Holi Special: पहली बार सुबह से बांके बिहारी खेले होली, द्वारिकाधीश कुंज में विराजे
हाईकोर्ट के आदेश पर रंग भरनी एकादशी पर पहली बार सुबह से खेली गई होली। राजभोग दर्शन के साथ हुई उत्सव की शुरुआत।
आगरा, मनोज चौधरी। इत बांके बिहारी पहली बार सुबह से रंगों की होली खेल रहे थे तो उत राजाधिराज कुंज में विराजमान हैं। मथुरा- वृंदावन सुबह से ही होली के उल्लास, उमंग और उत्साह में डूबे हुए हैं। श्रीकृष्ण राधाजी की निश्चल प्रेम की लीलाओं से ओतप्रोत ब्रज वसुंधरा पर प्रेम के रंग, गुलाल और अबीर उड़ रहा है। लाठियों की तड़तड़ाहट गूंज रही हैं। गिले-शिकवे और भाईचारे की मनभावन बयार बह रही है। अनगिनत श्रद्धालु झूम रहे हैं। इन मंदिरों की होली दोपहर में समाप्त हो जाएगी। इसके बाद से कान्हा की जन्मस्थली श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर होली का धमाल मच उठेगा। शाम लठामार होली के साथ ढलेगी।
वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में पहले शाम को तीन बजे होली शुरू हुआ करती थी। हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि सभी उत्सव राजभोग के दर्शन के साथ होने चाहिए। इसी के अनुपालन में रंग भरनी एकादशी को पहली बार ठाकुर बांके बिहारी अपने भक्तों के साथ सुबह साढ़े आठ बजे से होली खेल रहे हैं। होली खेलने का क्रम दोपहर एक बजे तक चलेगा। इसके बाद मंदिर के कपाट बंद हो जाएंगे। ठीक एक घंटे के बाद भगवान श्रीकृष्ण के जन्म स्थल श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर होली उत्सव की धूम मचने लगेगी। साढ़े चार बजे करीब यहां हुरंगा होगा। आसमान से रंग गुलाल बरसाया जाएगा तो नीचे रावल गांव के हुरियारे हुरियारिन लठामार होली खेल रही होंगे। तभी साढ़े चार बजे ठाकुर बांके बिहारी जी अपने भक्तों के लिए मंदिर के कपाट खोल देंगे। कपाट खुलने के साथ ही यहां रंगमार होली शुरू हो जाएगा। सेवायत टेसू और केसर के रंग की बौछार भक्तों पर करना शुरू कर देंगे। सुबह मथुरा में ठाकुर द्वारिकाधीश महाराज कुंज में विराजामान होकर भक्तों के संग होली खेले। सुबह दस से ग्यारह बजे तक मंदिर परिसर में भक्तों की भीड़ इस कदर उमड़ पड़ी कि कहीं भी पांव रखने के लिए स्थान तक नहीं मिल सका। रसिया गायन और सेवायतों की पिचकारी से छूटे रंग की फुहार से समूचा माहौल होली के रंग में रंग गया। कल सोमवार को सुबह से होली का यही मदमस्त उल्लास गोकुल में छा जाएगा। यहां भागवान श्रीकृष्ण ने अपनी बाल्य काल लीलाएं की थीं। छोटे कन्हैया को कहीं चोट न लग जाए, इस भाव से गोपियां छड़ी के संग होली खेलेंगी। इस होली का आनंद लेने के लिए लाखों लोग आएंगे। गोकुल में इसकी तैयारियां कर ली गई हैं।
बांके बिहारी मंदिर परिसर में वन-वे रहा श्रद्धालुओं का प्रवेश
रंगभरनी एकादशी के विशेष महत्व के चलते बांके बिहारी मंदिर में हजारों की संख्या में भक्त पहुंचे। भक्तों की सुविधा के लिए मंदिर परिसर में प्रवेश वन वे ही रहा। विद्यापीठ, किशोरपुरा से आने वाले श्रद्धालुओं को गेट संख्या तीन से और वीआइपी मार्ग व दाऊजी तिराहा से आने वाले श्रद्धालुओं को गेट संख्या दो से प्रवेश दिया गया। जबकि श्रद्धालुओं को गेट संख्या चार से बाहर निकाला गया। गेट संख्या एक को वीआइपी व आकस्मिक तौर पर सुरक्षित रखा गया।
