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कौमी एकता सप्ताह:हिंदू- मुस्लिम की आदत, इधर पूजा- उधर इबादत

मोहब्बत की नगरी से दिया जा रहा सौहाद्र्र का संदेश। कई स्थानों पर भाईचारे के साथ आस्था का मेल।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sun, 25 Nov 2018 04:35 PM (IST)Updated: Sun, 25 Nov 2018 04:35 PM (IST)
कौमी एकता सप्ताह:हिंदू- मुस्लिम की आदत, इधर पूजा- उधर इबादत
कौमी एकता सप्ताह:हिंदू- मुस्लिम की आदत, इधर पूजा- उधर इबादत

आगरा, जागरण संवाददाता: ताजनगरी के मंदिर और दरगाह कौमी एकता का संदेश देते हैं। यहां प्रेम व भाईचारे की बुनियाद इतनी गहरी है कि दीपावली और ईद पर हिंदू- मुस्लिम एक दूसरे को मुबारकबाद देना नहीं भूलते। शहर में ऐसे कई स्थान हैं जहां सर्वधर्म समाज पहुंचता है। एक तरफ पूजा तो दूसरी ओर जियारत। सामने आए तो राम- राम और सलाम भी प्रेम भाव से होती है। रविवार को कौमी एकता सप्ताह का समापन होगा। इस अवसर पर एकता व अखंडता का संदेश देने वाले धार्मिक स्थलों के बारे में बताती रिपोर्ट।

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इधर पूजा, उधर इबादत

आगरा कैंट स्थित रेलवे कालोनी में श्री बगला मुखी मंदिर कौमी एकता में मिसाल है। यहां काबे का नक्शा से लेकर सभी देवी देवताओं की मूर्तियां हैं। मंदिर के एक कोने में पूजा और दूसरे कोने में दुआ होती है। कोने में किस्मत अली शाह बाबा का आला है। यहां देवी-देवताओं की लगभग 500 मूर्तियां हैं। पुजारी प्रदीप कुमार सेठी बताते हैं कि 70 ïवर्ष पहले यह मंदिर बगला मुखी का ही था। अब रमजान में भी अनगिनत मुस्लिम भक्त यहां आते हैं। मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को यहां भक्तों का तांता लगता है।

यहां विदेशों से भी आते जायरीन

न्यू आगरा की सरताज हजरत सैय्यदना शाह अमीर अबुल उला की दरगाह का भी यही हाल है। 377 ïवर्ष से दरगाह में सर्वधर्म के लोग अपनी मन्नतें लेकर पहुंचते हैं। सज्जादानशीं इनायत अली ने बताया कि दरगाह में उर्स के दौरान सर्वधर्म गुरु सम्मेलन रखा जाता है। इसमें तमाम जायरीन के साथ कार्यक्रम संपन्न होता है।

सर्वधर्म के लोग पहुंचते यहां

दरगाह मरकज साबरी में रोजाना बड़ी संख्या में जायरीन पहुंचते हैं। यहां अफगानिस्तान से आए हजरत फतिहउद्दीन बल्खी अलमारूफ ताराशाह चिश्ती साबरी को 419 ïवर्ष हो गए। यहां सर्वधर्म के लोग पहुंचते हैं। सज्जादानशीं रमजान अली शाह ने बताया कि दरगाह का मतलब ही कौमी एकता कायम करना है। ङ्क्षहदुस्तान में ख्वाजा गरीब नवाज ने आकर सबसे पहले एकता का शंखनाद किया था।

कदम रसूल की काफी मान्यता

माफी दरगाह नबी करीम (कदम रसूल) में भी बारावफात पर आयोजित उर्स में सभी धर्मों के लोग पहुंचते हैं। यहां भी देश विदेश से जायरीन पहुंचते हैं। यहां की काफी मान्यता है। नबी के पद चिह्नों का दूध से गुस्ल कराने के लिए देशभर से लोग यहां आते हैं।

इनकी पहचान ताजमहल से ही

ताजमहल के पास जलाल बुखारी रहमतुल्लाह अलैहि की दरगाह में देश विदेश के जायरीन आकर मन्नत मांगते हैं। ताज के पास चार भाइयों की दरगाह हैं। अहमद बुखारी, असरफ बुखारी, अमद बुखारी रहमतुल्लाह अलैहि की दरगाह पर सर्वधर्म के जायरीन का तांता लगा रहता है।

एक ही परिसर में दरगाह और मंदिर

दरगाह कमाल खां परिसर में दो मंदिर हैं। यहां एक कोने में मंदिर तो दूसरे कोने में मजार है। पूजा कर मंदिर से निकलने वाले श्रद्धालु मजार पर मत्था टेकने से नहीं चूकते। सुबह मंदिर में पूजा और शाम को दरगाह में फूल चढ़ाए जाते हैं।

हजारों की संख्या में उमड़ती संगत

गुरुद्वारा गुरु का ताल में 1971 में संत बाबा साधु सिंह मोनी ने सेवा अपनी हाथ में ली थी। इसके बाद से उन्होंने गुरुद्वारे का विस्तार किया। संत बाबा प्रीतम सिंह ने बताया कि उप्र का सबसे बड़ा गुरुद्वारा गुरु का ताल है। यहां दर्शन के लिए सर्वधर्म संगत उमड़ती है।


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