Move to Jagran APP

होगी ऐसी विदाई तो बार- बार आएंगे गणपति, पढ़ें विध‍ि और बप्‍पा मोरया का महत्‍व Agra News

धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी ने बताई गणपति विसर्जन की विधि। यात्रा पर भेजने की तैयारी सरीखी है गणपति की विदाई की विधि।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 08 Sep 2019 03:06 PM (IST)Updated: Sun, 08 Sep 2019 11:30 PM (IST)
होगी ऐसी विदाई तो बार- बार आएंगे गणपति, पढ़ें विध‍ि और बप्‍पा मोरया का महत्‍व Agra News
होगी ऐसी विदाई तो बार- बार आएंगे गणपति, पढ़ें विध‍ि और बप्‍पा मोरया का महत्‍व Agra News

आगरा, तनु गुप्‍ता। मिलन और जुदाई, जैसे एक सिक्‍के दो पहलू। जिसका जीवन में आगमन हुआ है उसका गमन भी होना है। लेकिन बात तो तब है जब विदाई में भी स्‍वागत जैसा ही उल्‍लास हो। दस दिनों के गणेश उत्‍सव में अब विदाई के दिन चल रहे हैं। गणेश प्रतिमा को जल में प्रवाहित करते वक्‍त ये विदाई के विधान को ही अनदेखा कर देते हैं। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार दस दिनों तक की गई एकदंत की सेवा तभी मेवा रूप लेती है जब उसमें आस्‍था के साथ विधान भी शामिल हो। गणपति विसर्जन में ये ध्‍यान रखें कि गणेशजी की विदाई की तैयारी वैसे ही करनी चाहिए जैसे घर से किसी व्यक्ति के यात्रा पर जाने के समय तैयारी की जाती है।

loksabha election banner

धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी

ऐसे करें विदाई

- सबसे पहले आरती और पूजन कर विशेष प्रसाद का भोग लगाएं।

- श्री गणेश का स्वस्तिवाचन करें। एक स्वच्छ पाटा लेकर उस पर स्वास्तिक का चिह्न बनाकर उस पर अक्षत रखें। इस पर एक साफ वस्त्र बिछाएं। पाटे के चारों कोनों पर चार सुपारी रखें।

- गणेश प्रतिमा को उनकी स्थापना वाले स्थान से जयकारा लगाते हुए उठाकर उन्हें इस पाटे पर विराजित करें। फल, फूल, वस्त्र, दक्षिणा, लड्डू, मोदक रखें। इसके एक छोटी लकड़ी पर चावल, गेहूं, पंच मेवा की पोटली और यथाशक्ति दक्षिणा रखकर उसे बांधकर नदी या तालाब के विसर्जन स्थल तक ले जाएं।

- विसर्जन से पहले गणेशजी की फिर से आरती करें। श्री गणेश से खुशी-खुशी बिदाई करें और उनसे धन, सुख, शांति, समृद्धि का आशीर्वाद मांगे। साथ ही गणेश स्थापना से लेकर विसर्जन तक यदि जाने-अनजाने में कोई गलती हुई है, तो उसके लिए क्षमा प्रार्थना भी करें।

- इसके बाद गणेश प्रतिमा को पूरे आदर और सम्मान के साथ वस्त्र और समस्त सामग्री के साथ धीरे-धीरे बहाएं।

ईको फ्रेंडली प्रतिमा का ऐसे करें विसर्जन

पंडित वैभव जोशी कहते हैं कि पर्यावरण प्रेमियों ने इस बार गणेशजी की बड़ी और पीओपी की प्रतिमा के स्‍थान पर मिटटी की प्रतिमाओं की स्‍थापना की है। ये प्रतिमाएं ईश्‍वर की विशेष अनुकंपा से संचित करते हैं। क्‍योंकि ये प्रतिमाएं जल्‍दी घुल जाती हैं और जल को साफ भी करती हैें। यदि नदी को प्रदूषित करने के स्‍थान घर के गमले में ही विसर्जन करने मन बना रहे हैं तो ध्‍यान रखेंं कि प्रतिमा का विसर्जन एक पानी से भरे बर्तन में करें। इससे वो जल्‍दी घुल जाएगी। प्रतिमा के घुलने के बाद ही उसे गमले में विसर्जित करें और फलों के बीज रोपित करें।

क्षमा प्रार्थना का मंत्र

ॐ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम। पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर।।

ॐ मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर। यत्पूजितं माया देवं परिपूर्ण तदस्तु में।

 

गणपति मोरया, आखिर क्‍या है कहानी

गणपति बप्पा के साथ मोरया क्यों बोला जाता है, महाराष्ट्र के कुछ इलाकों के अलावा इस बात को कम ही लोग जानते हैं। गणपति बप्पा के साथ मोरया शब्द कहां से जुड़ गया इसके पीछे की कहानी करीब 600 साल पुरानी है।

महाराष्ट्र के पूना से 15 किमी दूर बसे गांव चिंचवाड़ा की ये कहानी है। 1375 में जन्में मोरया गोसावी नाम का एक व्यक्ति भगवान गणेश का परम भक्त था। वो हर गणेश चतुर्थी पर चिंचवाड़ा से करीब 95 किमी दूर बसे मोरपुर के मयूरेश्वर गणपति मंदिर में दर्शन के लिए जाता था।

मयूरेश्वर गणेश मंदिर महाराष्ट्र के अष्ट विनायक में से ही एक है। कहा जाता है 117 साल की उम्र तक मोरया गोसावी नियमित रुप से मयूरेश्वर मंदिर जाते रहे। लेकिन फिर अत्यधिक कमजोरी और बुढ़ापे के कारण उनका जाना संभव नहीं हो सकता था। इस कारण मोरया गोसावी हमेशा दुःखी रहते थे। एक बार भगवान गणेश ने उन्हें सपने में दर्शन दिए और कहा कि कल जब तू स्नान करेगा, स्नान के बाद में तुझे दर्शन दूंगा।

अगले दिन चिंचवाड़ा के कुंड में मोरया गोसावी नहाने गए। कुंड से जब डुबकी लगाकर निकले तो उनके हाथ में भगवान गणेश की ही एक छोटी सी मूर्ति थी। भगवान ने दर्शन दे दिए। इस मूर्ति को मोरया गोसावी ने मंदिर में स्थापित कर दिया। बाद में उनकी समाधि भी यहीं बनाई गई। इसे मोरया गोसावी मंदिर के नाम से जाना जाता है। गणपति से यहां मोरया गोसावी का नाम इस कदर जुड़ा है कि यहां लोग अकेले गणपति का नाम नहीं लेते, उनके साथ मोरया गोसावी का नाम जरूर जोड़ते हैं। पुणे के इसी गांव से गणपति बप्पा मोरया बोलने की शुरुआत हुआ, जो आज देशभर में गूंज रहा है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.