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Deepawali 2020: किस्मत बदल सकते हैं दीपावली के ये 10 उपाय, आप भी अपनाना न भूलें

Deepawali 2020 आधुनिक वास्तुविद दीप्ति जैन के अनुसार यदि दीपावली पर वास्तु के अनुसार घर को सजाया जाए तो मां लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है। 14 नवंबर को है इस वर्ष दीपावली। रंग रोगन के साथ वास्तु के अनुसार घर के दरवाजे पर लगाएं बंदनवार।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Fri, 06 Nov 2020 04:12 PM (IST)Updated: Fri, 06 Nov 2020 04:12 PM (IST)
Deepawali 2020: किस्मत बदल सकते हैं दीपावली के ये 10 उपाय, आप भी अपनाना न भूलें
रंग रोगन के साथ वास्तु के अनुसार घर के दरवाजे पर लगाएं बंदनवार।

आगरा, जागरण संवाददाता। खुशियों के त्योहार दीपावली पर स्वच्छता, गृह सज्जा का भी विशेष महत्व होता है। घर−घर में त्याेहार को लेकर तैयारियां चल रही हैं। आधुनिक वास्तुविद दीप्ति जैन के अनुसार यदि दीपावली पर वास्तु के अनुसार घर को सजाया जाए तो मां लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है। 

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रंग रोगन

पूर्व की दीवार पर सफेद या हल्का नीला रंग कर सकते हैं। दक्षिण-पूर्व के बीच आग्नेय कोण होता है। यदि कोई दीवार आग्नेय में है या नहीं है तो भी इस स्थान की साज-सज्जा में नारंगी, पीले या सफेद रंग का प्रयोग उचित होता है। दक्षिण भाग में नारंगी रंग का प्रयोग करना चाहिए।

दक्षिण-पश्चिम की दीवार या कक्ष को नैऋत्य कोण कहा जाता है। इसमें भूरे, ऑफ व्हाइट या भूरा या हरा रंग प्रयोग करना चाहिए। पश्चिम की दीवार या कक्ष के लिए नीले रंग की सलाह दी जाती है। आप नीले रंग के साथ बहुत कम मात्रा में सफेद रंग का उपयोग भी कर सकते हैं। पश्‍चिम-उत्तर की दीवार को वायव्य कोण कहते हैं। वायव्य दिशा में बने ड्राइंग रूम में हलका स्लेटी, सफेद या क्रीम रंग का प्रयोग भी किया जा सकता है। वास्तु के अनुसार इसकी साज-सजा में हल्के हरे रंग या पिस्ता हरे रंग का प्रयोग किया जाना चाहिए। हालांकि आप आसमानी रंग का प्रयोग भी कर सकते हैं। उत्तर-पूर्व को ईशान कोण कहते हैं। इस दिशा में आकाश ज्यादा खुला होता है। इस दिशा की दीवार का रंग आसमानी, सफेद या हल्के बैंगनी रंग का होना चाहिए। हालांकि इसमें पीले रंग का प्रयोग इसलिए करना चाहिए, क्योंकि यह देवी और देवताओं का स्थान होता है। उत्तर- हरा, ईशान- पीला, पूर्व- सफेद, आग्नेय- नारंगी या सिल्वर, दक्षिण- नारंगी, गुलाबी या लाल, नैऋत्य- भूरा या हरा, पश्‍चिम- नीला, वायव्य- स्लेटी या सफेद।

वंदनवार 

आम या पीपल के नए कोमल पत्तों की माला को वंदनवार कहा जाता है। इसे अकसर दीपावली के दिन द्वार पर बांधा जाता है। वंदनवार इस बात का प्रतीक है कि देवगण इन पत्तों की भीनी-भीनी सुगंध से आकर्षित होकर घर में प्रवेश करते हैं। इसे इस बार वास्तु अनुसार ही सजाएं। नकली फूलों से या नकली वस्तुओं से ना सजाएं। वंदनवार सजाने के बाद दरवाजे के आसपास शुभ लाभ लिखें और स्वस्तिक का चिन्ह बनाएं। द्वार के उपर गणेशजी का चित्र या मूर्ति लगएं।

देहरी पूजा 

वास्तु के अनुसार दहलीज़ टूटी-फूटी या खंडित नहीं होना चाहिए। बेतरतीब तरह से बनी दहलीज नहीं होना चाहिए यह भी वास्तुदोष निर्मित करती है। द्वार की देहली (डेली) बहुत ही मजबूत और सुंदर होना चाहिए। कई जगह दहलीज होती ही नहीं जो कि वास्तुदोष माना जाता है। कोई भी व्यक्ति हमारे घर में प्रवेश करे तो दहलीज लांघकर ही आ पाए। सीधे घर में प्रवेश न करें। अत: घर को साफ और स्वच्छ कर प्रतिदिन देहरी पूजा करें। जो नित्य देहरी की पूजा करते हैं उनके घर में स्थायी लक्ष्मी निवास करती है। दीपावली के अलावा विशेष अवसरों पर देहरी के आसपास घी का दीपक लगाना चाहिए। इससे घर में लक्ष्मी का प्रवेश सरल होगा। विशेष मौके पर घर के बाहर देली (देहली या डेल) के आसपास स्वस्तिक बनाएं और कुमकुम-हल्दी डालकर उसकी दीपक से आरती उतारें। भगवान का पूजन करने के बाद अंत में देहली की पूजा करें। देहली (डेली) के दोनों ओर सातिया बनाकर उसकी पूजा करें। सातिये के ऊपर चावल की एक ढेरी बनाएं और एक-एक सुपारी पर कलवा बांधकर उसको ढेरी के ऊपर रख दें। इस उपाय से धनलाभ होगा।

