New Technique: गेंहू, गन्ना के अपशिष्ट को प्लास्टिक में मिलाकर बनेंगे कार के बॉनट Agra News
आरबीएस इंजीनियरिंग टेक्निकल कैंपस में आयोजित कार्यशाला में पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा उत्पादन के विकल्पों पर चर्चा।
आगरा, जागरण संवाददाता। गेंहू, गन्ना के अपशिष्ट को प्लास्टिक में मिलाकर कार के बॉनट बनाए जा सकते हैं। इससे कृषि अपशिष्ट जलाना नहीं पड़ेगा, प्लास्टिक का इस्तेमाल भी कम होगा। आरबीएस इंजीनियरिंग टेक्निकल कैंपस बिचपुरी में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में दूसरे दिन पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा उत्पादन के अन्य विकल्पों पर विशेषज्ञों ने चर्चा की।
इनोवेशन एंड अपॉरच्युनिटी इन केमिकल इंजीनियरिंग फॉर सस्टेनेबल इनवायरमेंट एंड एनर्जी विषय पर आयोजित कार्यशाला में एचबीटीयू, कानपुर के केमिकल इंजीनियर डॉ. जीएल देवनानी ने बताया कि कृषि अपशिष्ट को जलाने से प्रदूषण बढ़ रहा है। ऐसे में कृषि अपशिष्ट से प्लास्टिक कम्पॉजिट बनाने पर काम चल रहा है। इसमें गेंहू, गन्ना के अपशिष्ट, कंस घास को सोडियम हाइड्रोक्लोराइड से साफ किया जाता है, जिससे अपशिष्ट का फाइबर खुदरा हो जाता है। इसके एक दो दो मिलीमीटर के छोटे छोटे टुकड़े कर इपॉक्सी एडहेंसिव की मदद से पॉलीएथलीन में मिला दिया जाता है। इसमें 25 फीसद तक कृषि अपशिष्ट मिलाए जा सकते हैं, इस प्लास्टिक कम्पॉजिट से कार के बॉनट से लेकर प्लास्टिक के दरवाजे सहित एयरोस्पेस में इस्तेमाल किया जा सकता है। कई देशों में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में कृषि अपशिष्ट से तैयार हो रहे प्लास्टिक कम्पॉजिट का इस्तेमाल शुरू हो चुका है। न्यूक्लियर फ्यूल कॉम्प्लेक्स, हैदराबाद के डॉ. एसके तिवारी ने बताया कि यूरेनियन फ्यूल की गुणवत्ता में सुधार और उत्पादन बढ़ाने पर काम चल रहा है। समन्वयक डॉ. श्रद्धारानी सिंह द्वारा कार्यशाला में 50 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। शनिवार को अंतिम दिन शोधार्थियों को सम्मानित किया जाएगा। संस्थान के निदेशक डॉ. बीएस कुशवाह, डॉ. पंकज गुप्ता, समन्वयक डॉ. श्रद्धारानी सिंह, आशीष शुक्ला आदि मौजूद रहे।
पशुओं के वेस्ट से बन रही बिजली
यूनिवर्सिटी ऑफ मलेशिया, पहांग के डॉ. अब्दुल एस ने बताया कि नॉनवेज तैयार करने के लिए बड़ी मात्रा में पशुओं का वेस्ट आर्गेनिक वेस्ट निकल रहा है। कई देशों में यह बड़ी समस्या है, इस आर्गेनिक वेस्ट को एनएरोबिक कंडीशन में रखकर रिएक्टर के माध्यम से बिजली का उत्पादन किया जा रहा है।
इंटरनेट ऑफ थिंग्स से प्रदूषण के स्तर का सही आकलन
गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, अमरावती महाराष्ट्र के डॉ. अशोक मतनानी, ने बताया कि इंटरनेट ऑफ थिंग्स से प्रदूषण के स्तर का सही आकलन किया जा सकता है। इससे वातावरण में कौन से प्रदूषक तत्व ज्यादा हैं और किस तरह से यह बढ़ रहे हैं यह पता कर सकते हैं।
कम्प्रेस्ट हाइड्रोजन से चल रही बाइक, 2050 तक दो डिग्री से ज्यादा ना बढ़े तापमान
डॉ. मधुसूदन ओझा, बीआरसी, मैसूर ने बताया कि वाहनों के र्इंधन से कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर वातावरण में तेजी से बढ़ रहा है। इससे ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान बढ़ रहा है। ऐसे में वाहन चलाने के लिए ईंधन के विकल्प पर काम चल रहा है। इसमें कम्प्रेस्ट हाइड्रोजन एक अच्छा विकल्प है। इसका प्रेशर अधिक होता है, इसे कम करने के लिए शोध कार्य चल रहे हैं। वहीं, ग्लोबल वार्मिंग से तापमान एक डिग्री तक बढ़ गया है, यह 2050 तक दो डिग्री से ज्यादा ना बढ़े, इसके लिए सभी मिलकर काम कर रहे हैं। ऐसे में 24 घंटे बिजली उत्पादन के सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा के साथ ही न्यूक्लियर एनर्जी पर काम चल रहा है। अभी 40 फीसद एनर्जी उद्योग और 25 फीसद एनर्जी का इस्तेमाल घरों में हो रहा है, इसके लिए वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत तलाशे जा रहे हैं।