैबीज बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। समय पर प्रभावी इलाज न कराया जाए तो ये बीमारी जानलेवा भी साबित हो जाती है। इसके लिए आम लोग स्ट्रीट डॉग्स से दूर ही रहते हैं। मगर, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपनी गली-मुहल्ले के आवारा कुत्तों का ध्यान रखते हैं। डा. शर्मा बताते हैं कि समाज में डॉग्स लवर का ट्रेंड बढऩे लगा है। तमाम लोग स्ट्रीट डॉग्स का वैक्सीनेशन कराने लगे हैं। पश्चिमपुरी स्थित पशु सुरक्षा कवच संस्थान के सेवा प्रमुख डा. शर्मा कहते हैं कि ऐसे स्ट्रीट डॉग्स का वैक्सीन उनकी संस्था मुफ्त में करती है।
कोविड 19 के बाद बढ़ गई जागरूकता
पेट्स के टीकाकरण के बारे में आम लोग ज्यादा जागरूक नहीं थे। उनकी जानकारी और ध्यान सिर्फ वैक्सीनेशन नाम तक ही सीमित था। मगर, कोविड 19 के प्रकोप के बाद लोगों में अपने पेट्स को भी कोरोना वैक्सीनेशन के बारे में जागरूकता बढ़ी है। इसीलिए पेट्स में कोरोना वैक्सीनेशन कराने का चलन बढ़ा है। बाजार में वैक्सीन की डिमांड भी बढ़ गई है।