Holi in Braj: ढाल नहीं, इन्हें कमाल कहिये जनाब, लठों की मार सहने को ऐसे हो रहीं तैयार Agra News
पहली बार एलईडी का हो रहा है प्रयोग युवाओं की खास पसंद। लठ की मार चोट सह लेगी एयरबैग लगी ढाल।
आगरा, किशन चौहान। विश्व प्रसिद्ध लठामार होली की परंपरा भले ही नहीं बदली मगर, इस बार स्वरूप बदला होगा। लठ की मार से बचाव करने वाली ढाल इस बार इलेक्ट्रॉनिक रूप लिए होगी। जैसे ही हुरियारिन लठ मारेगी, ढाल पर पड़ते ही रंग-बिरंगी एलईडी चमकने लगेगी। इसी तरह, कुछ ढाल में एयरबैग लगाए गए हैं। ऐसी ढाल लठ की मार को हल्का कर देगी।
बरसाना की रंगीली लगी में नंदगांव के हुरियारे जब लाडली जी मंदिर से लौटते में हुरियारिनों से हास-परिहास करते हैं तो हुरियारिनें उन पर प्रेम पगे लठ बरसाती हैं। हुरियारे ढाल से उनका बचाव करते हैं। आजादी से पहले अंग्रेज कलक्टर एफएस ग्राउस ने अपनी पुस्तक 'मथुरा मेमोरियलÓ में किए बरसाना की होली के महिमा मंडन में चमड़े की ढाल का प्रयोग किए जाने का जिक्र किया था लेकिन, इसके बाद कहीं पर चमड़े की ढाल का प्रयोग होने की जानकारी नहीं है।
समय के साथ ही ढाल के स्वरूप में बदलाव होता रहा। अब तक टायर का बेस और उसके बाद लकड़ी के बीच स्प्रिंग लगाई जाती रही हैं। स्प्रिंग से लठ की मार हल्की महसूस की जाती और हुरियारों को चोट भी नहीं लगती।
तीन पीढिय़ों से ढाल बनाते रहे रमेश सैनी बिजली मैकेनिक भी हैं। रमेश ने बताया कि इस बार ढाल में बदलाव का विचार आया तो एक मॉडल बनाया। ढाल के चारों ओर घेरे में रंग-बिरंगी एलईडी लगाई। इसको तकनीकी रूप से ऐसा फिक्स किया कि लठ की मार पड़ते ही एलईडी ऑन हो जाए। इसी तरह से, एक ढाल के नीचे ट्यूब फिट कर उसमें हवा भरकर एयरबैग का रूप दिया गया है। ये ढाल बहुत पसंद आईं तो अब इनको तैयार किया जा रहा है। रमेश सैनी बताते हैं कि ढाल में ये बदलाव करीब पचास साल बाद किया गया है। पचास साल पहले चमड़े की ढाल प्रयोग की जाती थी।
आकर्षक लगेगी लठामार होली
रमेश बताते हैं कि लठामार होली सूर्य के अस्ताचल की ओर जाने तक होती है। इस वक्त तक दिन का उजाला थोड़ा कम होने लगता है और सांय बेला शुरू हो जाती है। ऐसे में एलईडी वाली ढाल की चमक इस होली को आकर्षक बना देगी।
ये है कीमत
रमेश के अनुसार, सामान्य ढाल की कीमत ढाई हजार रुपये हैं, जबकि एयरबैग ढाल की कीमत तीन हजार रुपये है। एलईडी वाली ढाल की कीमत साढे तीन हजार रुपये है।
रात भर होती है होली
बरसाना और नंदगांव में तो परंपरागत लठामार होली सूर्यास्त होते ही बंद हो जाती है मगर, ब्रज में गांव-गांव शौकिया लठामार होली होती रहती है। कहीं-कहीं ये होली शाम को भी होती है। तब इन ढाल का उपयोग होगा। रमेश बताते हैं कि उनके पास एलईडी ढाल के ऑर्डर बहुत आ चुके हैं।