सूख रही धरती की कोख, बूंद-बूंद बचाओ पानी तभी चलेगी जिंदगानी
पृथ्वी दिवस आज आगरा में तीसरे स्ट्रेटा में पहुंच चुका है भूगर्भ जल जिले के 15 में से 13 ब्लॉक डार्क जोन में
By Edited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 09:00 AM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2019 09:01 AM (IST)
आगरा, जागरण संवाददाता। दुनिया में ग्लोबल वार्मिग बढ़ रही है और धरती की कोख सूख रही है। आगरा में भूगर्भ जल तीसरे स्ट्रेटा में पहुंच गया है और हर वर्ष बो¨रग का स्तर बढ़ता जा रहा है। यमुना जल प्रदूषित हो चुका है और शहर पेयजल को आरओ प्लांट पर निर्भर है। बारिश का पानी यूं ही बहकर चला जाता है और धरती प्यासी ही रह जाती है। ऐसे में जरूरत है पानी की बूंद-बूंद बचाने की। आगरा में 15 ब्लॉक हैं, जिनमें से 13 डार्क जोन में हैं। बाह और जैतपुर कलां ही डार्क जोन में नहीं हैं। गर्मी की दस्तक के साथ ही पानी की किल्लत शुरू हो जाती है। बच्चों व महिलाओं को हैंडपंपों और अन्य जल स्रोतों पर लाइन में लगे देखा जा सकता है। यहां भूगर्भ जल तीसरे स्ट्रेटा में पहुंच गया है। यह 90 से 150 मीटर तक है। पहले दो स्ट्रेटा में बो¨रग कराने पर पानी कम निकल रहा है। जल स्तर तेजी से पाताल की ओर जा रहा है, लेकिन किसी विभाग के आरओ प्लांट और सबमर्सिबल पंप के सटीक आंकड़े नहीं हैं। भूगर्भ जल विभाग के अनुसार शहर में पांच हजार आरओ प्लांट और चार लाख से अधिक सबमर्सिबल पंप लगे हैं। जिन घरों में यह लगे हैं, वहां पानी की खपत की कोई सीमा नहीं है। इसके चलते भूगर्भ जल स्तर निरंतर नीचे गिर रहा है। बो¨रग की स्थिति क्षेत्र, बो¨रग फुट में बोदला रोड, 320-350 ताजगंज, 300-350 शहीद नगर, 300-350 आरओ प्लांट ने बढ़ाई दुश्वारियां शहर में करीब पांच हजार आरओ प्लांट हैं। प्लांट लगाने को कोई अनुमति नहीं ली जाती है। ट्रीटमेंट के दौरान आरओ प्लांट पर 60-70 फीसद भूगर्भ जल बर्बाद हो जाता है। प्लांट पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है। तालाबों का मिट गया अस्तित्व ताजनगरी में पहले हर गली-मुहल्ले के नजदीक तालाब हुआ करते थे। बारिश का पानी तालाब में भरने से भूगर्भ जल रिचार्ज हुआ करता था, लेकिन अब तालाबों की जगह बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो चुकी हैं। भूगर्भ जल रिचार्ज का बड़ा स्रोत खत्म हो चुका है। यहां सफल रहे प्रयास यमुना आर्द्र विकास योजना: ककरैठा, गैलाना और असोपा हॉस्पीटल के आसपास विकसित कॉलोनियों से निकलने वाले आठ नालों का गंदा पानी यमुना में गिरकर उसे और प्रदूषित करता था। वर्ष 2005 में नालों को यमुना में गिरने से रोकने को आवाज उठी। यहां 40 एकड़ क्षेत्र में 26 फरवरी, 2010 को गंदे नालों का रुख मोड़ने का काम शुरू हुआ। वन विभाग ने यमुना आर्द्र विकास योजना में यहां नौ नाले बनाकर पुराने नालों का रुख उनकी ओर कर दिया। कभी यहां केवल बबूल के पेड़ हुआ करते थे, लेकिन आज नीम, सेलेक्स, अमलताश, गुड़हल, तिकोमा, कन्हेर, वोगनबेलिया, बांस, पापड़ी, सिरस आदि के पेड़ भी लगे हुए हैं। जोधपुर झाल: आगरा और मथुरा की सीमा पर फरह स्थित जोधपुर झाल 55 हेक्टेअर क्षेत्रफल में है। इसकी किस्मत बदलने में महती भूमिका जलाधिकार फाउंडेशन ने निभाई। चार वर्ष पूर्व यहां मनरेगा में खोदाई कराई गई थी, लेकिन काम पूरा नहीं हो सका था। जलाधिकार फाउंडेशन ने वर्ष 2016-17 में इस मामले को प्रमुखता से उठाया। सिंचाई विभाग के माध्यम से यहां काम कराया गया। आज यहां पानी एकत्र होने के बाद देसी-विदेशी पक्षियों का कलरव है। इससे आसपास के क्षेत्रों में भूगर्भ जल स्तर भी सुधरा है। जनता, जनप्रतिनिधियों, सरकार और राजनीतिक दलों में से किसी को पर्यावरण की चिंता नहीं है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नदियों की स्थिति पर चिंता जाहिर की है। चार-पांच वर्ष में पानी की समस्या चार गुना बढ़ जाएगी। हरियाली कम हो रही है और भूगर्भ जल स्तर निरंतर नीचे जा रहा है। यमुना आर्द्र विकास योजना में अच्छा प्रयास हुआ, लेकिन उसे कोई मान नहीं रहा। वहां हरियाली बढ़ने के साथ भूगर्भ जल स्तर भी उठा है। -रमन बल्ला, सुप्रीम कोर्ट मॉनीट¨रग कमेटी के सदस्य
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