वाहनों की रही नो एंट्री
रविवार को चार पहिया वाहनों का शहर में प्रवेश प्रतिबंधित है। शहर के अंदर ई- रिक्शा व आटो से ही श्रद्धालु गंतव्य तक पहुंच रहे हैं। वहीं परिक्रमा मार्ग में ई-रिक्शा व आटो को भी एंट्री नहीं दी गई है।
जानें क्यों खास है वृंदावन की होली
वृंदावन की होली बहुत ही खास होती है क्योंकि ये वो जगह है जहां भगवान कृष्ण का बचपन बीता। वैसे तो यहां हर एक जगह होली का हुडदंग देखने को मिलता है लेकिन बांके बिहारी मंदिर जैसी होली कहीं देखने को नहीं मिलती। प्राकृतिक रंगों जिसे गुलाल कहा जाता है और पानी के साथ होली खेलने की परंपरा है। मंदिर के पुजारी, जिन्हें गोस्वामी कहा जाता है वो बाल्टी और पिचकारी से भक्तों पर रंगों की बारिश करते हैं। श्रीकृष्ण के भजन पर झूमते-नाचते लोग और गुलाब की खुशबू से पूरा माहौल सरोबार हो जाता है। वृंदावन में होली के दिन भांग और ठंडई भी पिया जाता है। एक-दूसरे को मिठाई बांटने और कृष्ण भजन पर नाचने-गाने का भी रिवाज है।
बांके बिहारी मंदिर का इतिहास
इस मंदिर का निर्माण स्वामी श्री हरिदास जी के वंशजों ने 1921 में किया था। उनके भजन-कीर्तन से प्रसन्न होकर यहं बांकेबिहारी जी प्रकट हुए थे। इनके अराध्यदेव सांवली-सलोनी सूरत वाले बांकेबिहारी जी थे। निकुंज वन में स्वामी हरिदास जी को बिहारी जी की मूर्ति निकालने का सपना आया। तब उनकी आज्ञानुसार सांवली छवि वाले श्रीविग्रह को धरा की गोद से बाहर निकाला गया।
वृंदावन में होली मनाने की खास वजहें
सर्दियों के मौसम जा रहा होता है और वसंत ऋतु का आगमन हो रहा होता है। जिसके चलते लोगों में अलग ही उत्सव और उमंग का माहौल होता है। जिसे लोग मिलजुल, प्यार और रंगों के साथ अपनी खुशियों को जाहिर करते हैं। इसके अलावा होली, बुराई पर अच्छाई की जीत का भी पर्व है। शास्त्रों के अनुसार राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका का सहारा लिया था। क्योंकि प्रह्लाद विष्णु भक्त थे और राजा हिरण्यकश्यप को ये बिल्कुल स्वीकार नहीं था। वो चाहता था कि उनका पुत्र उसे ही भगवान मानकर उसकी पूजा करें जो प्रह्लाद को स्वीकार्य नहीं था। इसी बात से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वो उसे लेकर आग के ऊपर बैठ जाए जिससे प्रह्लाद जलकर मर जाएगा। क्योंकि होलिका को वरदान मिला था कि अग्नि उसे कभी जला नहीं सकती लेकिन वो ये भूल गई थी कि ये वरदान सिर्फ तभी काम करेगा जब वो अकेले होगी। यहां वो प्रह्लाद के साथ थी तो भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद को बचा लिया और होलिका उस अग्नि में जलकर राख हो गई। इसलिए होली के एक दिन पूर्व होलिका दहन किया जाता है।
राधा को अपने रंग में रंगने के लिए कृष्ण खेलते थे होली
ब्रज में प्रचलित एक मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण जब छोटे थे तो एक राक्षस ने उन्हें विष पिला दिया था जिससे उनका रंग सांवला हो गया। राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला अक्सर इसकी शिकायत वो मां यशोदा से किया करते थे। राधा को अपने रंग में रंगने के लिए कृष्ण ने उनके ऊपर बहुत सारे रंग डाल दिए। तभी से एक-दूसरे पर रंग फेंकने की ये परंपरा होली के रूप में मनाई जाने लगी।