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Sawan 2021: सावन में भक्ति के बादलों से नहीं हुई गोवर्धन में मस्ती की बारिश, सावन- भादों में मचता था फागुन का धमाल

कोरोना काल में सूखा नजर आ रहा है भक्ति का समंदर। गोवर्धन में राजस्थानी संगीत पर सावन-भादों में मचता था फागुन का धमाल। राजस्थान के करीब चार सौ किलोमीटर दूर से तमाम भक्त पैदल चलकर गोवर्धन पहुंचते और गिरिराजजी की परिक्रमा लगाते।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sat, 07 Aug 2021 04:47 PM (IST)Updated: Sat, 07 Aug 2021 04:47 PM (IST)
Sawan 2021: सावन में भक्ति के बादलों से नहीं हुई गोवर्धन में मस्ती की बारिश, सावन- भादों में मचता था फागुन का धमाल
गोवर्धन में राजस्थानी संगीत पर सावन-भादों में मचता था फागुन का धमाल।

आगरा, जेएनएन। वीर भूमि राजस्थान से उठते भक्ति के बादलों से ब्रज मंडल में रंगों की बारिश में मस्ती का नृत्य, यह अद्भुत नजारा सावन-भादों में गोवर्धन तलहटी में नजर आता था। ब्रजभूमि का उत्सव किसी खास महीने का मोहताज नहीं होता। लेकिन यह मस्ती कोरोना संक्रमण की भेंट चढ़ गई। मंदिरों के सूने परिक्रमा मार्ग भक्ति की इस खूबसूरत मस्ती से वंचित हैं।

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सावन-भादों के महीने में श्रद्धा के शहर गोवर्धन में प्रेम लुटाते गिरिराज प्रभु की चितवन पर शौर्य नगरी राजस्थान के लोग भक्ति और मस्ती में डूबे नजर आते थे। राजस्थान के दूर-दराज क्षेत्रों से गिरिराज भक्त पद यात्रा कर गोवर्धन पहुंचते थे। राजस्थान के करीब चार सौ किलोमीटर दूर से तमाम भक्त पैदल चलकर गोवर्धन पहुंचते और गिरिराजजी की परिक्रमा लगाते। रंग और पुष्पों की होली खेलते गिरिराज भक्त जैसे ही तलहटी में प्रवेश करते तो शौर्य संस्कृति और प्रेम भूमि का अनूठा संगम दर्शनीय बन जाता। ब्रज के स्वरों पर नृत्य करती हुरियारिन और राजस्थानी संगीत पर नाचते ग्वाला को जोड़ती भक्ति की धारा से आस्था की त्रिवेणी बहने लगती। ब्रजभूमि की फिजाओं में गूंजता राजस्थानी संगीत वातावरण में प्रेम की मिठास घोल देता।

राजीव चौक कोटा के लाखन सिंह शुक्रवार को परिक्रमा देने आए तो यादों को साझा करने लगे। उन्होंने बताया कि पिछले आठ वर्षों से वह पैदल पैदल गोवर्धन जी आते हैं जिसमें उन्हें आठ दिन लग जाते। इस बार यह आनंद कोरोना की भेंट चढ़ गया।

पदयात्रा का स्वरूप

सावन और भादों के महीना में राजस्थान के तमाम गांव व शहरों से पदयात्रा गोवर्धन आती हैं। इनमें सबसे आगे रथ में गिरिराज प्रभु की झांकी सजी होती है तथा संगीत के संसाधन मौजूद होते हैं। उसके पीछे एक भक्त धर्म ध्वजा लेकर चलता है। ध्वजा के पीछे भक्त नाचते कूदते तथा रंगों की होली खेलते अपनी पद यात्रा पूरी करते हैं। अपने गांव से ये लोग पैदल यात्रा शुरू करते हैं और रास्ते में जगह मिलने पर खाना पीना और आराम कर लेते हैं। 


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