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Holi Special 2019: तो मुगल भी मनाते थे होली का त्‍योहार, बस नाम था ये

ब्रज संस्कृति शोध संस्थान वृंदावन के सचिव ने बताया होली का इतिहास। मुगलकाल में होली का उल्लास पांडुलिपियों में है दर्ज।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sat, 02 Mar 2019 12:18 PM (IST)Updated: Sat, 02 Mar 2019 12:18 PM (IST)
Holi Special 2019: तो मुगल भी मनाते थे होली का त्‍योहार, बस नाम था ये
Holi Special 2019: तो मुगल भी मनाते थे होली का त्‍योहार, बस नाम था ये

आगरा, जेएनएन। इतिहासकारों का मानना है कि होली का पर्व हिंदु ही नहीं आर्यों में भी प्रचलित था। लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में इस त्योहार के बारे में लिखा हुआ है। इसमें खास तौर पर 'जैमिनी' के पूर्व मीमांसा- सूत्र और कथा गाह्र्य-सूत्र शामिल हैं। नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। मुगलकाल में होली का पर्व राजे रजवाड़ों में भी उल्लास पूर्वक मनाया जाता था। होली को मुगलकाल में मदनोत्सव के रूप में भी मनाया जाता था। इसका उल्लेख ब्रज संस्कृति शोध संस्थान में संरक्षित पांडुलिपियों में दर्ज है।

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ब्रज संस्कृति शोध संस्थान, वृंदावन के सचिव लक्ष्मीनारायण तिवारी बताते हैं कि शैवागम की विचारधारा से संबंधित ग्रंथ वर्ष क्रिया कौमुदी में मदन महोत्सव (होली उत्सव) के तहत सुबह के पहले प्रहर तक संगीत और वाद्य के साथ श्रृंगारिक अपशब्दों का उपयोग करते हुए कीचड़ उछालने का उल्लेख है। मुगलकाल में होली का ये उल्लास पांडुलिपियों में दर्ज है। मुगलकाल के चित्रकार अबुल हसन द्वारा बनाई गई जहांगीर के हरम में मनाए जाने वाली होली का एक चित्र जहांगीर एलबम में लंदन के संग्रहालय में सुरक्षित है। जिसमें दो घड़ों में रंग भरा है, एक सुंदर नारी पिचकारी मार रही है, दूसरी सुंदरी निशाना लगाने की कोशिश कर रही है। बादशाह जहांगीर ताज पहने हैं और उनकी बेगम बगल में खड़ी है। तिवारी ने बताया कि इस तरह के प्रमाण अनेकों पांडुलिपियों में मिलते हैं। कि जहांगीर और बादशाह अकबर के दरबार में होली का पर्व उल्लास पूर्वक मनाया जाता था।

तिवारी ने बताया कि अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहांगीर का नूरजहां के साथ होली खेलने का वर्णन इतिहास में है। अलवर संग्रहालय के एक चित्र में जहांगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है। शाहजहां के समय तक होली खेलने का मुग़लिया अंदाज ही बदल गया था।

शाहजहां के समय में होली को 'ईद-ए-गुलाबी' या 'आब-ए-पाशी' (रंगों की बौछार) कहा जाता था। लेकिन होली का उल्लास बरकरा रहा। मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे। वहीं हिन्दी साहित्य में कृष्ण की लीलाओं में भी होली का विस्तार रूप से वर्णन किया गया है।

कामदेव की पूजा: मदनोत्सव

तिवारी ने बताया कि शैवागम की विचारधारा से संबंधित ग्रंथ (वर्ष क्रिया कौमुदी) में मदन महोत्सव (होली उत्सव) के अंतर्गत प्रात: काल से एक प्रहर तक संगीत और वाद्य के साथ श्रृंगारिक अपशब्दों के बोलते हुए कीचड़ उछालने का उल्लेख है। हर्ष देव की रत्नावली में उल्लेख है कि दक्षिण भारत में इस उत्सव में चित्र बनाकर कामदेव की पूजा होती थी। भविष्यपुराण में कामदेव और रति की मूर्तियां बनवा कर उनकी पूजा का विधान बताया गया है। कामदेव की पूजा परंपरा यक्ष संस्कृति से संबंधित है। कामसूत्र में इसे सुवसंतक उत्सव बताया है। जिसमें युवतियां कानों में आम्रमंजरी लगाकर वसंत का स्वागत करतीं थीं तथा सींग की पिचकारी से पुष्पों का जल छिड़का जाता था। हर्ष देव के समय की दरबारी परंपरा मुगल दरबार में भी पहुंची। चित्रकार अबुल हसन के द्वारा बनाया गया जहांगीर के हरम में मनाई जाने वाली होली का एक सुंदर चित्र जहांगीर एल्बम में लंदन के संग्रहालय में सुरक्षित है। जिसमें दो घड़ों में रंग भरा हुआ है। एक सुंदरी पिचकारी मार रही है। दूसरी सुंदर निशाना लगाने की कोशिश कर रही है। बादशाह ताज पहने हैं और उनकी बेगम बगल में खड़ी हैं।


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