सेना में भर्ती होना है तो चले आइए चंबल घाटी, सीखिए कैसे होती है तैयारी
कहते हैं कि इस देश की माटी में ही वीरता की तासीर है। गर्म खून के लिए पहचाने जाने वाले चंबल नदी से सटे इलाके में अब डकैत नहीं बल्कि सैनिक तैयार होते हैं। छोटे-छोटे गांवों में युवा सेना में भर्ती होने को सर्दी में भी पसीना बहा रहे हैं।
आगरा, सत्येंद्र दुबे। चंबल की माटी की तासीर ही ऐसी है कि खून में गर्मी है। कुछ दशक पहले व्यवस्था से तंग लोग बीहड़ का रास्ता चुनते थे और डकैत बनते थे। अब डकैत नहीं, यहां के युवा फौजी बन रहे हैं। सरहद पर जाकर देश की सीमा की रक्षा कर रहे हैं। जरूरत पड़ी तो प्राण न्यौछावर करने से यहां का फौजी कभी पीछे नहीं हटा। आगरा के नजदीक बाह के तमाम गांवों में सुबह और शाम को आपको युवा सेना भर्ती की तैयारी करते दिख जाएंगे। गांव में लगी चौपालों पर रिटायर्ड फौजी अपनी वीरता के किस्से सुनाते नजर आएंगे। इन्हीं रिटायर्ड फौजियों का अनुभव युवाओं के काम आ रहा है। वे खुद युवाओं को सेना भर्ती के लिए प्रेरित करते हैं और खुद तैयारी भी कराते हैं।
आगरा जिले की बाह तहसील आबादी चार लाख के करीब है। तहसील क्षेत्र में 207 गांव में तीन हजार से अधिक भूतपूर्व सैनिक रहते हैं। चार हजार से अधिक की संख्या में जवान सेना की तीनों विंग में तैनात हैं। इनमें सैनिक से लेकर कर्नल तक रैंक के लोग शामिल हैं। यहां तक कि रिटायर्ड वायु सेना प्रमुख राकेश सिंह भदौरिया का गांव कोरथ भी बाह तहसील में ही स्थित है। हर घर में फौजियों की वर्दियां और मेडल टंगे हैं। होश संभालते ही यहां का बच्चा सुबह -शाम दौड़ना शुरू कर देता है। लंबी कूद, कसरत इनकी दिनचर्या में शामिल है।
इस इलाके का ही एक गांव है बड़ागांव। यहां सैनिक बनने की प्रक्रिया प्रथम विश्व युद्ध से शुरू हुई, जो अब तक जारी है। बाह तहसील के गांव रुदुमुली से हर युद्ध में यहां के सैनिकों ने भाग लिया और कइयों ने देश के लिए अपना बलिदान दिया। इस गांव को शहीदों के गांव का दर्जा दिया गया है। बाह तहसील को आगरा जिले में सबसे अधिक सैनिक देने की उपाधि मिली हुई है।
सुबह-सुबह पीटी परेड
बड़ागांव के मोहित सुबह-सुबह दौड़ करते हुए मिले। सर्दी में भी पसीने से लथपथ मोहित ने बताया मेरी तीन पीढ़ियां फौज में है। मैं भी फौज में जाने की तैयारी कर रहा हूं। गौरव, सौरभ के तीन भाई भी सेना में हैं। जिला मुख्यालय से 75 किमी व तहसील मुख्यालय से पांच किमी दूर यमुना व चंबल के बीहड़ के बीच बसा है बड़ागांव। यहां पर आसपास के कई गांव के युवा सुबह-सुबह सड़क व खेत की मेड़ पर पसीना बहाते दिखते हैं। हर युवा की आंखों में देश सेवा करने के अलावा सुनहरे भविष्य का सपना पल रहा है। कोई पायलट, कोई एयरमैन तो कोई नाविक बनना की चाहत रखता है।
हर युद्ध में लिया भाग
प्रथम विश्व युद्ध से लेकर हर जंग में यहां के जवानों ने भाग लिया है। बड़ागांव निवासी पूर्व सैनिक महावीर सिंह भदौरिया बताते हैं कि उनका पुत्र विक्रम सिंह व पौत्र दीपक एयरफोर्स में रह कर देश सेवा कर रहे हैं। बाह के हर गांव में पूर्व व वर्तमान सैनिकों की फौज है। उन्होंने 1965, 1967, 1971 के युद्ध में भाग लिया है। 1971 के युद्ध में पाकिस्तान से बंग्लादेश को आजाद कराने की लड़ाई में भी वे शामिल थे।
मेजर सूबेदार राजभान दे रहे रहे ट्रेनिंग
बड़ागांव निवासी रिटायर्ड मेजर सूबेदार राजभान सिंह की देखरेख में सेना में भर्ती होने के लिए गांव के अलावा अन्य गांव के करीब 200 युवा सेना में भर्ती होने की तैयारी कर रहे हैं। राजभान सिंह युवाओं को निशुल्क टिप्स दे रहे हैं। अभी तक उनकी ट्रेनिंग से करीब 30 युवा सेना में भर्ती हो चुके हैं।
सेना के लिए कर रहे तैयारी
बाह के बड़ागांव, भोपे का पुरा, पुरा जवाहर, रुदुमुली, कोरथ, सिमराई, पुरा बाघराज, बरहा, गौंसिली, अभयपुरा, हरलाल पुरा, क्वारी, फोहपुरा, नावली, मऊ, सिजवाई पुरा, नहटौली, विक्रमपुर, कलींजर, मई, सियाइच, कलियान पुर, भरतार, पुरा भदौरिया, स्याहीपुरा, मानिक पुरा, बसई अरेला, गंजन पुरा, भैनिग पुरा, लडउआ पुरा के अलावा अन्य गांव में भी सुबह-सुबह युवा पसीना बहाते नजर आयेंगे।