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यहां के लिए संकटमोचन है सावन की परिक्रमा, जानिए क्‍या है इतिहास और महत्‍व Agra News

तीन सौ साल से भी ज्यादा पुरानी है परंपरा। सावन माह में शिव भक्ति से सराबोर हो उठता है आगरा।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 15 Jul 2019 12:53 PM (IST)Updated: Mon, 15 Jul 2019 09:41 PM (IST)
यहां के लिए संकटमोचन है सावन की परिक्रमा, जानिए क्‍या है इतिहास और महत्‍व Agra News
यहां के लिए संकटमोचन है सावन की परिक्रमा, जानिए क्‍या है इतिहास और महत्‍व Agra News

आगरा, जागरण संवाददाता। प्रेम और सौहार्द की नगरी में कभी कोई बड़ी आपदा नहीं आई। शहर के चारों कोनों पर स्थापित कोतवाल (महादेव मंदिर) कैलाश, बल्केश्वर, राजेश्वर और पृथ्वीनाथ महादेव मंदिर यहां की रक्षा करते हैं। महादेव को प्रसन्न करने और शहर को आपदाओं से मुक्त रखने के लिए सदियों से सावन के दूसरे सोमवार को इन शिवालयों की परिक्रमा होती है और पूरी ताजनगरी बम-बम भोले के जयकारों से गूंज उठती है। कंकड़ और कांटों की परवाह किए बगैर भक्त 40 किमी से अधिक लंबी परिक्रमा को पूरी करके ही रुकते हैं। इस दिन बल्केश्वर महादेव मंदिर पर मेला लगता है। परिक्रमा राह में पडऩे वाले मन:कामेश्वर, रावली, वनखंडी समेत अन्य मंदिरों में भी भक्त अपने आराध्य का जलाभिषेक करते हैं।

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क्या है परिक्रमा का इतिहास

श्रावण मास में भगवान शिव की आराधना का खास महत्व है। आगरा के लिए तो यह महीना और भी महत्व रखता है। यहां शहर के चारों कोनों पर विराजमान शिवालयों की परिक्रमा की जाती है। शिव की भक्ति में लीन भक्त नंगे पांव करीब 40 किमी की परिक्रमा कैलाश, बल्केश्वर, राजेश्वर, पृथ्वीनाथ महादेव मंदिरों के दर्शन करते हुए लगाते हैं। पूरे उत्तर भारत में इस तरह की परिक्रमा कहीं और नहीं लगाई जाती। इसकी शुरुआतऔर इतिहास को लेकर जानकारों के अलग-अलग मत हैं...

मध्यकाल में शुरू हुई परिक्रमा

इतिहासकार प्रो. सुगम आनंद बताते हैं कि शहर में जो प्राचीन शिव मंदिर हैं, वे राजपूत काल के हैं। यह तुर्कों के आक्रमण से पहले के हैं। हर मंदिर का अलग इतिहास है। मध्यकाल में इन मंदिरों को महत्व मिला और वहां मेले लगाए जाने लगे। मंदिर शहर के कोनों पर थे, इसीलिए परिक्रमा शुरू हुई। मुगल शहंशाह अकबर के समय राजा मानसिंह ने इसे प्रश्रय दिया था। राजनीतिक कारणों से मंदिर तोड़े भी गए, लेकिन परिक्रमा जारी रही। इसमें कोई व्यवधान नहीं आया।

मराठा काल में हुई शुरुआत

इतिहासविद् राजकिशोर राजे बताते हैं कि परिक्रमा प्राचीन काल से लगती आ रही है। औरंगजेब के शासनकाल में इस परिक्रमा को रोक दिया गया था। औरंगजेब की मौत के बाद 1775 में मराठाओं का प्रभुत्व बढ़ा। करीब 250 साल पहले आगरा उनके आधिपत्य में आ गया था। उन्होंने यहां सल्तनत व मुगल काल में ध्वस्त कराए गए 14 मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया था। मराठों ने शिव मंदिरों और जाटों ने कृष्ण मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया था। मराठाकाल में फिर से यह प्रसिद्ध परिक्रमा शुरू हुई।

यह भी है मान्यता

पहले परिक्रमा सिर्फ नवविवाहित पुरुष ही लगाते थे। परिक्रमार्थी बल्केश्वर और कैलाश घाट पर आकर स्नान व आराम करते थे। यहां उनकी पत्नी खाना लेकर पहुंचती थी। धीरे-धीरे यह परंपरा समाप्त होती गई। अब बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी परिक्रमा लगाते हैं।