रंगोली या मांडना

 दिपावली के पांच दिनी उत्सव में रंगोली और मांडना बनाना 'चौंसठ कलाओं' में से एक है जिसे 'अल्पना' कहा गया है। वास्तुशास्त्र में इसके बहुत महत्व है। रंगोली और मांडनों को श्री और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। यह माना जाता है कि जिसके घर में इसका सुंदर अंकन होता रहता है, वहां लक्ष्मी निवास करती है। मांडना में चौक, चौपड़, संजा, श्रवण कुमार, नागों का जोड़ा, डमरू, जलेबी, फेणी, चंग, मेहंदी, केल, बहू पसारो, बेल, दसेरो, सातिया (स्वस्तिक), पगल्या, शकरपारा, सूरज, केरी, पान, कुंड, बीजणी (पंखे), पंच कारेल, चंवर छत्र, दीपक, हटड़ी, रथ, बैलगाड़ी, मोर, फूल व अन्य पशु-पक्षी आदि बनाया जाता है।

दीपक जलाना 

आज कल लोग नकली दीये या लाइट वाले दीये लगाते हैं जोकि परंपरा के विरुद्ध और अनुचित है। कुछ लोग तो दीयों की जगह मोमबत्ती लगाने लगे हैं वह भी अनुनिच है। तेल के दीये का महत्व जानना जरूरी है। असंख्य दीपों की रंग-बिरंगी रोशनियां मन को मोह लेती हैं। दुकानों, बाजारों और घरों की सजावट दर्शनीय रहती है। दीपावली के दिन दीपदान का बहुत ही महत्व है अत: नकली दीपक जलाकर आप इस अवसर को ना चुकें। धनतेरस से भाईदूज तक अगल अलग तरीके से दीपक जलाया जाता है जिससे घर का वास्तु दोष दूर होता है और सभी तरह के संकट समाप्त हो जाते हैं। दीपावली पर दीये लगाते समय उनकी संख्या पर ध्यान देना बेहद जरूरी है।

कबाड़ कर दें बाहर

दीपावली के पूर्व ही हम टूटा-फूटा फर्नीचर, पुराने कपड़े, रद्दी पेपर, पुरानी मैग्जीन, टूटे कांच, चीनी के टूटे बर्तन आदि को घर से बाहर निकाल देते हैं। घर में इलेक्ट्रिक का कोई भी खराब या बंद उपकरण ना रखें। इसे कबाड़ में बेच दें। सफाई की सभी वस्तुएं जैसे झाडू, डस्टबिन, डस्टपान, डोरमेट आदि नए इस्तेमाल करें।

ईशान कोण और तिजोरी हो वास्तु अनुसार

 स्थायी लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए घर के ईशान कोण में एक चांदी, तांबा या स्टील के बर्तन में पानी भरकर रखें। तिजोरी ऐसी रखें कि वह उत्तर की दिशा में खुले। तिजोरी में स्वर्ण को पीले या लाल वस्त्र में लपेटकर रखें। दोनों ही जगहों पर सुगंध फैलाने के लिए इत्र का उपयोग कर सकते हैं, परंतु इत्र ना रखें। दीपावली के पांचों दिन रोज एक कम का फूल लाएं और उसे उत्तर या ईशान दिशा में रखकर उसकी पूजा करें।

सेंधा नमक का पौंछा लगाएं 

नमक या सेंधा नमक का पौंछा लगाएं। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकल जाएगी। इसमें चुटकी भर हल्दी डाल लेंगे तो सोने पर सुहाग समझो। इसके बाद घर में गुग्गल या चंदन से वातावरण को सुंगंधित बनाएं।

कर्पूर जलाएं

घर में सुबह और शाम को कर्पूर जरूर जलाएं। यह हर तरह के वास्तु दोष को समाप्त कर देता है और इसके कई लाभ हैं।

उत्तर दिशा और पीले या लाल वस्त्र

 दीवाली की पूजा उत्तर दिशा या फिर उत्तर-पूर्व दिशा में ही करनी चाहिए। इसके अनुसार पूजा करने वाले का मुख घर की उत्तर या पूर्व दिशा में होना चाहिए। साथ ही पूजा के समय पीले या लाल रंग के वस्त्र पहनें। घर के सभी सदस्य मिलकर ही पूजा करें। 


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