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भूल से भी न भूलें पितरों को इन दिनों में तर्पण करना, जानें क्या है वजह

सोमवार से शुरु हो रहे पितृपक्ष में वर्जित होते हैं शुभ कार्य। पितरों का आशीर्वाद प्राप्‍त करने का अवसर देता है यह पक्ष।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 05:06 PM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 05:06 PM (IST)
भूल से भी न भूलें पितरों को इन दिनों में तर्पण करना, जानें क्या है वजह
भूल से भी न भूलें पितरों को इन दिनों में तर्पण करना, जानें क्या है वजह

आगरा: श्रद्धा, समर्पण और तर्पण को समर्पित विशेष दिन सोमवार से आरंभ हो रहे हैं। 24 सितंबर से श्राद्धपक्ष आरंभ हो रहा है। ये 16 दिन पितरों का आशीर्वाद पाने का सुनहरा अवसर लेकर आते हैं। श्रद्धापूर्वक जो किया जाए उसे ही श्राद्ध कहा जाता है। श्रद्धा शब्द में श्रत् यानि सत्य और धा यानी धारण करना शामिल है। साधारण भाषा में कहा जाए तो सत्य को धारण करना है। ज्योतिषाचार्य पवन मेहरोत्रा बताते हैं कि तैतरीय उपनिषद् के अनुसार मिट्टी से निर्मित इस शरीर के विविध तत्वों का मृत्यु उपरांत ब्रह्मांड में विलय हो जाता है, पर मोह के धागे नहीं छूटते हैं। मरने के बाद भी आत्मा में मोह, माया का अतिरेक होता है और यह प्रेम ही उन्हें पितृ पक्ष में धरती पर वंशजों के पास खींचता है।

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क्या होता है श्राद्ध पक्ष

ज्योतिषाचार्य पवन के अनुसार मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष के 16 दिनों में (प्रतिपदा से लेकर अमावस्या) तक यमराज पितरों को मुक्त कर देते हैं। पितर अपने-अपने हिस्से का ग्रास लेने के लिए अपने वंशजों के समीप आते हैं, जिससे उन्हें आत्मिक शांति प्राप्त होती है।

ज्योतिषीय गणना के अनुसार जिस तिथि में माता- पिता, दादा- दादी आदि परिजनों का निधन होता है उन्हीं तिथि अनुसार इन 16 दिनों में उसी तिथि पर उनका श्राद्ध किया जाता है। तिथि के अनुसार श्राद्ध करने से पितृ लोक में भ्रमण करने से मुक्ति मिलकर पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्रीमद भागवत् गीता या भागवत पुराण का पाठ अति उत्तम माना जाता है।

क्यों नहीं किये जाते पितृपक्ष में शुभ कार्य

ज्योतिष-विज्ञान में नवग्रहों में सूर्य को पिता व चंद्रमा को मां का पर्याय माना गया है। जिस तरह सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण लगने पर कोई भी शुभ कार्य का शुभारंभ वर्जित होता है, वैसे ही पितृ पक्ष में भी माता-पिता, दादा-दादी के श्राद्ध-पक्ष के कारण शुभ कार्य शुरू करने को अशुभ माना गया है।

श्राद्ध को कहते हैं महापर्व

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार अश्विन माह के कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक अपने पितरों के श्राद्ध की परंपरा है, यानी कि 12 माह के मध्य में छठे माह भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से (यानी आखिरी दिन से) 7वें माह अश्विन के प्रथम पांच दिनों में यह पितृ पक्ष का महापर्व मनाया जाता है। इससे महापर्व इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि नवरात्र 9 दिन के होते है, गणेश भी 7-9 दिन विराजित होते है किन्तु श्राद्ध 16 दिनों तक मनाया जाता है जो तिथियों पर मनाये जाने के लिए है।

क्यों जरूरी है श्राद्ध करना

शास्त्रों में भी कहा गया है कि सीधे खड़े होने के लिए रीढ़ की हड्डी का मजूबत होना बहुत आवश्यक है, जो शरीर के मध्य भाग में स्थित है और जिसके चलते ही हमारे शरीर को एक पहचान मिलती है। हमारी यह मजबूत बनी रहे उसके लिए हर वर्ष के मध्य में अपने पूर्वजों को अवश्य याद करें। श्राद्ध कर्म के रूप में अपना धन्यवाद दें।

क्या होते हैं पितर

पितर का अर्थ पितृ या श्रेष्ठजन होता है। बृहदारण्यक उपनिषद् के अनुसार पुत्र वह है, जो न किए गए कार्यों से अपने पिता की रक्षा करता है। पुत् का अर्थ पूरा करना है और त्र का अर्थ रक्षा करना है। पिता मृत्यु समय अपना सब कुछ पुत्र या पुत्री को सौंप देते हैं। इसलिए संतान पर पितृ ऋण होता है। श्राद्ध पक्ष पितरों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने का अवसर देता है।

कैसे करें तर्पण

श्राद्ध पक्ष में जल और अन्न से तर्पण करना चाहिए। पितर सूक्ष्म शरीर हैं अर्थात् ब्रह्म की ज्योति हैं, पर अभी मुक्त नहीं हुए हैंं। उनका प्राण अपने वंशजों में उलझा हुआ है। श्राद्ध पक्ष में जल का अर्घ्य देने का अर्थ होता है कि जल से ही विश्व जन्म लेता है, उसके द्वारा सिंचित होता है और फिर उसमें लीन हो जाता है। तर्पण में जल में अन्न मिलाकर अर्पित करने का प्रावधान है, क्योंकि यह शरीर अन्न से अनुप्राणित होता है। भक्ति भाव से पितरों को जब जल और अन्न द्वारा श्राद्ध पक्ष में तर्पण किया जाता है, तब उनकी आत्मा तृप्त होती है और उनका आशीष कुटुंब को कल्याण के पथ पर ले जाता है।


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