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Pulwama Terror Attack: बेटी की 'उड़ान' से पहले 'तारा' बन गए पापा

शहीद कौशल कुमार बेटी को पायलट बनाने के लिए कर रहे थे हर संभव कोशिश। आर्थिक अभावों के बीच परिस्थितियों से जूझकर हर सुविधा कराई मुहैया।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 18 Feb 2019 12:13 PM (IST)Updated: Mon, 18 Feb 2019 12:13 PM (IST)
Pulwama Terror Attack: बेटी की 'उड़ान' से पहले 'तारा' बन गए पापा
Pulwama Terror Attack: बेटी की 'उड़ान' से पहले 'तारा' बन गए पापा

आगरा, यशपाल चौहान। जब भी फर्राटा भरती बेटी को देखते तो अनायास ही उसके आसमान में उड़ान भरने का ख्वाब भी आंखों में तैर जाता। गडग़ड़ाहट के साथ निकलते हवाई जहाज की सीट पर पायलट के रूप में बिटिया को देखने की हसरत थी। उसी को पूरा करने की धुन में शहीद कौशल कुमार अपनी तरफ से हर संभव प्रयास कर रहे थे। मंजिल नजदीक ही थी। बेटी ग्राउंड ट्रेनिंग पूरी कर चुकी है। तैयारी पायलट बनने की है। उसकी फ्लाइट टेक ऑफ करती, उससे पहले ही पिता 'तारा' बन गए।

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शहीद कौशल कुमार रावत की बेटी अपूर्वा को ताजिंदगी यह मलाल रहेगा कि वह अपने पिता को उस दिन के गर्व का अनुभव नहीं करा सकी। पिता की शहादत पर संकल्प भी है कि एक दिन आकाश में वह अपने पिता से बात करेगी। अपूर्वा की आंखों से रविवार को उसी कसक में आंसू निकल रहे थे। कह रही थी कि वह आसमान में तो जरूर उड़ान भरेगी।

पुलवामा में आतंकी हमले में शहीद हुए कहरई निवासी सीआरपीएफ के नायक कौशल कुमार रावत के तीन बच्चे हैं। बेटी अपूर्वा, बेटा अभिषेक और विकास। वेतन कम था और खर्चे अधिक। अन्य कोई कमाई का जरिया भी नहीं था। इसके बाद भी वे 15 वर्ष पूर्व पत्नी ममता और बच्चों को गुरुग्राम ले गए। वहां लोन लेकर मकान बनवाया। इसके बाद बच्चों की पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया। सबसे बड़ी बेटी अपूर्वा को वे पायलट बनाना चाहते थे। इसलिए स्नातक के बाद उसे चंडीगढ़ ग्राउंड ट्रेनिंग के लिए भेज दिया। एक वर्षीय कोर्स के बीच में ही अपूर्वा को अक्टूबर 2016 में इंडिगो एयरलाइंस में नौकरी मिल गई। दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट में इंडिगो ने आफिसर सिक्योरिटी के पद पर रख लिया। अब वह नौकरी के साथ-साथ पायलट बनने की तैयारी भी कर रही थी। गुरुग्राम में घर दूर पड़ता था। इसलिए अपूर्वा एयरपोर्ट के पास ही महिपालपुर में किराए पर कमरा लेकर रहती है। पिता जब भी उससे बात करते तो कहते कि मन लगाकर तैयारी करो।

अपूर्वा ने कहा कि वह पिता का सपना जरूर पूरा करेगी। उसने पायलट के लिए फार्म भरा है। रविवार को डॉक्यूमेंट अटेस्ट कराकर डायरेक्ट्रेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) को भेज दिए हैं। पायलट का टेस्ट देने की पूरी तैयारी है। अपूर्वा ने कहा कि अब पूरे मन से पिता का सपना पूरा करने में जुटूंगी।

फ्लाइट में बेटी करे स्पेशल एनाउंसमेंट

शहीद कौशल कुमार का सपना था कि अपूर्वा की फ्लाइट में वे गर्व से बैठें और बेटी उनके लिए स्पेशल एनाउंसमेंट करे। पिता के इसी सपने को याद करके बेटी की आंखें भर आईं।

काश...मैनेज हो जाती फ्लाइट

अपूर्वा ने बताया कि इंडिगो की तरफ से मुझे परिवार के सदस्यों को कहीं भी हवाई यात्रा कराने की सुविधा है। हर बार वह पिता को उनकी तैनाती स्थल तक फ्लाइट से ही भेजती थी। मगर, 12 फरवरी को जब उन्हें श्रीनगर जाना था तो वह मैनेज नहीं कर सकी। उनके पास सामान अधिक था, इसलिए फ्लाइट की जगह उन्हें ट्रेन से जम्मू तक जाना पड़ा। उसे मलाल है कि अगर वह फ्लाइट मैनेज कर लेती तो पिता का यह सफर आखिरी न होता।

एक और मलाल

जम्मू जाने से पहले घर आए कौशल से मिलने अपूर्वा नहीं जा सकी थी। उसने बताया कि पिता ने कई बार उसे कॉल करके कहा कि तेरी पसंद का डोसा बनवाया है, आज घर आजा। हर दिन मैं उनसे कहती रही कि सुबह आऊंगी, लेकिन उनके जम्मू रवाना होने के बाद घर पहुंच सकी।  

चिता में अंगुलि तलाशता रहा बेटा

पिता ने अंगुलि पकड़कर चलना सिखाया था। कदम लड़खड़ाए तो उसी अंगुलि को जोर से पकड़कर गिरने से बचा था। सोमवार को जब बेटा चिता से अस्थियां चुनने पहुंचा तो नजरें उसी अंगुलि को ढूंढ़ रही थीं। जब वह भावुक हुआ तो परिवार के लोगों ने संभालकर खुद अस्थियां चुनकर कलश में रख दीं। 

 पुलवामा में आतंकी हमले में शहीद सीआरपीएफ के जवान कौशल कुमार की चिता की आग रविवार तक गरम थी। छोटा बेटा विकास परिवार के लोगों के साथ दोपहर 12.30 बजे अस्थियां चुनने पहुंचा। चिता से अस्थियां चुनते समय वह भावुक हो उठा। आंखों से अश्रु बह रहे थे। मगर, ये अश्रु गम के साथ ही गुस्सा भी बयां कर रहे थे। अस्थियों के बीच से वह अंगुलि तलाश रहा था, जिसे पकड़कर उसने चलना सीखा था। बचपन में उसी अंगुलि ने सहारा दिया। मगर, चिता में अस्थियों के बीच उसे वह अंगुलि  नहीं दिख रही थी। क्योंकि कायराना हमले में शहीद के दोनों हाथ भी क्षत विक्षत हो गए थे। ताबूत में बंद पिता के पार्थिव शरीर को तो वह देख न सका था। अस्थियां सामने देखकर वह फफक पड़ा। उन्हें हाथ में लेकर कहने लगा कि शहादत का बदला जरूर लिया जाएगा। उसको भावुक होते देखकर चचेरे भाई प्रदीप, संदीप, आकाश और पवन ने उन्हें सहारा दिया। खुद अस्थियां चुनीं और उन्हें कलश में रख लिया। 


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