महामारी से बचाने को भी लगाई गई थी परिक्रमा

मन:कामेश्वर मंदिर के महंत योगेश पुरी बताते हैं कि परिक्रमा का प्राचीन इतिहास है। ताजनगरी शिव की नगरी है। चारों कोनों से महादेव शहर की रक्षा करते हैं। 1827 के आसपास पूरे देश में प्लेग फैला था। इससे बचाव को शहर के चारों कोनों पर स्थित शिव मंदिरों की परिक्रमा की गई थी। जिस तरह गांव की परिक्रमा कर ग्राम देवता से भले की कामना की जाती है, उसी तरह शिव परिक्रमा से शहर के भले की कामना की गई। इसका असर यह हुआ कि आगरा में प्लेग का असर देखने को नहीं मिला। यह बाबा भोलेनाथ का ही आशीर्वाद है कि आज तक शहर का अनिष्ट नहीं हुआ। 1971 के युद्ध के समय भी पाकिस्तान ने एक बम गिराया, लेकिन हवाई पïट्टी पर गिरने के बाद भी वह नहीं फटा।

घर से होती है परिक्रमा की शुरुआत

शहर के चारों शिव मंदिरों की परिक्रमा की शुरुआत श्रृद्धालु अपने घरों से ही करते हैं। घर से बड़ों का आशीर्वाद लेने के बाद पास जो भी शिव मंदिर हो, वहां के दर्शन कर परिक्रमा की शुरूआत कर दी जाती है। चारों मंदिरों की परिक्रमा के बाद घर के पास स्थित उसी मंदिर पर परिक्रमा का समापन किया जाता है।

भक्तों को प्रिय है परिक्रमा मार्ग

शिव भक्तों को इस परिक्रमा का मार्ग बेहद प्रिय है। वे इसमें किसी तरह का परिवर्तन नही चाहते हैं। सालों से परिक्रमा लगाने वाले बताते हैं कि 2001 में हुई आगरा शिखर वार्ता में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के दौरे के दौरान प्रशासन ने अमर विलास होटल के पास परिक्रमा का रूट बदलने की कोशिश की थी, लेकिन परिक्रमार्थी नहीं माने। उन्होने अपने सालों से निर्धारित रूट से ही परिक्रमा लगाई थी और प्रशासन को भी उनकी मांग को मानना पड़ा था।

भोले के भक्तों को कांटा लगेगा, कंकड़ भी चुभेगा

सावन के दूसरे सोमवार को नगर परिक्रमा एक बार फिर लगाई जाएगी। हजारों की संख्या में भक्त भोले के जयकारे लगाते हुए मग्न होकर सड़क पर निकलेंगे। परिक्रमा में अभी दो सप्ताह का समय है। ऐसे में परिक्रमा मार्ग के हाल क्या हैं, यह जानने के लिए जागरण टीम ने बल्केश्वर महादेव से राजेश्वर मंदिर तक का हाल देखा। परिक्रमा में भोले के भक्तों को सड़क पर कांटा भी लगेगा और कंकड़ भी चुभेंगे। 

बल्केश्वर मंदिर से ही जागरण टीम ने परिक्रमा मार्ग के हाल देखने की शुरुआत की। मंदिर के सामने कूड़े का कंटेनर रखा था। वाटरवक्र्स की ओर चलने पर अधिकांश सड़क तो ठीक थी, लेकिन किनारों पर गंदगी का आलम था। आइटीआइ से लेकर अग्रवन तक का रास्ता खराब है। बीच-बीच में गड्ढे हैं और सड़क भी टूटी है। यहां से आगे चलने पर यमुना आरती स्थल पर सड़क टूट रही है। इसके आगे हाथी घाट तक सड़क का हाल ठीक है। हाथी घाट से मन:कामेश्वर मंदिर तक का रास्ता परिक्रमार्थियों को परेशान करने वाला होगा। सड़क का हाल तो खस्ता है ही, उसके साथ सड़क पर छोटे-छोटे कंकड़ पड़े हैं। गड्ढों से तो बचकर निकल सकते हैं, लेकिन कंकड़ परिक्रमार्थियों को जरूर परेशान करेंगे।

एक किमी रास्ते पर छलनी होगी आस्था

मन:कामेश्वर से आगे बढऩे पर माल रोड तक सड़क बहुत अच्‍छी है, मगर यहां से ओनली रेस्टोरेंट होकर राजेश्वर मंदिर की ओर जाने वाली सड़क के हाल बेहद खराब हैं। एक किमी के इस रास्ते पर परिक्रमार्थियों को सबसे ज्यादा परेशानी होगी। सड़क जगह-जगह से उधड़ी पड़ी है। बड़े-बड़े गडढे हो रहे हैं, इन गड्ढों से वाहन निकलने में भी मुश्किल हो रही है। इसके अलावा सड़क पर छोटी-छोटी बजरी फैली है, जो परिक्रमार्थियों को परेशान करेगी। यहां से राजेश्वर मंदिर तक रास्ता तो ठीक है, लेकिन बीच-बीच में गंदगी की भरमार है।


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