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ताजनगरी से जुड़ी हैं इस्कॉन के श्रील प्रभुपाद की यादें, जानिए किसके प्रोत्‍साहन से गए थे अमेरिका Agra News

मोतीलाल नेहरू रोड पर बनी मथुरा प्रसाद की कोठी पर करते थे प्रवास।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Fri, 05 Jul 2019 01:29 PM (IST)Updated: Fri, 05 Jul 2019 01:29 PM (IST)
ताजनगरी से जुड़ी हैं इस्कॉन के श्रील प्रभुपाद की यादें, जानिए किसके प्रोत्‍साहन से गए थे अमेरिका Agra News
ताजनगरी से जुड़ी हैं इस्कॉन के श्रील प्रभुपाद की यादें, जानिए किसके प्रोत्‍साहन से गए थे अमेरिका Agra News

आगरा, आदर्श नंदन गुप्‍त। कान्हा की बात हो और ताजनगरी का जिक्र न हो, ये हो ही नहीं सकता। मोहब्बत की ये नगरी केवल संगमरमरी हुस्न के मालिक ताज के लिए ही नहीं जानी जाती, बल्कि यहां के जर्रे-जर्रे में इतिहास छिपा है। भगवान श्री कृष्ण की भक्ति के लिए जो अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन) पूरी दुनिया में पहचाना जाता है, उसके संस्थापक स्वामी श्रील भक्ति वेदांत प्रभुपाद का भी आगरा से गहरा लगाव रहा। यहां कई बार आए और कई सप्ताह तक मोतीलाल नेहरू रोड पर धर्मप्रेमी मथुरा प्रसाद अग्र्रवाल के यहां प्रवास किया। उन्हीं के प्रोत्साहन से ही प्रभुपाद अमेरिका गए। वहां से ही उनका कृष्ण भक्ति भाव देश से लेकर विदेशों तक फैलता रहा।

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भक्ति के क्षेत्र में इस्कॉन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त है। देश-विदेश में इसके मंदिर और शाखाएं हैं। यह संयोग ही है कि इस्कॉन द्वारा भगवान श्रीकृष्ण भक्ति का शंखनाद आगरा से ही हुआ। मोतीलाल नेहरू रोड पर श्रीभगवान नर्सिंग होम के सामने मथुरा प्रसाद अग्र्रवाल का आवास है। लाल रंग के इस पुराने भवन में संतों-महंतों का अक्सर आना-जाना और प्रवास रहता था। संत कृपालु महाराज भी यहां कई बार आए। इस्कॉन मंदिर के आगरा अध्यक्ष अरविंद स्वरूप दास प्रभु बताते हैं कि प्रभुपाद पहली बार जब अमेरिका गए, तब उन्हें वीजा आगरा के मथुरा प्रसाद अग्र्रवाल के पुत्र गोपाल प्रसाद अग्र्रवाल ने दिलवाया था।

संन्यास से पहले प्रभुपाद इलाहाबाद की एक फार्मा कंपनी में काम करते थे। उसके लिए वे पहले ही कई बार आगरा आए थे। गोपाल प्रसाद के भतीजे दीपक प्रहलाद अग्र्रवाल बताते हैं कि उनके पिताजी बताया करते थे कि प्रभुपाद जी उनके आवास में बने एक मंदिर में नियमित पूजा-अर्चना, साधना किया करते थे। आज वह कक्ष बदल गया है, लेकिन नए पूजा कक्ष का स्वरूप वही है। मथुरा प्रसाद से उनका लगातार विचार विनिमय रहता था। प्रभुपाद से उन्होंने कहा कि अमेरिका में कृष्णभक्ति की बहुत जरूरत है। इसलिए अमेरिका जाइये। वे इसके लिए राजी हो गए। मथुरा प्रसाद के पुत्र अमेरिका के पेंसिलवानिया बटलर में रहते थे। उन्होंने उनसे बात कर प्रभुपाद को भेजने का फैसला लिया। वर्ष 1965 में वे अमेरिका गए और वहां गोपाल प्रसाद अग्र्रवाल के यहां प्रवास करने लगे। वहां उनके निवास के बाहर पार्क में सत्संग और हरि संकीर्तन करते। उनके अनुयायियों की संख्या तेजी से बढ़ती गई। इस प्रकार आठ माह तक प्रभुपाद ने गोपाल प्रसाद के यहां प्रवास किया। फिर पूरे अमेरिका और बाद में अन्य देशों में भी वे कृष्णभक्ति का प्रचार-प्रसार करने लगे। गोपाल प्रसाद भी इस्कॉन से जुड़ गए और जीवन पर्यंत उसके नियम पर आधारित उपासना की।


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