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Security of Farms: बेसहारा पशुओं से फसल को बचाने को किसानों ने निकाला तरीका, खेतों की इनसे की घेराबंदी

Security of Farms बेसहारा गोवंशीय पशुओं से फसल को बचाने के लिए किसान अपने खेतों की कंटीले तारों से कर रहे फेंसिंग। पशु चिकित्सा विभाग के पास बेसहारा गोवंशीय पशुओं की सही गणना ही नहीं है। वर्ष 2019 में 20 वीं पशुगणना हुई थी।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Thu, 25 Nov 2021 03:11 PM (IST)Updated: Thu, 25 Nov 2021 03:11 PM (IST)
Security of Farms: बेसहारा पशुओं से फसल को बचाने को किसानों ने निकाला तरीका, खेतों की इनसे की घेराबंदी
फसल को बचाने के लिए किसान अपने खेतों की कंटीले तारों से कर रहे फेंसिंग।

आगरा, जागरण संवाददाता। बाह ब्लाक अंतर्गत बड़ागांव निवासी जितेंद्र किसान हैं। कृषि से ही उनके परिवार का भरन-पोषण होता है। कड़ी मेहनत के बाद वह अपने खेत में फसल तैयार करते हैं लेकिन बेसहारा पशु इन्हें उजाड़ जाते हैं। कभी रात के अंधेरे में तो कभी दिन के उजाले में फसलों को या तो मुंह मारकर खराब देते हैं या फिर अपने पैरों से रौंद देते हैं। सालों इस परेशानी को झेलने के बाद जब उन्हें अपनी फसल को बचाने का कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने अब अपने खेत की कंटीले तारों से फेंसिंग करा दी है। जिससे बेसहारा गोवंशीय पशु उनके खेत में प्रवेश न कर सकें। नहटौली निवासी किसान श्रीकृष्ण ने भी ऐसा ही किया है। ये सिर्फ जितेंद्र और श्रीकृष्ण की ही परेशानी नहीं है, जिले के अधिकांश किसान बेसहारा गोवंशीय पशुओं से परेशान हैं।

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दरअसल, पशु चिकित्सा विभाग के पास बेसहारा गोवंशीय पशुओं की सही गणना ही नहीं है। वर्ष 2019 में 20 वीं पशुगणना हुई थी। इसके मुताबित जिले में 16,916 बेसहारा गोवंशीय पशु है। इसमें से बमुश्किल दस हजार गोवंशीय पशुओं को ही छह सरकारी गो आश्रय स्थल, चार कांजी हाउस, तीन पंजीकृत और 16 अपंजीकृत गो आश्रय स्थलों में आश्रय मिला हुआ है।इसके अलावा हजारों की संख्या गोवंशीय पशु बेसहारा घूम रहा है। फतेहाबाद रोड पर तमाम पशु घूमते नजर आ जाते हैं। कभी-कभी तो अचानक ये वाहन के सामने आ जाते हैं। इसकी वजह से कई बार हादसे होते-होते बचे हैं। शमसाबाद रोड का भी कुछ ऐसा ही हाल है। इधर, इन बेसहारा गोवंशीय पशुओं से किसान बहुत परेशान हैं। दिन-रात की मेहनत के बाद वह अपनी फसल तैयार करते हैं। बेसहारा पशु इन्हें चंद मिनट में बर्बाद कर जाते हैं। इसके चलते कई गांवों में तो ऐसे पशुओं को ग्रामीणों ने सरकारी स्कूलों के भवन में ही बंद कर दिया था। 


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