CoronaVirus Impact: कारोबारियों से लेकर छात्र-छात्राओं तक का बदल रहा व्यवहार, चौंका रही आगरा की ये स्टडी
CoronaVirus Effect कोरोना संक्रमण का डर। भविष्य की चिंता से लोग डिप्रेशन का हो रहे शिकार। कारोबारियों से लेकर छात्र-छात्राओं में आए बदलाव पर मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में स्टडी।
आगरा, अजय दुबे। लॉकडाउन में कोरोना के संक्रमण का डर, अनलॉक में कारोबार ठप। स्कूल बंद, लेकिन ऑनलाइन क्लास में स्कूल से ज्यादा होमवर्क। चार महीने में कारोबारियों से लेकर छात्र-छात्राओं का व्यवहार भी उखड़ा-उखड़ा है। तमाम लोग शून्य में चले गए हैं, वे कुछ सोच-समझ नहीं पा रहे हैं। डॉक्टर के पास आते हैं तो कहते हैं कि दिमाग काम ही नहीं कर रहा।
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय में कोरोना से पहले, लॉकडाउन और अनलॉक में लोगों के व्यवहार में आए बदलाव पर पिछले दो महीने से स्टडी शुरू की गई है। इसमें उनकी हिस्ट्री लेने के साथ ही काउंसिलिंग की जा रही है। उन्हेंं ऐसा क्यों लग रहा है? प्रारंभिक स्टडी में सामने आया है कि लॉकडाउन में लोग घर से बाहर नहीं निकले। उन्हेंं कोरोना के संक्रमण का डर लगा रहा। कारोबार ठप हो गया। अनलॉक में भी कारोबार में प्रगति की संभावनाएं नजर नहीं आ रहीं। छात्र-छात्राएं अपने घर पर अभिभावकों की मौजूदगी में ऑनलाइन क्लासेज कर रहे हैं। मैडम सवाल पूछती हैं, जवाब न देने पर अभिभावकों का प्रेशर रहता है। करीब चार महीने से इस तरह के माहौल में लोग डिप्रेशन का शिकार होने लगे हैं।
केस वन
कपड़ा शोरूम के संचालक गुमसुम हैं। पहले उन्हेंं कोरोना से संक्रमित होने का डर लगता था। अनलॉक में बाजार खुल गए हैं तो समझ में कुछ नहीं आ रहा है। ग्राहकों के पूछने पर कोई जवाब नहीं देते हैं। इनकी काउंसिलिंग की गई, इसमें डिप्रेशन सामने आया है।
केस टू
आठवीं की छात्रा रात में सोते-सोते अचानक जग जाती है। कहने लगती है कि काम पूरा नहीं हुआ है, मैडम डांट लगाएंगी। स्वजन के झकझोरने के बाद वो सामान्य होती है। ऑनलाइन क्लास में मैडम के सवाल पूछने पर कोई जवाब नहीं देती है। कुछ कहो तो चीखने लगती है। उसका इलाज चल रहा है।
स्टडी के मुख्य बिंदु
- 02 महीने से चल रही है स्टडी
-55 मरीजों पर हो चुकी है स्टडी
-400 मरीज शामिल करने हैं स्टडी में
-50 साल की उम्र के कारोबारी शामिल
-14 से 18 साल के छात्र-छात्राएं भी शामिल
हो सकता है घातक, करतें रहें बात
लॉकडाउन और अनलॉक में भले ही लोग घर पर हैं, लेकिन मोबाइल और टीवी पर व्यस्त रहते हैं। आपस में बात नहीं कर रहे हैं। ऐसे में कोई डिप्रेशन का शिकार हो चुका है, गुमसुम रहता है तो यह घातक हो सकता है। डॉक्टर सलाह देते हैं कि स्वजन के व्यवहार में बदलाव दिखने पर उससे लगातार बात करते रहें।
संस्थान में आने वाले तमाम मरीजों से पूछो कि क्या समस्या है, तो कहते हैं कि दिमाग काम नहीं कर रहा है, समझ में नहीं आ रहा है कि हो क्या रहा है। इस तरह के मामले तेजी से बढ रहे हैं। 50 साल के कारोबारी से लेकर 14 से 18 साल के छात्रों को यह समस्या हो रही है। इसे लेकर स्टडी की जा रही है। स्टडी के बाद शोधपत्र तैयार कर उसका प्रकाशन होगा।
डॉ दिनेश राठौर, प्रमुख अधीक्षक मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय, आगरा