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IED धमाके में शहीद जवान का पार्थिव शरीर पहुंचा पैतृक गांव, परिवार में मचा है कोहराम Agra News

जम्मू जिले के सीमावर्ती अखनूर के प्लांवाला सेक्टर में एलओसी के करीब रविवार दोपहर आइईडी धमाके शहीद हो गए थे बाह के पुरा भदौरिया निवासी हवलदार संतोष सिंह।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 18 Nov 2019 05:13 PM (IST)Updated: Mon, 18 Nov 2019 09:11 PM (IST)
IED धमाके में शहीद जवान का पार्थिव शरीर पहुंचा पैतृक गांव, परिवार में मचा है कोहराम Agra News
IED धमाके में शहीद जवान का पार्थिव शरीर पहुंचा पैतृक गांव, परिवार में मचा है कोहराम Agra News

आगरा, जागरण संवाददता। दूर तक फैले सन्‍नाटे को चीरता करुण विलाप। उजड़ चुकी मांग और टूटी हुई चूडि़यांं। बच्‍चों की आंखों में अब कभी पिता के दोबारा न लौटने का गम। गांवभर मेंं पसरा हुआ मातम। यह दर्दनाक मंजर है शहीद हवलदार संतोष सिंह भदौरिया के गांव बाह के पुरा भदौरिया का। रातभर से पथराई आंखे अब अपने लाल के अंतिम दर्शन के लिए व्‍याकुल हुए जा रही हैं। सोमवार देर शाम शहीद का पार्थिव शरीर पैतृक गांव पहुंचा।  शहीद का अंतिम विदाई और परिवार को सांत्‍वना देने के लिए सांसद राजकुमार चाहर पहुंच चुके हैं।

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रविवार को जम्मू जिले के सीमावर्ती अखनूर के प्लांवाला सेक्टर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के करीब रविवार दोपहर इंप्रोवाइज्‍ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आइईडी) धमाके में हलवादार संतोष कुमार शहीद हो गए थे। धमाके में दो अन्य घायल हो गए थे। विस्फोट उस समय हुआ जब सेना के कुछ जवान वाहन से अग्रिम चौकी की ओर बढ़ रहे थे।

संतोष सिंह भदौरिया सेना में हवलदार थे। उनकी वर्तमान तैनाती जम्मू-कश्मीर के पलांवाला सेक्टर के अखनूर में थी। वह फरवरी 1997 को चार आरआर रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। रविवार देर शाम को स्वजनाेें को सेना की ओर से सूचना मिली कि सुबह करीब 11 बजे हुए इंप्रोवाइच्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस(आइईडी) विस्फोट में संतोष सिंह भदौरिया शहीद हो गए हैं।

दो बेटियां और एक बेटा है परिवार में

शहीद संतोष सिंह भदौरिया के परिवार में पत्‍नी विमला देवी के साथ ही दो बेटियां दीक्षा(22) और प्रिया(16) और बेटा अभय (12) है। परिवार आगरा में रहता है। संतोष के दो भाई हैं। दोनों बड़े भाई दिनेश सिंह और लाल जी गांव में रहते हैं। स्वजन ने बताया कि संतोष सिंह अक्टूबर में 15 दिनों की छुटटी से वापस तैनाती पर गए थे।

बेटे को बनाना चाहते थे सैनिक

शहीद संतोष सिंह अपने बेटे को सेना में अफसर बनाने का सपना देखते थे। इसलिए उन्होंने बेटियों के साथ बेटे को भी पढ़ने के लिए शहर भेज दिया था, ताकि वह अच्छी तरह पढ़ाई कर उनका व गांव का नाम रोशन करे। वह बेटियों को आगे बढ़ते देखना चाहते थे, इसके लिए उन्हें सभी सुविधाएं देने का प्रयास किया।

पिता और भाई नहीं हैं सेना में

बाह का यह गांव भी देश और सेना को वीर योद्धा देने के लिए जाना जाता है। इस बात का गर्व शहीद संतोष सिंह को भी था। हालांकि उनके दिवंगत पिता किसान थे और दो अन्य भाई में से एक किसान और दूसरे गांव में रोजगार सेवक थे। वह परिवार के अकेले सैन्यकर्मी थे। इस बात पर पूरा परिवार गर्व करता था।


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